
-विवेक कुमार मिश्र

पेड़ ने कहा
जो किसी ने नहीं सुना
पेड़ जो नहीं कहा
उसे सब अपनी जरूरत के हिसाब से
कहते रहे इस क्रम में सब
अपने अपने हिस्से का अस्तित्व लेकर
पेड़ के सामने से ही निकलते गये
फिर भी पेड़ ने किसी से कुछ नहीं कहा
पेड़ अकेले ही सहता रहा दर्द
हर मौसम की कहानी कहता रहा है पेड़
पेड़ का दर्द कोई नहीं जानता
सब अपने अपने हिस्से की कहानी सुनाते रहे हैं
पेड़ की कोई सुने ना सुने
पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता
वह तो अपने हिसाब से दुनिया को देखता रहता है
और अपने हिसाब से ही अपना काम करता है
पेड़ ये हिसाब नहीं करता कि
कौन उसके साथ खड़ा था
और कौन दूर से तमाशा देख रहा था
पेड़ तो सबके लिए ही जीता चला गया
और हर बार बस पेड़ यहीं कहता है कि
अपने लिए ही नहीं
औरों के लिए भी कुछ करते चलों
पेड़ बस इसी तरह चलता रहा है
अपनी जड़ों में दुनिया भर का दुःख दर्द लिए
पेड़ बस चुपचाप चलता रहा है
आप कुछ और करें या न करें पर
पेड़ की कथा सुनते और सुनाते रहे।