
-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान के कोटा संभाग में पिछले रबी के कृषि क्षेत्र में लहसुन के बम्पर उत्पादन के बाद उचित भाव नहीं मिलने से कई किसान काल-कवलित हुए थे जो अब समूचे संभाग में सोयाबीन के फसल को व्यापक नुकसान के बाद दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से सदमे में अपनी जान गवा रहे हैं। ताजा घटनाक्रम के तहत कोटा जिले के सांगोद क्षेत्र के लटूरा गांव निवासी एक किसान महेंद्र नागर की सोयाबीन की फसल के खराबे के चलते ही सदमें के कारण जान चली गई जिनका आज लटूरा गांव में मुक्ति धाम पर ही मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम के बाद गमगीन माहौल में अंतिम संस्कार कर दिया गया।
गांव के लोग सदमें के हालात में
पति की लम्बी उम्र की कामना के साथ मनाये जाने वाले त्यौहार करवा चौथ के दिन हुए इस हादसे को लेकर पूरे लटूरा गांव के लोग सदमें के हालात में रहे और आज सुबह-दिन में शायद ही गांव का कोई ऐसा कोई घर रहा हो जहां चूल्हा जला हो। पूरे गांव के लोग सदमें में थे और उन्होंने दिवंगत किसान के परिवारजनों की सरकार की ओर से आर्थिक मदद की मांग की जिस पर मौके पर मौजूद उपखंड अधिकारी ने उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया।
व्यापक पैमाने पर नुकसान
कोटा संभाग के चारों जिलों में बीते सप्ताह बेमौसम बरसात हुई थी जिससे खरीफ के मौसम में हाडोती की मुख्य उपज माने जाने वाले सोयाबीन ही नहीं बल्कि मक्का और दलहनी फसलों उड़द, मूंग को व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुंचा। कई इलाकों में तो नुकसान इतने बड़े पैमाने पैमाने पर हुआ कि किसान सदमें की हालत में आ रहे हैं। हाडोती अंचल की किसानों के लिए यह लगातार दूसरा झटका है। इस बार खरीफ़ के सत्र में समूचे अंचल में बेमौसम की बरसात ने फसलों को व्यापक नुकसान पहुंचाया है तो इसके विपरीत बीते रबी के कृषि क्षेत्र में अनुकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण समूचे कोटा संभाग में लहसुन का बम्पर पैमाने पर उत्पादन हुआ लेकिन भावों के गर्त में चले जाने से सारा बेड़ा गर्क हो गया। किसानों को लहसुन की फसल के लाभ मिलना तो दूर, लागत भी नहीं मिल पाई। तब भी अनेक किसानों की सदमें में जान चली गई थी और अनेक कर्ज के नीचे दब जाने से आत्महत्या को मजबूर हो गए थे। अब इस स्थिति यह है कि जबकि दीपावली बाद में रबी के नये कृषि सत्र के लिए किसानों को अपनी फसल की बुवाई की तैयारी करनी है, किसानों को आज भी लहसुन के अपेक्षित भाव नहीं मिल पा रहे हैं। यदि किसी सामर्थ्यवान किसान ने अच्छे भाव मिलने की उम्मीद में लहसुन को अपने घर,खेत-खलिहान में बनाये गये शेड़ में सहेज कर रखा है तो उसे भी कोई लाभ मिलने की उम्मीद नहीं है क्योंकि कोटा संभाग की मंडियों में आज भी लहसुन के खरीद के भाव दो से चार हजार रुपये प्रति क्विंटल ही है।
उपज का लाभकारी मूल्य मिलने की कोई उम्मीद नही

इस बारे में हाडोती किसान यूनियन के महामंत्री दशरथ कुमार का कहना है कि जब तक केंद्र और राज्य सरकार सामान्य एवं प्राकृतिक आपदा की स्थिति में वैज्ञानिक तरीके से समर्थन मूल्य निर्धारित करके किसानों से उनकी फसलों की खरीद नहीं करेगी, तब तक किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिलने की कोई उम्मीद नही है। इसके लिए यह जरूरी है कि केंद्र सरकार कृषि लागत मूल्य आयोग को चुनाव आयोग की तरह स्वायत्तशासी निकाय घोषित करें जो अभी स्वतंत्र इकाई के रूप में नहीं बल्कि केंद्र सरकार के दबाव में काम करते हुये फसलों के समर्थन मूल्य तय करता है जबकि केंद्रीय सरकार दावा करती रहती है कि वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुरूप किसानों से लागत मूल्य से डेढ़ गुना ज्यादा समर्थन मूल्य घोषित करके उपज की खरीद कर रही है किन्तु व्यवहारिक स्तर पर यह गलत है। समर्थन मूल्य घोषित करने वाला निकाय ही कृषि लागत मूल्य आयोग दबाव में समर्थन मूल्य दर तय करता है तो जो वास्तविक लागत मूल्य से काफ़ी कम होती है और इसके चलते किसानों को उनकी उपज का पर्याप्त भाव नहीं मिल पाता।