
-राजेन्द्र गुप्ता
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख माह की चतुर्थी तिथि के दिन वैशाख संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। यह व्रत कृष्ण पक्ष में रखी जाती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस दिन कई जातक व्रत भी रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो जातक इस व्रत को रखते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती है। साथ ही जीवन में चल रही सभी कलह-क्लेश से भी छुटकारा मिल सकता है। यह व्रत विशेष रूप से व्यापारियों के लिए उत्तम फलदायी माना जाता है।
कब है विकट संकष्टी चतुर्थी?
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत का मुहूर्त 16 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से आरंभ हो रहा है और इस तिथि का समापन 17 अप्रैल को दोपहर 03 बजकर 23 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि के हिसाब से विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 अप्रैल को रखा जाएगा। इस दिन साधक भगवान गणेश की पूजा विधिवत रूप से कर सकते हैं और व्रत भी रख सकते हैं।
विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा का शुभ मुहूर्त
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विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त के बारे में जान लें।
प्रातः काल का मुहूर्त- सुबह 07:22 से सुबह 09:01 तक है।
रात्रि का मुहूर्त- शाम 06:54 से रात 08:15 तक है।
अमृत काल – शाम 07:22 से रात 09:01 तक है।
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विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन बन रहे हैं शुभ योग
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विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए शुभ योग का निर्माण होने जा रहा है।
सर्वार्थ सिद्धि योग- यह योग सभी प्रकार के कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला माना जाता है।
अमृत सिद्धि योग -यह योग किसी भी कार्य को सिद्ध करने और उसमें शुभता लाने के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है।
भद्रावास योग- हालांकि भद्रा को कुछ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, लेकिन कुछ विशेष स्थितियों में यह शुभ फलदायी भी हो सकता है।
शिववास योग- इस योग में भगवान शिव कैलाश पर विराजमान रहते हैं, जिससे पूजा और आराधना का फल शीघ्र मिलता है।
विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा का महत्व
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी समस्याएं दूर हो सकती है और मनोकामनाएं पूरी हो सकती है और व्यापारियों को भी उत्तम परिणाम मिलते हैं।
विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
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विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और शांत मन से व्रत का संकल्प लें।
इस दिन दिनभर उपवास रखने की परंपरा है।
घर के पूजा स्थल को साफ कर एक लाल या पीले वस्त्र पर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
अगर प्रतिमा न हो, तो एक साबुत सुपारी को गणेश जी का रूप मानकर पूजा करें।
अब भगवान गणेश को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर) से स्नान कराएं, फिर स्वच्छ जल से उन्हें शुद्ध करें।
इसके बाद गणेश जी को सिंदूर, अक्षत, चंदन, गंध, गुलाल, फूल, दूर्वा और जनेऊ अर्पित करें।
उनकी प्रिय मिठाई मोदक और मौसमी फल उन्हें भोग स्वरूप चढ़ाएं।
शाम को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें।
इसके बाद भगवान गणेश की दीप-धूप से आरती करें और अंत में व्रत का पारण करें।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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