
-सुनील कुमार Sunil Kumar
आज सुबह ही एक पश्चिमी समाचार पॉडकास्ट पर यह खबर थी कि अमरीका में सरकारी खर्च को घटाने, और कामकाज में किफायत के तरीके ढूंढने में लगे हुए एलन मस्क की अगुवाई वाले डोजी नाम के मिशन ने तमाम अमरीकी सरकारी संगठनों से कहा है कि वे अपने पुराने अंदाज के टेप या किसी और माध्यम पर रखी गई जानकारी को डिजिटल करें, ताकि खर्च घटाया जा सके। अभी अमरीका में बहुत से ऐसे निजी और सरकारी संस्थान हैं, जो संभालकर रखी गई जानकारी को पुराने जमाने के टेप या किसी और माध्यम पर रखते हैं ताकि वह ऑनलाईन न रहे, और हैक न हो सके। डिजिटल जानकारी किसी हार्डडिस्क से, सर्वर या क्लाउड से किसी चूक या तकनीकी गड़बड़ी से भी मिट सकती है, और ऐसे में पुराने अंदाज के बड़े-बड़े टेप पर जानकारी को रखना काम का हो सकता है। लेकिन बड़े-बड़े टेप की जानकारी आज एक छोटी सी पेनड्राइव पर भी आ सकती है, उसे रखना किफायती रहता है।
डिजिटली रखी गई जानकारी पर कैसा खतरा रहता है, यह दुनिया में जगह-जगह सामने आता है, जब सरकारों और कंपनियों के कम्प्यूटरों पर रखी गई करोड़ों लोगों की निजी जानकारी एक झटके में ही मुजरिमों के हाथ आ जाती है, और वे फिरौती पाकर ही इस जानकारी को वापिस लौटाते हैं, वरना वे इसे डार्क वेब कहे जाने वाले मुजरिमों के इंटरनेट पर बेचने के लिए निकाल देते हैं। आज दुनिया भर की सरकारें, और कंपनियां लोगों की जितनी जानकारियां इकट्ठा करती हैं, वे सब बारूद के ढेर पर निजता को बिठाने सरीखा रहता है, पहली चिंगारी से ही निजता खत्म हो जाती है। अब आज सुबह अमरीका में टेप का इस्तेमाल सरकार से खत्म करने की खबर के बाद एक दूसरी खबर दक्षिण कोरिया की पढऩे मिल रही है जिसमें वहां की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी हैकिंग की शिकार हो गई है, और सवा दो करोड़ से ज्यादा ग्राहकों की निजी जानकारियां हैकरों के हाथ लग गई हैं। अब यह कंपनी ग्राहकों के सिमकार्ड बदल रही है, ताकि उनकी जानकारी आगे सुरक्षित रखी जा सके। लेकिन दो करोड़ तीस लाख लोगों की कई तरह की निजी जानकारी जो कि सिमकार्ड से जुड़ी हुई थी, वह हैकरों के हाथ आ गई है, और उसका वे कई तरह से बेजा इस्तेमाल कर सकते हैं। सिमकार्ड हैक करने वाले मुजरिम टेलीफोन ग्राहक के फोन कॉल, टेक्स्ट मैसेज, फोन बैंकिंग, और सोशल मीडिया खातों तक भी पहुंच सकते हैं। दक्षिण कोरिया की सरकार ने इसके बाद पूरे देश के डेटा प्रोटेक्शन सिस्टम की समीक्षा करने का आदेश दिया है।
भारत में भी एक डेटा प्रोटेक्शन कानून बनाया गया है जिसके तहत सरकार से परे की निजी कंपनियों को ग्राहकों के डेटा सुरक्षित रखने की बड़ी जिम्मेदारी दी गई है, और ऐसा न होने पर इन कंपनियों या कारोबारियों पर बहुत बड़ा जुर्माना लगाया गया है। वैसे कई लोगों का यह कहना है कि भारत का यह कानून सूचना के अधिकार को खत्म करने वाला है, और खोजी पत्रकारिता को भी खत्म करने वाला है क्योंकि अब सूचना के अधिकार में किसी के बारे में निकाली गई जानकारी को किसी भी कम्प्यूटर उपकरण या सॉफ्टवेयर पर डालने के लिए संबंधित व्यक्ति की इजाजत लेनी होगी। अब भला कौन ऐसे होंगे जो उनके बारे में निकाली गई जानकारी के ऐसे उपयोग की इजाजत देंगे? यह माना जा रहा है कि जितने सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ, पत्रकार, और आरटीआई कार्यकर्ता हैं, उनके अधिकारों के दिन अब लद गए हैं, और नए डेटा प्रोटेक्शन कानून के तहत उनके काम को बड़ी आसानी से जुर्म साबित किया जा सकता है।
हम दक्षिण कोरिया की इस ताजा हैकिंग को भारत के इस कानून के साथ मिलाकर अगर देखें, तो कंपनियों पर तो ग्राहकों की जिम्मेदारी, दूसरे कारोबारियों से उन्हें कानूनी रूप से मिली जानकारी को संभालकर रखने की बड़ी जिम्मेदारी डाली गई है, जितने किस्म की लोकतांत्रिक ताकतें हो सकती हैं, उनके लिए किसी भी तरह की जानकारी पाने के बाद भी उसके किसी भी कम्प्यूटर या दूसरे उपकरण पर इस्तेमाल पर कड़ी रोक लगा दी गई है। इस कानून से भारत में अब सूचना के अधिकार से आई हुई पारदर्शिता के हाथ-पैर काट दिए गए हैं। निजता, और दूसरी तरफ सूचना के अधिकार के बीच एक टकराव सी नौबत भारत में खड़ी कर दी गई है, और इस कानून की सीमा को पार करने वालों को कैद भी दी जा सकती है, और इस पर पांच सौ करोड़ रूपए तक का जुर्माना भी रखा गया है।
अब आज के डिजिटल जमाने में जब बहुत से देशों की सरकारें जनता से जुड़ी हर जानकारी को कम्प्यूटरों पर दर्ज कर रही है, और निजी कारोबारियों के कम्प्यूटरों पर ग्राहकों की सारी जानकारी उनके आधार कार्ड, पैनकार्ड जैसे सरकारी दस्तावेजों के साथ जुड़ी हुई है, ऐसे में कहीं भी, कुछ भी निजी नहीं रह गया है। इन सबसे और ऊपर जाकर सोशल मीडिया हैं, जहां पर लोग मुफ्त में मिल रही सहूलियत के एवज में उसे तमाम किस्म की इजाजत दे देते हैं, नतीजा यह होता है कि आप वॉट्सऐप पर किसी दोस्त से जूते के किसी अच्छे ब्राँड के बारे में पूछें, तो फेसबुक आपको तुरंत ही जूतों के, और उस ब्राँड के इश्तहार दिखाने लगता है, और अगर फेसबुक से उस ब्राँड के प्रतिद्वंद्वी ने विज्ञापनों का सौदा किया हुआ है, तो जैसे ही आप एक ब्राँड इंटरनेट पर ढूंढते हैं, तो पल भर में आपको आपके सोशल मीडिया पेज पर भी उस ब्राँड, या उसके मुकाबले के इश्तहार दिखने लगते हैं। यह सब हमारी ही अलग-अलग वेबसाइटों, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को दी गई छूट के कारण होता है।
आज का वक्त लोगों को सावधानी सिखाने का है, जिस जगह जितनी जानकारी देनी है, उससे अधिक कोई भी इजाजत न दी जाए, और मुफ्त के जो एप्लीकेशन या वेब पेज हैं, उन्हें बहुत सोच-समझकर ही इस्तेमाल किया जाए। आज लोगों के बैंक खाते भी उनकी डिजिटल जानकारी के साथ ऑनलाईन जुड़े हुए हैं, और बात की बात में हैकर उन्हें खाली भी कर सकते हैं। दक्षिण कोरिया जैसी बड़ी काबिल और माहिर टेक्नॉलॉजी के बीच भी हैकरों ने इतनी बड़ी घुसपैठ कर ली है, इसलिए भारत जैसे देश में सरकार और जनता दोनों को जानकारी बहुत संभालकर रखनी चाहिए, वरना जनता के लुट जाने पर भी उसे लंबे समय तक पता भी नहीं चलेगा।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)