संकष्टी चतुर्थी का जानें शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि

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-राजेन्द्र गुप्ता-

rajendra gupta
राजेन्द्र गुप्ता

पार्वती पुत्र भगवान गणेश को प्रथम पूज्य कहा जाता है. किसी भी शुभ काम से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. गणपति बप्पा अपने भक्तों के सभी विघ्न हर लेते हैं, इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है. चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित होती है. इस दिन बप्पा की विधिवत पूजा की जाती है और उनके निमित्त व्रत भी रखा जाता है. भगवान गणेश की पूजा के लिए चतुर्थी तिथि का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.

सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गजानन संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. इस दिन बप्पा की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए और उनके निमित्त व्रत रखना चाहिए. हर महीने में 2 बार चतुर्थी तिथि का व्रत किया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है, उन्हें सुख-समृद्धि और बुद्धि की प्राप्ति होती है. इस बार गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत कब रखा जाएगा, आइए जानते हैं.

कब है गजानन संकष्टी चतुर्थी?
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पंचांग के अनुसार, सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 24 जुलाई को सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर शुरू हो जाएगी. फिर यह तिथि अगले दिन 25 जुलाई को सुबह 04 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी. हिंदू धर्म में उदया तिथि मान्य रखती है, ऐसे में उदयातिथि के अनुसार 24 जुलाई को गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा.

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
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चतुर्थी वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दें.
फिर एक चौकी को सजाएं और उसपर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें.
इसके बाद विधि अनुसार उनका जल से अभिषेक करें.
फिर उन्हें पीले फूलों की माला अर्पित करें और कुमकुम का तिलक लगाएं.
घर पर बनी कोई मिठाई, मोदक आदि चीजों का भोग लगाएं.
भगवान गणेश को दुर्वा घास जरूर अर्पित करना चाहिए.
फिर बप्पा के वैदिक मंत्रों का जाप और गणपति चालीसा का पाठ करें.
अंत में आरती से पूजा समाप्त करें और पूजा में हुई गलती की क्षमा मांगे.
पूजा में तुलसी का इस्तेमाल गलती से भी न करें और तामसिक चीजों से दूर रहें.

संकष्टी चतुर्थी कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती की चौपड़ खेलने की इच्छा हुई लेकिन वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो इस खेल में निर्णायक भूमिका निभाए. समस्या का समाधान करते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी. शिव-पार्वती ने मिट्टी से बने बालक को खेल देखकर सही फैसला लेने का आदेश दिया. खेल में माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थीं.

चलते खेल में एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया. इससे नाराज माता पार्वती ने गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बार-बार क्षमा मांगी. बालक के निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय से श्राप से मुक्ति पाई जा सकती है. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना.

बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक संकष्टी का व्रत किया. उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी. बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा जताई. भगवान गणेश ने उस बालक को शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले. माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गयी होती हैं. जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है. यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया और इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर कैलाश वापस लौट आती हैं.

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175

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