अतुल कनक के राजस्थानी काव्य संग्रह ‘पानखर में प्रेम ‘ का विमोचन

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-यदि हम अपनी भाषा को अपनी ताकत नहीं बनाएंगे तो लोग हमारे अधिकारों को हमसे छीनेंगे-अतुल कनक

कोटा। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि- लेखक अतुल कनक के राजस्थानी काव्य संग्रह ‘पानखर में प्रेम’ : एक नारसिसिस्ट की प्रेम कवितावाँ का विमोचन बुधवार को सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय में हुआ। एक अनौपचारिक समारोह में यह विमोचन पुस्तकालय के नियमित पाठकों ने किया।

अतुल कनक ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी भाषा का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि युवा उस भाषा की सामर्थ्य के प्रति कितने आस्थावान हैं। लोग लोक भाषाओं का प्रयोग करते हुए हिचकिचाते हैं क्योंकि सैकड़ों बरसों की गुलामी ने हमारे आत्मगौरव पर प्रहार किया है। उन्होंने राजस्थानी भाषा की सामर्थ्य का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि हम अपनी भाषा को अपनी ताकत नहीं बनाएंगे तो लोग हमारे अधिकारों को हमसे छीनेंगे।

उन्होंने कहा कि आज तुलसी जयंती की पूर्व संध्या है। तुलसी ने अपनी भाषा और अपनी आस्था को ही अपनी ताकत बनाया। उन्होंने अपनी कविता से राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और महानायक के रूप में जन जन में लोकप्रिय करने में बड़ी भूमिका निभाई। तुलसी के राम कई जगह वाल्मीकि के रामचरित्र से अधिक उदात्त दिखते हैं। अतुल कनक ने युवाओं से संवाद करते हुए यह भी कहा कि हमें अपने आ​त्मि​यों के साथ ही नहीं प्रकृति, पर्यावरण और परिवेश के प्रति भी मैत्री भाव रखना होगा।

इस अवसर पर मंडल पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि भाषाएं एक दूसरे को समृद्ध करती हैं। भाषाएं आपस में कभी नहीं लड़ती, स्वार्थ उन्हें लड़ाते हैं। उन्होंने आधुनिक समाज में तुलसी के सृजन के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि मित्रता का रिश्ता जीवन के सबसे पवित्र रिश्तों में है और इसका निर्वहन स्वार्थ से ऊपर उठकर किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने सरस्वती और गोस्वामी तुलसीदास के चित्रों के आगे दीप प्रज्ज्वलन किया। शशि जैन ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर युवाओं ने भाषा संबंधी अपनी जिज्ञासाएं भी साझा की। मंच संचालन वयोवृद्ध पाठक के.बी.दीक्षित ने किया।

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