
– विवेक कुमार मिश्र-

चाय, चाय जैसी मिल जाए
तो मन आत्मा मगन हो जाती है
चाय है और चाय को पीते हुए
मिठास, स्वाद, ताजगी
और एक अपरिमित सुख को पी रहे होते हैं
चाय के साथ ही
आह्लाद का भाव आ जाता है
वाह क्या चाय बनी है
मन खुशी से झूम जाता
चाय ऐसे पीते हैं जैसे कि
कुछ और हो ही नहीं
पर ऐसी चाय यूं ही नहीं मिल जाती
बड़ी मुश्किल से मिलती है
बहुत सारे लोग इस तरह से सोचते हैं कि
चाय ही तो है थोड़ी पत्ती थोड़ी शक्कर
और दूध पानी मिलाकर गर्म कर लेंगे
और हो गई चाय
अरे! चाय, इतना भर नहीं है कि…
चाय पत्ती घोल ली
और चाय पी लिया
चाय बनती है, चाय बनाई जाती है
और मन से बनायीं जाती है
जब चाय को इच्छा के साथ,
मन से बनाते हैं
मद्धिम आंच पर पकने देते हैं
और फिर खौलती चाय में
जब रंग और महक
एक साथ उतर जाती है
तब जाकर चाय पीते हैं
और फिर चाय का
यह जो स्वाद और आनंद है
वह छोड़ देता है चेतना के रंग में,
उर्जा के साथ कि चाय है,
फिर सारे काम धाम पूरे हो जाएंगे
चाय हमारे मन मस्तिष्क पर राज करती है।
– विवेक कुमार मिश्र

















