गांधी सागर बांध की कहानी राहुल जी की जुबानी…

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हिंगलाज रिसोर्ट से गांधी सागर का विहंगम दृश्य।
हिंगलाज रिसोर्ट पर बडी संख्या में पर्यटक मौजूद थे और हमारे साथ वे भी खूबसूरत नजारे को आंखों के साथ मोबाइल कैमरों में कैद करने में जुटे थे। एक ओर लंगूरों की धमाचौकड़ी जारी थी तो वहां लगे झूलों पर बच्चे उछल कूद मचाए थे। इस दौरान राहुल जी गांधी बांध बनने की कहानी, उसके पेटे में आए गांवों के विस्थापन और एक बार जब बांध सूख गया तब अपने मित्र के साथ मोटर साइकिल से पूरे इलाके का दौरा करने का अनुभव बताते रहे।

-शैलेश पाण्डेय-

shailesh pandey
शैलेश पाण्डेय

भानपुरा के प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाने के बाद वहां से महज 40 किलोमीटर दूर गांधी सागर बांध नहीं जाना यानी धीरेन्द्र राहुल जी के भानपुरा में दाल बाटी और चूरमा के लड्डू की दावत का मजा खराब करना था। जैसे ही छोटा महादेव मंदिर से नीचे उतरे हम सभी पांच जनो में सबसे वरिष्ठ राहुल जी ने कार में बैठते हुए आदेश सुना दिया अब गांधी सागर चलेंगे। पुरुषोत्तम पंचोली जी और जर्नादन गुप्ता पहले भी वहां जा चुके थे लेकिन यह मेरे लिए पहला अवसर था। मैंने तुरंत राहुल जी की हां में हां मिला दी और हरिवल्लभ मेघवाल को अपनी कार का रूख गांधी सागर के रास्ते पर करना पड़ा।  चंबल नदी पर निर्मित राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और चंबल बैराज को मैं कई बार देख चुका था लेकिन गांधी सागर कभी जाने का मौका नहीं मिला। मेरे लिए गांधी सागर का महत्व चंबल नदी की वजह से खास है क्योंकि हम कोटा वासियों के रग रग में खून के साथ चंबल का जल बहता है। देश दुनिया में राजस्थान की पहचान रेगिस्तान की वजह रही है लेकिन हम गंगा और यमुना के किनारे रहने वाले उत्तर प्रदेश के रिश्तेदारों को गर्व से कहते थे कि हमारा क्षेत्र चंबल की वजह से उनके उत्तर प्रदेश से भी ज्यादा हरा भरा और सिंचित है।

 

भानपुरा से बाहर आते ही बारिश की वजह से बैटरी में खराबी से एक जगह कार में कुछ समस्या हुई लेकिन हरिवल्लभ जी ने बखूबी स्थिति को संभाला और हम गांधी सागर के प्रवेश द्वार हिंगलाज रिसोर्ट पहुंच गए। इस श्रृंखला के पहले भाग में बता चुका हूं कि राहुल जी जितने उत्कृष्ट पत्रकार हैं उतने ही आला दर्जे के स्टोरी टेलर भी हैं। प्रवेश द्वार से दस दस रुपए के टिकट खरीद के अंदर प्रवेश करने के साथ ही राहुल जी का स्टोरी टेलर वाला रूप सामने आ गया। पंचोली जी और जनार्दन पहले यहां आ चुके थे इसलिए वह आगे निकल गए लेकिन मैं और हरिवल्लभ जी राहुल जी से गांधी सागर की कहानी सुनने लगे।

गांधी सागर बांध चंबल नदी पर बने चार प्रमुख बांधों में से एक है जिसमें कोटा बैराज भी शामिल है। इसकी खासियत पत्थर की चिनाई वाला गुरुत्वाकर्षण बांध होना है। बांध की आधारशिला प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 7 मार्च 1954 को रखी और मुख्य बांध का निर्माण 1960 में पूरा हुआ था।

जब हम चंबल नदी के किनारे पहुंचे तो विशाल जल ग्रहण क्षेत्र देख दंग रह गए। बारिश के मौसम में अथाह जल राशि। इसका न ओर का पता न छोर का। मैंने देश और यूरोप में (स्विटजरलैंड को छोडकर) बहुत बड़े हिस्से में घूमने के दौरान कहीं ऐसा अद्भुत नजारा नहीं देखा। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने यहां शानदार रिसोर्ट बना रखा है जहां ठहरने का प्रबंध भी है। हालांकि इसका किराया इतना ज्यादा है कि हमारे जैसे साधारण और रिटायर पत्रकार के वश का नहीं है। फिर भी वहां का माहौल देखकर कल्पना करने से तो कोई नहीं सकता। कल्पना में यही आया कि चांदनी रात में रिसोर्ट से नदी की ओर का नजारा देखना कैसा लगता होगा। क्योंकि केन्द्र शासित प्रदेश दमन द्वीव के दमन में समुद्र तट पर स्थित सर्किट हाउस के कमरे से चांदनी रात में (स्थानीय भाषा में भरती) ज्वार भाटा के समय समुद्र को देखने और फिर तट पर अठखेलियां करती विशाल लहरों के साथ चहल कदमी करने का अनुभव कर चुका हूं इसलिए यह विचार तुरंत दिमाग में कौंधा।

हिंगलाज रिसोर्ट पर बडी संख्या में पर्यटक मौजूद थे और हमारे साथ वे भी खूबसूरत नजारे को आंखों के साथ मोबाइल कैमरों में कैद करने में जुटे थे। एक ओर लंगूरों की धमाचौकड़ी जारी थी तो वहां लगे झूलों पर बच्चे उछल कूद मचाए थे। इस दौरान राहुल जी गांधी बांध बनने की कहानी, उसके पेटे में आए गांवों के विस्थापन और एक बार जब बांध सूख गया तब अपने मित्र के साथ मोटर साइकिल से पूरे इलाके का दौरा करने का अनुभव बताते रहे। वह जैसे जैसे अपने अनुभव साझा कर रहे थे वैसे वैसे उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उन्हीं से मालूम पड़ा कि यदि यह बांध नहीं बनता तो लाखों हैक्टेयर में सिंचाई संभव नहीं थी। कोटा बैराज से निकली दायीं और बायीं मुख्य नहरों ने ही हमारे हाडोती को सरसब्ज किया है और हम राजस्थान के सबसे हरे भरे और खुशहाल इलाके के वासी बन सके। इन बांधों की वजह से ही कोटा एक समय औद्योगिक शहर बन सका।

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हिंगलाज रिसोर्ट में बाएं से जनार्दन गुप्ता, पुरूषोत्तम पंचोली, धीरेन्द्र राहुल, हरिवल्लभ मेघवाल और शैलेश पाण्डेय।

मैं बचपन में दर्जनों बार जवाहर सागर और राणा प्रताप सागर बांध देखने गया हूं। उस समय इन बांधों का निर्माण हो रहा था। यूपी से हमारा कोई भी रिश्तेदार आता था तो उसकी पहली इच्छा इन बांधों को देखने को होती थी। निर्माण कार्य के दौरान वहां जाने के लिए अनुमति लेनी होती थी। उसके लिए वहां कार्यरत अपने मिलने वाले इंजीनियरों और ठेकेदारों से जुगाड़ लगाया जाता था। इन रिश्तेदारों के साथ जाने का मतलब उस दिन स्कूल से छुट्टी। स्कूल शिक्षा के दौरान स्कूल से छुट्टी से बड़ी कोई खुशी नहीं होती थी। गत दो दिनों से बारिश के कारण कोटा जिले के जो हालात हैं और आज मंगलवार को स्कूल का अवकाश घोषित कर दिया उससे बचपन के दिन याद आ गए। साल में एक अवसर तो ऐसा आ ही जाता था जब बारिश के कारण एक या दो दिन स्कूल बंद होता और हमारी मौज।

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गांधी सागर बांध पर हम सभी साथी।

हिंगलाज रिसोर्ट से चंबल नदी के शांत रूप को निहारने से हालांकि तृप्ति नहीं मिली लेकिन राहुल जी का गांधी सागर बांध को देखने चलने और वहां से राणा प्रताप सागर बांध होते हुए कोटा वापसी का निर्देश था। इसलिए हमें वहां से रवाना होना पडा। लेकिन जब गांधी सागर बांध पहुंचे तो मेरी इस बांध को लेकर सारी कल्पनाएं धराशायी हो गईं। उसके जल प्रवाहित होने वाले मौखे और बांध की लंबाई चौड़ाई देखकर दिल बैठ गया। हम आए दिन जिस चंबल बैराज को देखते हैं उसके सामने तो यह बौना था। हालांकि आसपास पहाड़ की चट्टानें और उन पर पानी की तेज धार के निशान अपने इतिहास को दर्शा रही थीं। क्योंकि एक पत्रकार होते हुए भी मैं बांध जैसे मामलों में अनाड़ी हूं इसलिए राहुल जी तुरंत मेरी निराशा को ताड़ गए और उन्होंने ही बताया कि क्यों गांधी सागर इस पर बने अन्य तीन बांधों से क्यों छोटा है। गांधी सागर के बाद राणा प्रताप सागर कुछ बड़ा है उससे ज्यादा जवाहर सागर और अंत में कोटा बैराज। क्योंकि शाम होने लगी थी इसलिए कोटा के लिए निकलना था लेकिन राहुल जी रावतभाटा भी जाना चाहते थे। हम चारों को उनकी बात माननी पड़ी और जीवन के सबसे कठिन और खतरनाक सफर पर निकलना पड़ा। इसका विवरण अगले अंक में। जारी…
नोट: गांधी सागर के बारे में राहुल जी से बातचीत वीडियो में हैं

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