
-कृष्ण बलदेव हाडा-

कोटा। राजस्थान के कोटा में कोचिंग छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं से स्थानीय प्रशासन ही नही बल्कि
इन कोचिंग छात्रों के बलबूते पर अपना आर्थिक साम्राज्य खड़ा किए बैठे कोचिंग संस्थानों और हॉस्टल संचालकों ने कोई सबक सीखा है, ऐसा प्रतीत होता नजर नहीं आ रहा।
दो दिन पहले कोटा के एक कोचिंग छात्र के आत्महत्या करने की घटना से तो कम से कम यही तथ्य स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया है।
कोटा में दिसंबर महीने में 13 तारीख को तीन कोचिंग छात्रों के आत्महत्या करने के घटनाक्रम के बाद जिस तरह से यह मामला देश भर में सुर्खियों में आया था,उसके बाद बढ़ी प्रशासनिक सख्ती से यह उम्मीद जागी थी कि कोटा की कोचिंग संस्थान-हॉस्टल संचालक कोई सबक सीखेंगे,कम से कम इसके आसार अभी तक तो नजर नहीं आ रहे क्योंकि राजस्थान में ही नहीं बल्कि देश भर में प्रमुख कोचिंग सिटी का दर्जा हासिल कर चुके कोटा को लेकर इस घटनाक्रम से नकारात्मक छवि बनने का भय न तो कोचिंग संस्थानों में नजर आता नजर आ रहा है और न ही जिला प्रशासन लगभग निरंकुश हो चुके इन कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगा पाने में सफल हो पा रहा है।
कोटा में पिछले सालों में लगातार यहां आकर कोचिंग करने वाले छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाएं होते रहने और पिछले साल 13 दिसम्बर को तो एक ही दिन में एक ही कोचिंग संस्थान एलन के दो छात्रों सहित तीन के आत्महत्या करने की घटना के बाद दो दिन पहले कोटा के महावीर नगर के एक हॉस्टल में रहकर जेईई की कोचिंग कर रहे उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर निवासी एक कोचिंग छात्र अली राजा (17) के फांसी लगाकर आत्महत्या करने की घटना के बाद तो यह बात पुख्ता हो गई है कि जिला प्रशासन की कोशिशों के बावजूद कोटा के कोचिंग संस्थान अपने कोचिंग छात्रों के प्रति पूरी तरह से लापरवाही बरत रहे हैं क्योंकि जिस जेईई की कोचिंग कर रहे छात्र अली राजा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है,वह पिछले करीब छह माह से कोटा के एक निजी कोचिंग संस्थान में कोचिंग कर रहा था और महावीर नगर के एक हॉस्टल में किराए के कमरे में अकेला रह रहा था लेकिन यह छात्र पिछले एक महीने से कोचिंग के लिए संस्थान नहीं जा रहा था,फ़िर भी कोचिंग संस्थान की लापरवाही का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उस कोचिंग संस्थान ने एक बार भी इस छात्र अली राजा से व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर कोचिंग को नही आने का कारण जानने की कोशिश करना तो दूर, एक टेलीफोन कॉल करके उसके परिवारजनों को इस बारे में जानकारी देना तक भी जरूरी नहीं समझा।
यहां तक कि महावीर नगर के जिस हॉस्टल में यह छात्र निवास करता था, वहां से वह पिछले एक महीने से लगातार कोचिंग संस्थान नहीं जाकर इसी हॉस्टल के अंदर ही अकेला कमरे में रह रहा था लेकिन इसके बावजूद इस कोचिंग छात्र की गतिविधियों के बारे में हॉस्टल संचालकों को कुछ भी असामान्य नजर नहीं आया और इसी का नतीजा यह निकला है कि उन्होंने इस बारे में उसके साथियों-परिवारजनों से संपर्क पर बताने की कोई कोशिश तक नही की। अब यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की जा रही है कि इस कोचिंग छात्र ने अपने अभिभावकों के 2-3 सैलफ़ोन नंबर बता रखे थे इसलिए संपर्क नहीं हो सका। सवाल यह है कि अगर 2-3 नंबर भी बता रखे थे तो क्या उन नंबरों पर फोन करने की कोशिश की गई?, ऐसा प्रतीत नहीं होता। महावीर नगर थाना पुलिस भी इस मामले को ज्यादा गंभीरता से ले रही है, ऐसा नजर नही आ रहा।
कोचिंग छात्र के अली राजा के आत्महत्या कर लेने के बाद पुलिस ने शव बरामद कर उसे कोटा मेडिकल कॉलेज मेडिकल के न्यू हॉस्पिटल की मोर्चरी में रखवा दिया था और पोस्टमार्टम के लिए उसके परिवारजनों के आने की प्रतीक्षा की जा रही थी। छात्र के चाचा सईक सलमानी आज बुलंद शहर से कोटा पहुंचे, तब जाकर शव का पोस्टमार्टम करवाया गया और उनके सुपुर्द किया गया
कोटा से रवाना होने से पहले छात्र के चाचा सईक सलमानी ने कोटा के कोचिंग और हॉस्टल संचालकों के मालिकों के नजरिए और उनकी मनोवृति पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया। उन्होंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि उनकी जानकारी में यह बात लाई गई है कि अली राजा पिछले एक माह से कोचिंग के लिए नहीं जा रहा था तो इस बारे में कोचिंग संचालक या हॉस्टल मालिक-मैनेजर ने उसके माता-पिता को सूचना देना तक भी गवारा नहीं समझा। एक फोन कॉल तक उन्हें नहीं किया गया। उनको तो सिर्फ सूचना मिली कि उनके पुत्र ने फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली है। इससे ज्यादा अफ़सोसजनक क्या बात हो सकती है? यहां सवाल यही उठता है कि जब यदि कोचिंग छात्र ने अपने माता-पिता के दो-तीन अलग-अलग नंबर भी हॉस्टल संचालक या कोचिंग संस्थान को दे रखे थे तो उसकी मृत्यु के बाद इस हादसे की सूचना कैसे एक ही फोन कॉल के जरिए उसके अभिभावकों तक पहुंच गई जबकि यही नम्बर हॉस्टल संचालक, कोचिंग संस्थान के पास भी मौजूद थे। जाहिर है- इन दोनों में से किसी ने भी छात्र के परिवारजनों को उसके एक महीने से कोचिंग नहीं जाने के बारे में जानकारी देना तक जरूरी नहीं समझा।
दिसंबर महीने में जब एक ही दिन में तीन कोचिंग छात्रों के आत्महत्या कर लेने की घटना घटी थी तो राष्ट्रीय स्तर पर यह मामला उछलने के बाद जिला प्रशासन से लेकर मानव अधिकार आयोग तक सक्रिय हुए थे और प्रशासनिक स्तर पर कोटा के कोचिंग संस्थानों के मालिकों और हॉस्टल संचालकों की बैठक बुलाकर उन्हें राज्य सरकार की ओर से कोचिंग छात्रों के बारे में तय की गई गाइड लाइन की सख्ती से अनुपालन करने के निर्देश दिए थे और छात्रों को तनाव रहित माहौल उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करने के लिए कहा था और यह भी निर्देश दिए थे कि छात्रों को सप्ताह में कम से कम एक दिन का अवकाश प्रदान कर कोचिंग से मुक्ति दी जाए ताकि वह कोचिंग के इतर अन्य मनोरंजनात्मक गतिविधियों में हिस्सा लेकर शैक्षणिक तनाव की स्थिति से उबर सकें लेकिन इसके बावजूद कोचिंग संस्थान इस गाइड लाइन का कितना पालन कर रहे हैं, यह तो पता नहीं लेकिन इतना तय है कि वे नियमित रूप से अपने यहां पढ़ने आने वाले छात्रों पर भी निगरानी रख पाने में पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं। एक माह से लगातार कोचिंग के लिए नहीं आ रहे छात्र अली राजा के आत्महत्या कर लेने के प्रकरण से यह तथ्य स्पष्ट रूप से स्थापित हो गया है।
इस बीच मंगलवार को राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जीके व्यास ने ‘‘कोचिंग के छात्र ने फंदा लगाकर की आत्महत्या-एक वर्ष में 22 कोचिंग छात्रों की मौत, 18 फंदे पर झूले’’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार पर स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।
मानव अधिकारी आयोग के अध्यक्ष ने प्रत्येक कोचिंग सेन्टर में छात्रों की संख्या, कोचिंग सेन्टरों में नियमित रूप से पढ़ाई के लिए किसी प्रकार के भेदभाव, छात्रों की रहने की व्यवस्था, कोचिंग सेन्टरों में ली जाने वाली फीस, फीस संबंधी परिपत्र के संबंध में तथ्यात्मक रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए हैं। अध्यक्ष ने कहा है कि कोटा शहर में कई कोचिंग सेन्टर है जहां प्रदेश और प्रदेश के बाहर के छात्र नियमित रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए तैयारी करते हैं, कई होनहार छात्र आत्महत्या कर लेते हैं जो एक विचारणीय प्रश्न है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक अच्छा माहौला होना जरूरी है लेकिन पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि परीक्षाओं में शामिल होने के लिए जो छात्र कोचिंग सेन्टरों में जाते हैं वे कुन्ठित हो जाते हैं। जबकि शिक्षा प्राप्त करने के लिए कुन्ठित होना समझ से परे है। कोचिंग सेन्टरों में छात्रों की सुरक्षा तथा उनके साथ होने वाले व्यवहार पर अंकुश लगाना आवश्यक है, क्योंकि यह सीधे रूप से मानव अधिकारों से जुड़े है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

















