“संरचनाएं : सोमनाथ मैती का सृजनात्मक संवाद”

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-डॉ. रमेश चंद मीणा-

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डॉ. रमेश चंद मीणा

इंडिया हैबिटेट सेंटर,लोधी रोड़, नई दिल्ली,की दृश्य कला दीर्घा में वरिष्ठ कलाकार (कोलकाता,पश्चिम बंगाल से) सोमनाथ मैती की चित्र कृतियों व मूर्तिशिल्पों के मिश्रण से सजी एकल (Solo) कला प्रदर्शनी “संरचनाएं” (Structures) शीर्षक से 20 से 28 अक्टूबर 2024 तक प्रदर्शित हो रही है। मैती की “संरचनाएं” प्रदर्शनी एक महत्वपूर्ण कलात्मक पहलू को उजागर करती है, जहाँ शहरीकरण और संरचनावाद की गहराई से जांच करते हुए चित्रकला और मूर्तिकला का अनूठा संयोजन प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत कला प्रदर्शनी कलाकार की लगभग चार दशकीय कला यात्रा का एक उम्दा पड़ाव है। सम्प्रति, प्रस्तुत कला प्रदर्शनी राष्ट्रीय राजधानी के हृदयस्थल में सहृदय कला प्रेमियों व कलाविदों के ध्यानाकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
सोमनाथ मैती की “संरचनाएं” (Structures) विषयक कला प्रदर्शनी में कैनवास पर एक्रेलिक माध्यम (Acrylic on canvas) से अर्द्ध-अमूर्त शैली में सृजित शहरी परिदृश्य से सिक्त चित्रों में नीला, लाल, पीला, बैंगनी और नारंगी वर्ण नियोजित (Colour Scheme) हैं, जो शहरी जीवन की गतिशीलता और विविधता को दर्शाते हैं। इन रंगों का तान और पोत कलाकृतियों में गहराई और गतिशीलता का अनुभव प्रदान करता है। रंगों का समन्वय, जैसे कि लाल और नीले का संगम, तनाव और सामंजस्य का एक संतुलन पैदा करता है। लाल रंग शक्ति और उत्साह, नीला रंग शांति और स्थिरता, पीला रंग खुशी और प्रकाश, नारंगी रंग गर्माहट और जीवंतता, और बैंगनी रंग रहस्य और विलासिता का प्रतीक है।ये रंग न केवल आधुनिक शहरी जीवन की ऊर्जा और गति को दर्शाते हैं, बल्कि रात के दृश्यों के माध्यम से शहरी अनुभव की भावनात्मक जटिलता को भी व्यक्त करते हैं।

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विविध अंतरालों (Space) में—18″×18″, 30″×30″, 40″×40″, 40″×50″, 50″×60″, 60″×60″, 60″×78″, 48″×84″संयोजित ये कृति संरचनाएं; कलाकार की विविधता और विस्तार की दृष्टि को उजागर करती हैं। वैविध्यमयी आकार निरूपण द्वारा कलाकार ने शहरीकरण की जटिलताओं और विरोधाभासों को विभिन्न पैमानों पर दिखाने का प्रयास किया है—कभी छोटे, तंग दायरों में, तो कभी विशाल और विस्तारित परिदृश्यों में।यह आकार विधान (Form legislation) कलाकृतियों को अलग-अलग स्थानिक और वैचारिक सीमाओं के भीतर प्रस्तुत करने में सहायक होते हैं। जिससे दर्शक; कलाकृतियों की संरचनात्मकता के भीतर खो जाने सा अनुभव पाते हैं।
सोमनाथ मैती की प्रदर्शित चित्रकृतियों के संरचनात्मक रूपाकारों(Shapes) में मुगलिया वास्तुकला के तत्वों का समावेश, जैसे मेहराब और गुम्बदाकार संरचनाएं, शहरी परिदृश्यों में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रभाव को रेखांकित करती हैं। ये तत्व चित्रों में आधुनिक शहरीकरण के साथ एक रोचक कंट्रास्ट उत्पन्न करते हैं। इसके साथ-साथ, त्रिकोण और अन्य ज्यामितीय आकृतियाँ चित्रण में संरचनात्मक सौंदर्य और सटीकता को जोड़ती हैं, जो न केवल दृश्य संतुलन (Balance)प्रदान करती हैं, बल्कि दर्शक को विभिन्न कोणों से इन शहरी संरचनाओं के बहुआयामी पहलुओं की व्याख्या करने के लिए प्रेरित करती हैं। चित्रों में रात्रि दृश्य के माध्यम से ये संरचनाएं एक विशेष नाटकीयता और रहस्यात्मकता उत्पन्न करती हैं। चाँद और रात के दृश्यों में उभरते रंगों और आकृतियों के माध्यम से रचनावादी प्रभाव को एक प्रतीकात्मक गहराई मिलती है। प्रदर्शनी के चित्रों में बार-बार उभरने वाला चाँद और मंदिर जैसी वास्तुकला एक गहरा सांस्कृतिक संदर्भ पेश करती है, जो आधुनिक शहरीकरण के प्रभावों के बीच पारंपरिक मूल्यों को याद दिलाती है। ऊँचे मॉल और अट्टालिकाएं शहरी विस्तार और विकास का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो संरचनावादी (Structuralism) दृष्टिकोण के साथ मेल खाती हैं। चित्रों में ऊँचे मॉल, अट्टालिकाओं के साथ-साथ मंदिर जैसी वास्तु और झोपड़ीनुमा वस्तुनिरपेक्ष आकृतियों का समावेश शहरीकरण की परतों को दर्शाता है, जहाँ आधुनिकता और परंपरा का टकराव और संतुलन दोनों देखने को मिलता है। यह द्वैत शहरीकरण के दो पहलुओं—समृद्धि और गरीबी—के बीच संघर्ष और सह-अस्तित्व का प्रतीक है। इस प्रकार, मैती ने एक ऐसा दृश्य विधान निरूपित किया है जो न केवल सौंदर्य में समृद्ध है, बल्कि गहन सामाजिक संदर्भ भी प्रस्तुत करता है।

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प्रस्तुत चित्रों में आकृतियों का ज्यामितीय सरलीकरण और उनमें संरचनात्मक गणितीयता का उपयोग स्पष्ट रूप से विश्लेषणात्मक घनवाद (Analytical Cubism) से प्रेरित है। यह प्रभाव शहरी संरचनाओं, जैसे महल, अट्टालिकाएं, और झोपड़ियों में दिखाई देता है, जहाँ आकृतियों को विभाजित कर, पुनः संयोजित करके अलग-अलग कोणों से दर्शाया गया है। यह घनवादी दृष्टिकोण न केवल दृश्यात्मक विविधता पैदा करता है, बल्कि वस्तुओं को एक साथ कई दृष्टिकोणों से देखने की अनुमति भी देता है।इन संरचनाओं की सृजनात्मकता में अर्द्ध अमूर्त शैली एक आकर्षक सौंदर्यबोध प्रस्तुत करती है, जहाँ आकृतियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देतीं, बल्कि कल्पना और भावनाओं के स्तर पर दर्शकों के साथ संवाद करती हैं। यह शैली रचनावादी कला के मूलभूत सिद्धांतों से भी मेल खाती है, जहाँ कला का उद्देश्य संरचना और रूप को केंद्र में रखकर सामाजिक और सांस्कृतिक संरचनाओं की व्याख्या करना हैं।

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मूर्तिशिल्प के रूप में प्रदर्शित कांस्य माध्यम में अर्ध-अमूर्त ढंग में शिल्पांकन, इस प्रदर्शनी का एक और महत्वपूर्ण पहलू हैं। मूर्तिशिल्पों के विषय में गणेश जी, पक्षी के साथ आदमी, गले में अंगोछा डाले आदमी, आवक्ष शिल्प, और खड़ी महिला आकृतियाँ इत्यादि शामिल हैं। मूर्तिशिल्पों में गणेश, आदमी और महिला की आकृतियाँ रचनावादी सिद्धांतों के अनुरूप शारीरिक रूपों की कार्यात्मकता और संरचना पर बल देती हैं। प्रस्तुत मूर्तिशिल्पों में शिल्पकार ने शारीरिक आकृतियों को सूक्ष्म- न्यूनतम और सरल बनाते हुए,उनके भावनात्मक और प्रतीकात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया हैं। विशेष रूप से “गले में अंगोछा डाले आदमी” और “खड़ी महिला आकृति” जैसे विषय न केवल रूपात्मक सौंदर्य को उजागर करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को भी संदर्भित करते हैं। शिल्प आकृतियों का सरलीकरण और गणितीय दृष्टिकोण कलाकृतियों को गहनता प्रदान करता है। यह बौद्धिक अनुभव केवल दृश्य कलात्मकता नहीं, बल्कि एक अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है।
कुल मिलाकर, कलाकार सोमनाथ मैती की “संरचनाएं” विषयक प्रस्तुत कला प्रदर्शनी सौंदर्यात्मक और कलात्मक दृष्टि से सरोबार है। विश्वास है कि कलाकार की लगभग चार दशकीय कला यात्रा में यह प्रदर्शनी एक मील का पत्थर के रूप में स्मरणीय होगी।कलाकृतियां,एक गहन कलात्मक अनुभव प्रदान करती हैं। शहरीकरण के गतिशील और बहुस्तरीय अनुभव को जीवंत रंगों, संरचनात्मक प्रतीकों, और अमूर्त रूपों के माध्यम से प्रस्तुत करती है। मैती की “संरचनाएं” प्रदर्शनी में प्रदर्शित कलाकृतियों में रचनावाद (Constructivism) गहराई से सन्निहित है। साथ ही, विश्लेषणात्मक घनवाद के प्रभाव से भी अछूती नहीं हैं। कलाकार ने रचनावाद के मूल सिद्धांतों—संरचना, कार्यात्मकता, और तर्कसंगतता—को शहरी जीवन की जटिलताओं के संदर्भ में व्यक्त किया है।ये कलाकृतियाँ वस्तुनिरपेक्ष और व्यक्तिगत भावनाओं से सर्वथा मुक्त हैं। कलाकार सापेक्ष से निरपेक्ष व निरपेक्ष से सापेक्ष के मध्याधिन साधनारत है।कलाकृतियों में भावनाओं का संकुचन नहीं है। कलाकार ने भावनाओं से परे जाकर शुद्ध ज्यामितीय संरचनाओं और तर्कसंगतता के आधार पर सौंदर्य की खोज की है। इस दृष्टिकोण से, कला को एक बौद्धिक संरचनात्मक अनुभव में बदल दिया गया है, जो सरस दर्शकों को बरबस सोचने पर विवश करता है।
कला समीक्षक
डॉ. रमेश चंद मीणा
rmesh8672@gmail.com
09816083135

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