
-शैलेश पाण्डेय-
उत्तर प्रदेश में रंगों के त्योहार होली का उल्लास अलग ही होता है लेकिन इसके तीसरे दिन भाई दूज का विशेष महत्व है। हम राजस्थान में रहकर होली के अवसर पर आने वाली भाई दौज को लगभग भूल ही गए थे। दीपावली के बाद आने वाली भाई दूज को तो उल्लास से मनाते रहे हैं लेकिन होली के बाद की भाई दौज के बारे में खास जानकारी नहीं थी। लेकिन इस बार झांसी में अपनी छोटी बहन वंदना शुक्ला के घर पहुंचे तो यहां भाई दूज का रंग देखने को मिला। हमारी मंझली बुआ की बेटी वंदना को हम प्यार से बुन्नो कहते हैं। वह हमेशा सुख दुख में साथ खड़ी होती है। जब भी उसके यहां जाते हैं तो अहसास होता है कि इससे ज्यादा खुश आज कोई और नहीं होगा। कोटा से कानपुर जाने के बीच में बुन्नो के यहां झांसी में रूकना अनिवार्य है। एक बार नहीं रूकने की गलती कर दी तो हमारे बहनोई साहब राम जी शुक्ला ने सख्त हिदायत कर दी कि यहां कोई हो या नहीं लेकिन आपको घर आना ही है। इसलिए झांसी कानपुर आने जाने में हमारा हमेशा का अनिवार्य पड़ाव बन गया है। इस बार भी बुन्नो की रविवार की छुट्टी देखकर ही कोटा से झांसी पहुंचे ताकि पूरा दिन उसके साथ बिता सकें। थोड़ी देर में ही मेरी पत्नी नीलम और भांजी टिया के साथ पूजा करने के बाद जब बुन्नो ने पूजा की थाली सजा कर भाई दूज का टीका किया तो भाव विह्वल थी। ऐसा लगा कि आज का दिन हम दोनों के लिए यादगार हो गया।