हम साथ-साथ हैं, मगर सचिन पायलट कहां है ?

pialot
सचिन पायलट। फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान में संपन्न होने जा रहे विधानसभा की 6 सीटों पर होने वाले उप चुनाव कांग्रेस के नेताओं के भविष्य की राजनीति तय करेंगे। राजस्थान में कांग्रेस में दो नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को प्रभावशाली नेता माना जाता है। अशोक गहलोत उम्र दराज हो गए हैं तों सचिन पायलट अभी भी युवा है। मगर राजनीतिक तजुर्बे में अशोक गहलोत के सामने सचिन पायलट अनुभवहीन ही दिखाई देंगे। आज भी गहलोत पायलट की अपेक्षा मजबूत नेता हैं। भले ही सचिन पायलट जनता और युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच में अशोक गहलोत से अधिक लोकप्रिय हैं मगर राजनीतिक दृष्टि से पायलट गहलोत की अपेक्षा कमजोर हैं। पायलट की कमजोरी और गहलोत की ताकत पर बात करें तो राजस्थान में सचिन पायलट को राजनीति करते हुए लगभग दो दशक से भी अधिक का समय गुजर चुका है, मगर सचिन पायलट को अनेक अवसर मिलने के बाद भी वह प्रदेश में अपने वफादार ईमानदार कार्यकर्ताओं और नेताओं की मजबूत टीम तैयार नहीं कर पाए। सचिन पायलट के पास आज जिन नेताओं की फौज है उन नेताओं का दिल बाहर से सचिन पायलट के साथ दिखाई देता है मगर अंदर से उन नेताओं का दिल अशोक गहलोत के लिए धड़कता है। यही वजह है कि सचिन पायलट प्रदेश की जनता के बीच लोकप्रिय होने के बावजूद प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। सचिन पायलट अभी भी उसी रास्ते पर हैं जिस रास्ते पर अशोक गहलोत ने उनके लिए राजनीतिक कांटे बिछा रखे हैं। पायलट के पास आज भी बड़ी संख्या में ऐसे कार्यकर्ता और नेता मौजूद है जो वक्त आने पर अशोक गहलोत का साथ देंगे। ऐसा भी नहीं है कि पायलट ऐसे नेताओं से अनभिज्ञ हैं। यह जानते हुए भी सचिन पायलट, सुधार नहीं कर पा रहे हैं। यह बड़ा सवाल है ?
दूसरा बड़ा कारण दिल्ली दरबार में गहलोत के सामने पायलट राजनीतिक रूप से कमजोर हैं। राजनीतिक कमजोरी का मुख्य कारण दिल्ली दरबार में सचिन पायलट का कोई भी मजबूत वकील नहीं है जो उनकी मजबूती के साथ वकालत कर सके। जबकि अशोक गहलोत की दिल्ली दरबार में एक बड़ी फौज है जो समय-समय पर उनकी पैरवी करती है। दिल्ली दरबार में अशोक गहलोत की वकीलों की बड़ी फौज के कारण ही अशोक गहलोत प्रदेश के तीन बार प्रदेश अध्यक्ष और तीन बार ही मुख्यमंत्री बने।
अशोक गहलोत की दिल्ली दरबार में वकीलों की मजबूत फौज होने का अनुमान इस बात से लगा सकते है कि 2023 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद लग रहा था कि अब अशोक गहलोत की राजनीति समाप्त हो जाएगी मगर पार्टी हाई कमान अशोक गहलोत को एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी देती हुई नजर आ रहा है।
अब मूल सवाल पर आते हैं, क्या राज्य विधानसभा के 6 सीटों के उपचुनाव कांग्रेस नेताओं के भविष्य की राजनीति तय करेंगे। भविष्य में कांग्रेस के नेता हम साथ-साथ हैं मगर सचिन पायलट कहां है, यह नजारा देखने को मिलेगा।
क्योंकि अब राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के अलावा जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा और दलित नेता टीकाराम जूली भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार दिखाई देने लगे हैं। गोविंद सिंह डोटासरा राज्य कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो वही टीकाराम जूली विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं। जब राजस्थान में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री की बात चलेगी तब राजस्थान के तमाम कांग्रेस के बड़े नेता साथ-साथ नजर आएंगे। मगर सचिन पायलट अलग-थलग दिखाई देंगे। यदि ऐसा हुआ तो सचिन पायलट को समझना होगा कि वह राजनीतिज्ञ नहीं है और उन्हें राजनीति नहीं आती है, क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के लिए जनता के बीच लोकप्रिय नेता होना ही नहीं बल्कि दिल्ली दरबार में अपनी पैरवी करने वाले वकीलों की फौज का होना जरूरी है। यह बात अभी सचिन पायलट के पक्ष में नजर नहीं आ रही है। दिल्ली दरबार में अशोक गहलोत की पैरवी करने वाली फौज से पार पाना फिलहाल सचिन पायलट के वश की बात नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि सचिन पायलट के पास अवसर नहीं आए मगर सचिन पायलट उन अवसरों को भुना नहीं पाए। पायलट ने दिल्ली दरबार में गहलोत की तरह अपनी फौज खड़ी नहीं की, यही वजह है कि सचिन पायलट राजस्थान की जनता के बीच लोकप्रिय नेता होने के बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments