श्री कूड़ल अळगर मंदिर: मीनाक्षी अम्मन मंदिर के समकक्ष दिव्यदेश

कूडल का आशय एक जगह एकत्र होने से हैं। शिव व पार्वती के विवाह के लिए सभी देवी-देवता, मुनि व गण यहां एकत्र हुए थे। भगवान विष्णु ने इस विवाह में सहयोगी भूमिका निभाई। इस परिणयोत्सव में शक्ति, भक्ति, सौंदर्य और सम्पदा सभी की उपस्थिति थी। यहां शिव-पार्वती के विवाह के दर्शन पूरे ब्रह्माण्ड को हुए।

shreekoodal
श्री कूड़ल अळगर मंदिर

डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)

मदुरै का मीनाक्षी मंदिर जग प्रसिद्ध है। मदुरै की दूसरी पहचान अगर कुछ है तो वह कूडल अळगर मंदिर जो भगवान विष्णु का है। यह मंदिर मदुरै शहर के मध्य में स्थित है। कूडल मदुरै का पर्याय है तो अळगर का आशय सुंदरता से है। यह अतिप्राचीन मंदिर वैष्णव दिव्य क्षेत्रों में शामिल है। इसकी लोकप्रियता मीनाक्षी अम्मन मंदिर के समकक्ष है।

इतिहास और संरचना
कूडल का आशय एक जगह एकत्र होने से हैं। शिव व पार्वती के विवाह के लिए सभी देवी-देवता, मुनि व गण यहां एकत्र हुए थे। भगवान विष्णु ने इस विवाह में सहयोगी भूमिका निभाई। इस परिणयोत्सव में शक्ति, भक्ति, सौंदर्य और सम्पदा सभी की उपस्थिति थी। यहां शिव-पार्वती के विवाह के दर्शन पूरे ब्रह्माण्ड को हुए।

पी एस विजयराघवन

कूडल अळगर मंदिर का राजगोपुरम पांच मंजिला है। मंदिर से जुड़े जलकुण्ड व सरोवरों के नाम हेम पुष्करिणी, चक्र तीर्थम, कृतमाला निधि व वैगई नदी है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपर स्थित गोपुरम का नाम अष्टांग विमानम है। वर्णन के अनुसार जब कोनेडु मारन श्रीवल्लभदेवन का मदुरै पर शासन था। वैष्णव संत पेरियआलवार यहां आए। भगवान अळगर की भव्यता पर वे मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने उनकी स्तुति में तिरुपल्लाण्डु गाया। तिरुमंगै आलवार व आण्डाल ने भी भगवान विष्णु की यहां काव्य वंदना की।
यह मंदिर पांड्या शासकों के समय के पहले से है। पांड्या राजा सत्यवर्द्धन ने मंदिर के लिए बहुत दान दिया। वे कूडल अळगर के परमभक्त थे। एक बार मंदिर दर्शन करने आए राजा ने कृतमाला नदी में हाथ धोया। उस वक्त उनके हाथ एक मछली लगी। राजा को लगा यह भगवान विष्णु हैं क्योंकि भगवान का एक मत्स्यावतार रहा है। इस वजह से पाण्ड्या राजा की पताकाओं में मछली की छवि मुद्रित थी।
मंदिर की भव्यता इसके राजगोपुरम की वजह से है। राजगोपुरम में स्थापत्य और शिल्प कला के अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। मंदिर के पहले गलियारे में लक्ष्मी मदुरै वल्ली नाचीयार की अलग सन्निधि है। देवी मीनाक्षी अम्मन का विग्रह यहां मर्गद धातु से बना है इसलिए देवी को मर्गद वल्ली कहा जाता है। उत्तरी छोर पर आण्डाल नाचीयार भी अलग से प्रतिष्ठित हैं। आराध्य देव तीन सतहों पर दर्शन देते हैं। सतह पर भगवान बैठी अवस्था में, द्वितीय तल पर शयनावस्था और सबसे ऊपर सूर्यनारायण रूप में खड़ी मुद्रा में दर्शन देते हैं। भूतल पर भगवान का नाम व्यूह सुंदरराजन है और यही नाम उत्सव मूर्ति का भी है। मंदिर परिसर में नवग्रहों की सन्निधि है जो किसी अन्य विष्णु मंदिर में नहीं होती।

पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार सौनका महर्षि एक बार घोर तपस्या कर रहे थे। चींटियों ने उन पर बांबी बना दी। वहां खेल रहीं यायाति की पुत्री की नजर बांबी पर पड़ी। बांबी से निकल रही दो ज्योतियों से वह आकर्षित हो गई। वस्तुतः यह महर्षि के नेत्र थे। उसने एक लकड़ी उठाई और महर्षि के नेत्र में चुभो दी। क्रोधित महर्षि ने उसे शाप दिया कि यायाति की बेटी को होने वाली सभी संतानें दृष्टिहीन होंगी। यायाति की पुत्री महर्षि के चरणों में समर्पित हो गई। उनका क्रोध भी शांत हुआ। शाप मुक्ति के मार्ग के रूप में महर्षि ने ही उससे विवाह रचाया। उनके सौ संतानें हुईं। उनमें से ही एक थे जनक महर्षि। पेरिय आलवार को भगवान नारायण ने यहां प्रत्यक्ष दर्शन दिए। भृगु और सौनका महर्षि को भी भगवान साक्षात हुए। लक्ष्मी मदुर वल्ली को वगुलवल्ली, वरगुण वल्ली और मर्गदवल्ली भी कहा जाता है।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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