‘जिनको अपनी बीबी से हो प्यार’… करें इनकार…

whatsapp image 2025 07 16 at 10.57.22
गांधी सागर से रावतभाटा के रास्ते में ऊंचाई से मनोरम दृश्य।
हमारे सबसे वरिष्ठ पत्रकार साथी और इस यात्रा के मेजबान धीरेन्द्र राहुल का रावतभाटा चलने का आदेश था। पंचोली जी के अलावा किसी में राहुल जी के आदेश की अवहेलना करने का साहस नहीं था। हरिवल्लभ जी ने राहुल जी के निर्देशानुसार उनके बताए गांधी सागर से रावतभाटा के रास्ते पर कार मोड़ दी। लेकिन शुरू में जिस तरह का रास्ता दिखा उससे चिंता होने लगी। पहले तो लगा कि शायद कुछ दूरी तक ही रास्ता उबड़ खाबड़ होगा लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगे स्थिति विकट होती गई।

-शैलेश पाण्डेय-

shailesh pandey
शैलेश पाण्डेय

दूरदर्शन के जमाने में कुछ विज्ञापन ऐसे थे जो लोगों के दिलो दिमाग में पैठ जमा चुके थे। इनमें दूध सी सफेदी निरमा से आए, लिरिल साबुन के अलावा एक प्रेशर कुकर का विज्ञापन ‘जिनको अपनी बीबी से हो प्यार प्रेस्टीज से कैसे करे इनकार’ भी था। राहुल जी के भानपुरा में रविवार 13 जुलाई को पिकनिक का मजा लेने और गांधी सागर बांध और हिंगलाज रिसोर्ट से चंबल की विशाल जलराशि के विहंगम दृश्य से अभिभूत होने के बाद जब कोटा लौटने लगे तो प्रेशर कुकर वाला विज्ञापन जेहन में बार बार कौंधता रहा।

रविवार सुबह सात बजे से लगातार सफर और घूमने से थकान होने से कोटा लौटना चाहते थे। हम सभी कम से कम जीवन के छह दशक देख चुके हैं इसलिए युवावस्था जैसा दमखम भी नहीं रहा। यह जरूर है कि मैं और जनार्दन गुप्ता आज भी 40 साल के युवा जैसे उत्साही नजर आते हैं। हमारे सबसे वरिष्ठ पत्रकार साथी और इस यात्रा के मेजबान धीरेन्द्र राहुल का रावतभाटा चलने का आदेश था। पंचोली जी के अलावा किसी में राहुल जी के आदेश की अवहेलना करने का साहस नहीं था। हरिवल्लभ जी ने राहुल जी के निर्देशानुसार उनके बताए गांधी सागर से रावतभाटा के रास्ते पर कार मोड़ दी। लेकिन शुरू में जिस तरह का रास्ता दिखा उससे चिंता होने लगी। पहले तो लगा कि शायद कुछ दूरी तक ही रास्ता उबड़ खाबड़ होगा लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगे स्थिति विकट होती गई। हमारा अनुमान एक घंटे में रावतभाटा पहुंचने का था। जनार्दन ने गूगल मैप पर भी जानकारी लेने की कोशिश नहीं की। इस रास्ते पर तो कार ऐसे डोल रही थी कि बचपन में यूपी में पारिवारिक विवाह समारोह में दूल्हे के साथ पालकी में बैठने का अनुभव याद आ गया। बार-बार मन कर रहा था कि इससे तो अच्छा है पैदल चल लें। रास्ता क्या था केवल विशाल गड्ढे थे। सड़क नाम की नहीं थी। हाल ही में एक अखबार के रिपोर्टरों ने शहर की सड़क पर गड्ढों की गिनती की थी। लेकिन मेरा दावा है कि हम जिस रास्ते से गुजरे उसके गड्ढे गिने जाएं तो ये रिपोर्टर गिनती भूल जाएंगे।

whatsapp image 2025 07 16 at 10.58.33
गांधी सागर से रावतभाटा के रास्ते का चित्र जिसमें  गड्ढे ही नजर आ रहे हैं। इस रास्ते से राहुल जी हमें ले गए। यह फोटो भी राहुल जी ने ही उपलब्ध कराया है।

हरिवल्लभ जी एक गड्ढे से कार निकालते तो अगले गड्ढे में उतर जाती। हम सभी राहुल जी पर गुस्सा निकालने लगे लेकिन वह अपने चिर परिचित शांत स्वभाव और बेपरवाह अंदाज में यही कहते रहे कि थोड़ी देर की बात है। इस सफर के दौरान पिछले महीने के बूंदी दौरे की याद आ गई जब मैं कार ड्राइव कर रहा था और राहुल जी जब चाहे जिस गली में कार मोड़ने को कह देते। यह भी नहीं देखते कि बूंदी की संकरी गलियां कार निकलने लायक भी हैं या नहीं। तब मेरी पत्नी नीलम ने ताकीद की थी कि राहुल जी के साथ जब भी रहें ड्राइविंग के मामले में अपने विवेक पर निर्भर रहें। वह सही भी थीं क्योंकि हम वहां एक दो जगह विकट स्थिति में फंस भी गए थे। जब रावतभाटा के रास्ते में खड्डों में हिचकोले खा रहे थे तब बूंदी की यात्रा याद आ गई। मैंने जनार्दन को कहा कि जब तुम्हे इस रास्ते की हालत पता थी तो मना क्यों नहीं किया। जनार्दन का मासूम जवाब था राहुल जी ने आज तक किसी की सुनी है क्या। वह अपनी मर्जी के मालिक हैं।
करीब 20 किलोमीटर के सफर में राहुल जी अपने जीवन के एक से बढ़कर एक किस्से सुनाते गए। यदि उनके किस्से नहीं होते तो यह रास्ता नरक में जाने के समान होता। रास्ते में राहुल जी के भानपुरा के वकील मित्र का फोन आया। जब राहुल जी ने उन्हें इस रास्ते से जाने के बारे में बताया तो वह भी उन्हें भला बुरा कहने लगे। इसी बीच हमारे मित्र रवि जैन का फोन आया तो उन्हें भी स्थिति बताई। उन्होंने एक कुशल इंजीनियर की तरह पूरे रास्ते में पड़ने वाला संकट बता दिया और पूछा कि इस रास्ते का आइडिया किस का है। लेकिन मैंने यही जवाब दिया कि हमें पता नहीं था इसलिए यहां से आ गए लेकिन हमारी फितरत को देखते हुए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। किसी तरह उनसे टाल मटोल की। यह जरूर है कि उन्होंने सूचना दी कि मोडक से दरा की नाल में जाम लगा है। यदि इस रास्ते से कोटा लौटते तो घंटों जाम में फंस सकते थे। खैर राहुल जी ने एक जगह हरिवल्लभ जी को कार रोकने को कहा और वहां से अद्भुत दृश्य देखने के लिए हम सभी को आमंत्रित किया। हम सभी अभी तक राहुल जी से बुरी तरह खफा हो चुके थे और कार से उतरना भी नहीं चाहते थे। लेकिन बहुत आग्रह पर जब उतरकर सौ कदम चले होंगे मनोरम दृश्य देखने को मिला। वहां से सैकड़ों फीट नीचे चेचट के आसपास के गांव नजर आ रहे थे। क्योंकि शाम होने लगी थी इसलिए वहां कुछ घरों में बिजली की रोशनी टिमटिमाने लगी थी। नीचे सड़क से गुजर रहे वाहन ऐसे लग रहे थे मानो टॉय कार दौड़ रही हों। पहले ऐसा नजारा मैंने बेंगलुरु में अपने भतीजे के फ्लैट से देखा था या माउंट आबू में गुरू शिखर से। मौके पर जगह जगह शराब और बीयर की खाली बोतलें भी मौजूद थीं इससे महसूस हुआ कि लोग यहां के इस नजारे का मजा लेने आते हैं। वहां का अद्भुत नजारा देख रहे कुछ लोग मिले तो उनसे रावतभाटा का शार्ट कट पूछा ताकि नरक जैसे रास्ते से निजात मिले। उन्होंने कुछ दूर बाद चेचट की ओर जाने वाले रास्ते के बारे में बताया लेकिन एक सज्जन ने कह दिया कि आप लोग काफी आगे निकल आए हो अब कुछ देर और कष्ट उठा तो रावतभाटा पहुंच जाओगे। यदि हमारे बताए रास्ते की भूल भुलैया में फंसे तो मुश्किल होगी।
खैर राम-राम करते किसी तरह रावतभाटा पहुंचे तब तक हरिवल्लभ जी के कंधे थकान से जवाब दे चुके थे। अंधेरा भी घिरने लगा था। रावतभाटा बांध देखने का समय नहीं रहा था इसलिए राहुल जी अपने कुछ मित्रों से मिलने के इच्छुक दिखे लेकिन पंचोली जी ने साफ मना करते हुए कहा कि देर हो चुकी है अब सीधे घर चलो। रावतभाटा में चाय पीने के बाद रवाना होने लगे तो हरिवल्लभ जी ने मुझ से कार ड्राइव करने का आग्रह किया क्योंकि वह बुरी तरह थक चुके थे। मुझे यह तो पता था कि रास्ता घाटियों वाला है लेकिन यह नहीं पता था कि हालत अभी भी 30 साल पहले जैसे हैं।  रास्ते में कठिन घुमाव के साथ गाय-भैंस जैसे जानवरों की भरमार और थोडी-थोडी दूर पर स्पीड ब्रेकर भी मिलेंगे। रास्ते में सामने से आने वाले कार सवार हाई बीम पर डिपर भी नहीं देंगे ताकि आपको रास्ता भी नजर नहीं आए। यानी पूरा रिस्क। हालांकि मेरी बुआ के बेटे आशीष रावतभाटा परमाणु बिजली घर में कार्यरत हैं और रात को भी कार से सफर करते हैं लेकिन पहली बार मालूम पड़ा कि वह कितना जोखिम उठाते हैं क्योंकि मैंने रात में इस रास्ते में कभी सफर नहीं किया था। मैंने राहुल जी से आग्रह किया कि वह को-ड्राइवर की सीट से पीछे चले जाएं और हरिवल्लभ जी को आगे आने दें ताकि रात के समय वह सड़क पर सामने से आने वाली कार से बचते समय हमारी कार को बायीं ओर सड़क से नीचे उतरने के बारे में सावचेत करते चलें। राहुल जी से तो आप ऐसी किसी मदद की उम्मीद नहीं कर सकते। क्योंकि वह गांधीसागर से ही आगे की सीट पर आसन जमा चुके थे इसलिए टस से मस नहीं हुए।

96ae3689 eae8 4536 b95e 002044d9f4d2
रावतभाटा से कोटा के रास्ते पर कार बढाई तो शुरू में ही महसूस हो गया कि कार ड्राइविंग का जोखिमपूर्ण टास्क हाथ में ले लिया है। हालांकि कोई विकल्प भी नहीं था क्योंकि जनार्दन को जिम्मेदारी देने का जोखिम नहीं उठा सकते थे। घाटियों वाला रास्ता और उसमें भी रात का समय यानी कोढ़ में खाज। जैसे जैसे आगे बढ़े दो वर्ष पूर्व का इंदौर से ओंकारेश्वर का सफर याद आने लगा। हम उज्जैन में महाकालेश्वर के दर्शन के बाद पत्नी नीलम और पिता जी श्रीराम पाण्डेय के साथ अपनी बलेनो कार से ओंकारेश्वर के लिए यह सोचकर रवाना हुए थे कि करीब 150 किलोमीटर की दूरी है आराम से वहां पहुंच जाएंगे। लेकिन बहुत ही कठिन घाटियों वाला रास्ता मिला जिसे पार करने में हर वक्त न केवल अपनी बल्कि पत्नी और पिता की सुरक्षा की चिंता हावी रही। रावतभाटा के रास्ते में भी मुझे अपने से ज्यादा अपने चार साथियों की सुरक्षा की चिंता थी। देर होने के कारण सभी के घर से फोन आने लगे थे लेकिन मैं बहुत संभलकर और धीरे-धीरे ही कार आगे बढ़ता रहा। जहां भी खतरा महसूस होता अपनी कार रोकता और सामने से आने वाले वाहन को निकलने का मौका देता। इस वजह से रात आठ बजे कोटा पहुंचने की बजाय दस बज गए। रास्ते में मिल रहे मवेशी और स्पीड ब्रेकर भी समस्या पैदा कर रहे थे। बारिश का सीजन था इसलिए फिसलन भी थी। जब आवली रोजड़ी क्षेत्र के नया गांव पहुंचे तो जान में जान आई। पंचोली जी, राहुल जी और जनार्दन को इनके घर पर सुरक्षित पहुंचाने की राहत के बाद जब दादाबाडी स्थित मेरे घर पर पहुंचा और हरिवल्लभ जी को कार की चाबी सौंपी तो रात के साढ़े दस बज चुके थे। मुझे पता था कि घर में पहुंचने पर क्या आफत आने वाली है। हालांकि बेसब्री से इंतजार कर रहे पिता जी ने केवल यही कहा कि इतनी रात को बाहर मत रहा करो लेकिन पत्नी का मुंह फूला हुआ मिला। उन्होंने गुस्से में केवल खाना परोसने के बारे में पूछा जिसके लिए मैंने मना कर दिया। उन्होंने इसके बाद कोई बात नहीं की जो मेरे लिए राहत की बात थी क्योंकि कम से कम उस समय तो कोई बहाना या सफाई नहीं देनी पड़ेगी। यह जरूर है कि बेटे अजातशत्रु का वाट्सएप मैसेज था। मैंने केवल अपने सकुशल कोटा पहुंचने की सूचना भेज दी और सो गया।
जब बुधवार 15 जुलाई को पुरुषोत्तम पंचोली जी के जन्मदिन के मौके पर उन्हें बधाई और सम्मान करने के लिए हम सभी मित्र उनके घर एकत्र हुए तो किसी के चेहरे से नहीं लगा कि उनकी रविवार को देर रात और इतने जोखिमपूर्ण सफर से घर पहुंचने पर लानत-मलामत हुई हो। केवल यही चर्चा हुई कि राहुल जी ने खराब रास्ते में फंसा दिया। इनके साथ चलो जरूर लेकिन इनके चक्कर में मत पड़ो। खुद अच्छा बुरा देख निर्णय करो। जोखिम वाले रास्ते पर कार में आगे को-ड्राइवर सीट पर तो इन्हें किसी भी हालत में बिठाना नहीं है। इसी समय जनार्दन से यह पोस्ट लिखने पर चर्चा हुई तो उसने पूरा समर्थन किया। यह खतरा जरूर है कि जो दुस्साहस हमने किया उसके बारे में इस पोस्ट से घर वालों को पता चल जाएगा। लेकिन उसने कहा कि तू अपना देख ले मुझे तो अपनी पत्नी कविता से कोई डर नहीं है। राहुल जी पर कोई असर होता नहीं है और पंचोली जी अपनी जानें। हरिवल्लभ का कुछ नहीं होगा क्योंकि उसकी पत्नी इसकी आदी है क्योंकि यह तो पूरे राजस्थान में ऐसे ही घूमने में खतरे उठाने का आदी है। हालांकि कल उन्होंने यह जरूर कहा कि वह जयपुर वॉल्वो बस से जाएंगे इससे महसूस हुआ कि उनकी स्थिति भी अच्छी नहीं है। खैर मैंने भी रिस्क उठाने का फैसला किया। देखते हैं इस पोस्ट के बाद आगे क्या होता है।

नोट: इस पोस्ट के बारे में राहुल जी को पहले ही बता दिया है इसलिए उन्हें नाराज होने का अधिका​र नहीं है।

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments