
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

यूँ न साहिल* पे खड़े होके समन्दर देखो।
देखना है तो ज़रा इसमें उतरकर देखो।।
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चल पड़ा हूँ मैं मुहब्बत की कठिन राहों में।
कब तेरे इश्क़ की होती है मुहिम सर* देखो।।
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पार लगना नहीं लगना तो ख़ुदा जाने है।
डूब जाते हैं शनावर* यहाँ अक्सर देखो।।
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पहले होती थी तहफ़्फ़ुज़* के लिये शहर-पनाह*।
अब तो रहज़न* हैं फ़सीलों* के बराबर देखो।।
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हाथ आते हैं कहीं शोख़ सितमगर* यूँ ही।
तुम ज़रा तेज़ हिरन को तो पकड़कर देखो।।
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किसको मिलते हैं तेरे क़ुर्ब* के लम्हे* “अनवर”।
कौन बनता है मुक़द्दर का सिकन्दर देखो।।
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शब्दार्थ:-
साहिल*किनारा
मुहिम सर करना*अभियान सफल होना
शनावर*तैराक
तहफ़्फ़ुज़*सुरक्षा
शहर-पनाह*शहर को रक्षात्मक दीवार,परकोटा
रहज़न*डाकू, लुटेरे
फ़सीलों*ऊंची दीवारों
शोख़ सितमगर*चंचल हसीना,प्रेमिका
क़ुर्ब*समीप होना
लम्हे*क्षण
मुक़द्दर का सिकन्दर*भाग्यवान
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शकूर अनवर
9460851271