राम कृष्ण एकीकरण के सबसे बड़े सूत्रधार- लोहिया

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फोटो साभार सोशल मीडिया

-धीरेन्द्र राहुल-

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धीरेन्द्र राहुल

महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी विचारक डॉ. राममनोहर लोहिया ने देश को एक रखने वाले कारकों में राम और कृष्ण के अवदान को सबसे महत्वपूर्ण माना था। उन्होंने कहा था कि राम और कृष्ण भारतीय संस्कृति की दो धुरियां हैं। जिस पर राम उत्तर दक्षिण एकता के देवता हैं, उसी प्रकार कृष्ण पूर्व और पश्चिम की एकता के देवता है। राम उत्तर दक्षिण की धुरी है, कृष्ण पूर्व पश्चिम की धुरी है और इन दोनों धुरियों पर समूची भारतीय संस्कृति टिकी हुई है।

राम ने उत्तर से चलकर दक्षिण को एक सूत्र में बांधा है, उसी प्रकार कृष्ण ने पूर्व से पश्चिम ( मथुरा से द्वारका ) तक उसी धुरी में एक सूत्र में बाधा है। राम कृष्ण में और गुण चाहे जितने रहे हो, एकीकरण के गुण से बढ़कर नहीं।

सदियों से देश को एक रखने वाली चीजों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।

यहा से मेरे अपने विचार—

चार दशक पहले एक विचारक ( नाम भूल रहा हूं ) ने दैनिक ‘नई दुनिया’ इंदौर में एक लेख में उन तमाम चीजों का उल्लेख किया था, जो देश को एक रखती हैं या हमारी राष्ट्रीय एकता को मजबूत करती हैं। उसमें उन्होंने स्वाधीनता संग्राम और उसे नेतृत्व देने वाले नेताओं महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, सरदार पटेल और उनके द्वारा किए गए 565 रियासतों का एकीकरण, संविधान, भारतीय सिविल, पुलिस और राजस्व सेवाएं,जो देश को एक ढांचा प्रदान करती है। राजनीतिक सत्ता बदलती रहती है लेकिन सिविल सेवक काम करते रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट, भारतीय रेल, जिसने देश को छुआछूत के कलंक से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बालीवुड की फिल्में, फिल्मी संगीत, भारत की संसद और राजनीतिक दलों के साथ भारतरत्न लता मंगेशकर की आवाज को भी शामिल किया था। लेकिन हमारी एकता को मजबूत करने में रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों के साथ महाकुंभ और आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों की स्थापना ने भी राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

राजनीतिक रूप से भारत सदियों से खण्ड खण्ड रहा है लेकिन धार्मिक और सामाजिक रूप से एक रहा है।

हमारे उन ॠषियों पर क्यों न गर्व करें, जिन्होंने हजारों साल पहले जम्बूद्वीप या भारत की बात नहीं कीं बल्कि पूरी वसुधा को ही कुटुंब माना। महाकुंभ भी एक अनुष्ठान या कर्मकांड लग सकता है लेकिन इस आयोजन ने समूचे भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़े रखा है।

शिव पुराण में बारह ज्योतिर्लिंगों का विवरण है। इन बारह ज्योतिर्लिंगों की यात्रा कीजिए, सारा हिन्दुस्तान नाप लेंगे आप। इसी प्रकार 52 शक्तिपीठों की यात्रा कीजिए, देश का कोई कोना नहीं बचेगा। धर्म ने सारे देश को एक सूत्र में पिरोया है।

इसलिए जब देश आजाद हुआ, तब 565 रियासतें थी लेकिन देश धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पहले से एक था तो राजनीतिक सीमाएं बदलने में भी समय नहीं लगा। देश आज अगर एक है तो उसमें महाकुंभ का भी बड़ा योगदान है। 40 करोड़ लोग संगम के तट पर स्नान करें, ऐसी एकता दुनिया के किसी ओर देश में हो तो जरूर बताए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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