हिन्दी साहित्य में एक नाम जिसे नए युग की मीरा कहते हैं और वह हैं महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा की पुण्य तिथि 11 सितंबर को विशेष

-द ओपिनियन डेस्क-

हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा का नाम हमेशा सर्वोपरि रहेगा। उन्हें छायावादी युग के जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है। महाकवि निराला ने उन्हें हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती कहकर संबोधित किया था। उन्होंने बेहतरीन गद्य लेखिका की तरह काव्य के क्षेत्र में महारत दर्शायी।
विलक्षण प्रतिभा की धनी महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रखाबाद जिले में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा और माता हेमरानी देवी दोनों ही शिक्षा के पक्षधर थे। महादेवी का विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया गया लेकिन उनका ससुराल पक्ष उनकी शिक्षा का पक्षधर नहीं था। यही वजह थी कि उनकी पढ़ाई पर बंदिश लगा दी गई। लेकिन वह इस बंधन को स्वीकार नहीं कर सकीं।
नौ वर्ष की यह अबोध बालिका जब ससुराल पहुंची और ससुर ने उनकी पढ़ाई पर बंदिश लगा दी। विवाह के एक वर्ष बाद ही उनके ससुर का देहांत हो गया और तब उन्होंने पुन: शिक्षा प्राप्त की और फिर ससुराल नहीं गईं। उन्होंने अपने ससुराल और विवाह को त्याग दिया। उन्होंने आठवीं कक्षा में पूरे प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उन्होंने अपने गद्य-लेखन द्वारा बालिकाओं, विवाहिताओं और बच्चों के प्रति समाज में अन्याय के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई। समाज सुधार और नारी स्वतंत्रता से संबंधित उनके विचारों में दृढता और विकास का अनुपम सामंजस्य मिलता है। सामाजिक जीवन की गहरी पर्तों को छूने वाली इतनी तीव्र दृष्टि, शोषित नारी और उसके जीवन के वैषम्य को आंकने वाली उनकी जागरुक प्रतिभा और निम्न वर्ग के निरीह, साधनहीन प्राणियों के अनूठे चित्र हिन्दी साहित्य में उनके द्वारा ही पहली बार संभव हुए। वह रचनाकार के साथ एक कुशल अनुवादक भी थीं। उन्होंने दर्जनों रचनाओं का अनुवाद किया।
उनके कविता संग्रहों में प्रमुख रूप से नीहार, रश्मि, नीरजा, साँध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, अग्निरेखा, प्रथम आयाम व गद्य संग्रहों में अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखायें, पथ के साथी व मेरा परिवार प्रमुख हैं। उन्होंने साहित्यकारों के कल्याण हेतु साहित्य सहकार न्यास की स्थापना भी की थी।
महादेवी वर्मा के काव्य में प्रेम एक मूल भाव के रूप में प्रकट हुआ है। उनका प्रेम अशरीरी है। यह करूणा से आप्लावित प्रेम है। अलौकिक दिव्य सत्ता के प्रति उनकी इस प्रणयानुभूति में दाम्पत्य प्रेम की झलक भी मिलती है और लौकिक स्पर्श का आभास भी।
महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल, 1982 में काव्य संकलन यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1988 में पद्म विभूषण और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में महादेवी वर्मा का निधन हो गया।

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