मां को लिए लिए चलता है

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• विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

मां को लिए लिए चलता है !
इतना खुश कि उससे खुश आदमी
इस ग्रह पर दिखा नहीं
वह चलता ही चला जाता
उसके कदम कभी रुके नहीं कभी थके नहीं
वह जो मां को लिए लिए चलता था
हर जगह हर कहीं खुश दिखता था
मां से जो खुशी का प्रसाद लिए हुए
दुनिया में चलता था
हां वह चलता रहा उसका चलना चर्चा में
बना रहता
मां को लिए लिए जो चलता चला जा रहा था
उसे हमेशा भरा ही पाया
भरा भरा वह भरा पूरा आदमी चलता था
उसे कभी भी खाली हाथ नहीं देखा
न ही अभावों का रोना कि
यह है तो यह नहीं
वह तो मगन ही दिखता
और कहता कि उसकी झोली में मां है
मां को लिए लिए चलता है !

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