-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
कोटा को भले ही चम्बल नदी का वरदान मिला है लेकिन रियासतकाल में दूर-दूर तक फैले गांवों में सिंचाई और पेयजल के लिए यह पानी नही पहुंचाया जा सकता था। चम्बल का लाभ सिर्फ तट के आसपास के वाशिंदे ही उठा सकते थे।

यहां के गांवों को वर्षभर जल उपलब्ध रहे इसके लिए प्राचीन समय से ही यहां तालाब निर्माण की परंपरा रही थी। आसपास के गांवों के लिए राजा धीरदेव ने करीब 12छोटे बड़े तालाबों की श्रंखला का निर्माण कराया था। जहां वर्षाजल संचित कर वर्षभर काम मे लिया जाता था।

#इतिहासविदश्रीफ़िरोज़अहमदजीकेअनुसार इसी परम्परा में राजा रणवीर सिंह खींची ने 10वीं शताब्दी में रानपुर तालाब का निर्माण कराया था। व्यवस्था इस प्रकार से की गई थी कि वर्षाकाल ऊपरी पठारी क्षेत्र के तालाब भर जाने पर होने वाले ओवरफ्लो का पानी उससे नीचे के तालाबों को भरता जाता था।

ऐसे ही रानपुर तालाब से पानी अनंन्तपुरा, छत्रपुरा, कोटड़ी आदि निचले तालाबों में आ जाता था। इसलिए रियासतकाल से लेकर अभी तक कोटा शहर में पानी की कभी कोई कमी नहीं आई, रियासत काल में लोगों को पानी की बर्बादी रोकने, लोगों को जागरूक करने के लिए बारातियों तक से पानी का टैक्स वसूला जाता था।

बारातियों की संख्या के अनुसार प्रतिदिन के हिसाब से दरबार द्वारा टैक्स वसूला जाता था। रियासतकाल के समय की जानकारी रिकॉर्ड के अनुसार उस समय धर्मशाला में ठहरने वाले बारातियों से पानी खर्च भी लिया जाता था।

पेयजलरिचार्जकेलिएखासरहाहैरानपुरका_तालाब.
शहर के प्रमुख तालाबों और अन्य जल स्त्रोत को रिचार्ज में इसकी उपयोगिता रही है। यह तालाब 90 हेक्टेयर में फैला है। पानी का गेज 7 फीट तक रहता है। 32 लाख क्यूबिक फीट इसकी भराव क्षमता और कैचमेंट एरिया 6.4 वर्ग किलोमीटर तक का है।

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रानपुर तालाब प्रवासी और अप्रवासी जलीय पक्षियों का पसंदीदा स्थल रहा है। यहां वर्षभर अप्रवासी और प्रवासी पक्षियों को निहारने का आनन्द उठाया जा सकता है, विशेष तौर पर सर्दियों के दौरान यहां यूरोप और हिमालय क्षेत्र के पक्षियों का मेला लगता है। पक्षीप्रेमी प्रकृतिविदों के अध्ययन स्थल के रूप में भी यह तालाब महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
