
-विवेक कुमार मिश्र

एक दिन एक सज्जन मिले
और बिना किसी बात के
बिना किसी संदर्भ के
बिना कुछ आगे पीछे सोचे
कहने लगे कि एक चित्र …
बरगद का बनाओं
बरगद कितना सुंदर लगता है,
कितनी छाया देता है
और इस गर्मी में तो
बरगद के नीचे सुकून मिलता है
मैंने कहा.. हां ! कोशिश करते हैं
पर बरगद के पेड़
बरगद के ही पेड़ होते हैं
कहां कोई भी कल्पना में
उतार सकता बरगद,
एक शाखा से शुरू करते हैं कि
अनंत शाखाएं आ खड़ी होती हैं
और इस अनंतता में उनकी जड़ें
अलग से गिनती कराती हैं
जोकि गिनती में नहीं आती ,
हर शाखा के साथ
एक पूरे पेड़ की कहानी है
बरगद , एक साथ न जाने क्या क्या
साध कर चलता रहता है
कहते हैं कि इसी बरगद के नीचे
पूरी एक दुनिया अपनी उम्र गुजार देती है
और तुम बरगद के चित्र उतारने में लगे हों
न जाने कितनी पीढ़ियां इसी बरगद के नीचे
आयीं और चली गई
पर बरगद इसी तरह और ऐसे ही बना रहा ,
बरगद हजारों हजार रंग में
जीता रहा है दुनिया भर के रंग
और तुम हो कि बरगद के चित्र बना रहे हों
भला कैसे कोई बरगद का चित्र बनायेगा
एक तरफ से बनाना शुरू करता है कि
दूसरी तरफ एक और
बरगद उग जाता है
हर पल एक नई टहनी ,
एक नई पत्ती और एक नया फल
आ ही जाता
भला इन सबको कैसे समेटे
किसी एक चित्र में
बरगद तो बरगद ही है,
जहां तक आंख जाती है
बरगद ही दिखता …और कुछ नहीं…!