
ग़ज़ल
-डॉ. रामावतार सागर-

कैसे भुलाएं उनको अपनी दास्ताॅं से हम।
कैसे जुदा करेंगे खुश्बू गुलसिताॅं से हम।
बीता नहीं है कोई पल उनके बगैर यार,
लो हो गये बगैर उनके बेजुबाॅं से हम।
उनकी नजर में आज भी छोटे ही हम रहे,
जिनको बड़ा समझते रहे आसमाॅं से हम।
यूं तो गुज़र के आ गये उनकी गली से भी,
हमको लगा के आये गुजर इम्तिहाॅं से हम।
लेकर कहाॅं पर जाएंगे गम के गुबार ये,
खुद ही उड़ा रहे धुऑं अपने मकाॅं से हम।
जब से रूआब आ गया बच्चों के नूर पे,
दिखने लगे तभी से कुछ तो जवाॅं से हम।
सागर तुम्हारी याद ने इतना किया कमाल,
ग़ज़लों पे नाम छोड़ के जाते जहाॅं से हम।
डॉ. रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान