
– विवेक कुमार मिश्र

ठिठुरते समय में
किलकते हुए समय का
आ जाना ही खुशहाली है
कहते हैं कि खुशहाली
हाठ-बाजार में नहीं बिकती
खुशहाली बहुत गहरे से
आपके भीतर ही बैठी होती है
खुश होने के लिए कहीं दूर नहीं
अपने अंतर में जाना होता है
अंतर के घाट पर
जब जीवन जीने लगते हैं तो
कुछ भी बाकी नहीं रहता
खुश रहना है कहकर
कोई खुश नहीं होता
खुश रहो का आशीर्वाद देते रहते हैं
बड़े-बुजुर्ग क्योंकि उन्हें पता है कि
खुशियां कोई भी खरीद नहीं सका
न ही किसी शोरूम में
खुशी नाम की चिड़िया होती है
इसीलिए राह चलते भी
पुरनिया बाबा दादा की पीढ़ी के लोग
इफरात में हाथ उठाकर
आशीर्वाद देते रहते थे
इस विश्वास से कि
एक न एक दिन
यह फलित होगा
उन्हें अपने आशीर्वाद पर
किसी ज्योतिषी से ज्यादा भरोसा होता था
खुशियों की बारिश
या तो आसमान से होती है
या आत्मा जब आह्लादित होकर नाचती
या आशीर्वाद की मुद्रा में उठे हाथ से होती है
आप कुछ करें या न करें
पर इतना तो करते ही चलें कि
आपकी झोली में आशीर्वाद की
खुशियों भरी बारिश जमा होती रहे
जब कुछ नहीं होगा तब भी
ये खुशियों की बारिश
अंधेरे पाट पर भी
चमकीला रास्ता बनाना नहीं छोड़ेगी ।