अब न कुछ ऐसा होगा

-रानी सिंह-

rani singh 01
रानी सिंह

वह जेठ का महीना था
जब जेठुआ धान बेचकर दुलारी के बाबा ने
साइकिल, रेडियो की अतिरिक्त माँग
की थी पूरी दूल्हे की
तब जाकर गड़ा था मंड़ुआ आँगन में
चढ़ी थी बारात द्वार

खोंयछा में धान-दूबरी के साथ
चुपके से मुट्ठी भर सपनों को रख
झकमक लाल साड़ी
लाल सिंदूर
लाल लहठी में लाल-लाल हो
विदा हुई थी वह
एक अजनबी के साथ
जो अभी-अभी उसका पति बना था

लेकिन दूसरा जेठ आते-आते
अरमान हेठ हो गया सारा दुलारी का
एक तो मरद निठल्ला
ऊपर से दारूबाज
दान-दहेज का रुपैया चार दिन में फुर्रर्…
फिर शुरु घर खर्ची का टंटा
गाली-गलौज, मार-पीट
न दिन में चैन, न रात में सुकून

वह दूसरा सावन था
जब नैहर से भाई
लेने आया था उसे
और पाँव में पंख लगा
पिंजरे से उड़ आयी थी बाबा के द्वार
डेढ़िया पर खड़ी माँ से गलबहियाँ कर
खूब बरसी
और भर भादो बरसती रही ऐसी कि
नदी-नहर, धार-पोखर सब उफना गया
जिसे सन्ताते-सन्ताते आधा आसीन बीत गया

दुर्गा पूजा की कलश स्थापना का
दूसरा दिन था वह जब
बाबा को माँ से कहते सुना
चिट्ठा लिखा देना
बाजार जा रहे हैं शाम को
जो भी जरूरी हो बोलना
पूछ लेना दुलारी से भी
कुछ चाहिए हो तो…
आ रहे हैं पाहुन अष्टमी के दिन
विदागरी के लिए
दशमी के दिन खुला रहता है
दसों दरवाजा
कर देंगे विदा बिटिया को

हाय! धक् से रह गया कलेजा
फिर से लबालब हो गई वह
उसे लगा था भादो बहा ले गया
उसके अंदर का सारा नमक
लेकिन वह मात्र भरम था

अष्टमी को आना था, आया भी
और पाहुन को भी आना ही था
वह भी आया
दुलारी व्रत पर थी
नहीं गई पति के सामने
अगले दिन नवमी को व्रत तोड़ना था उसे
उसने तोड़ा
फिर केला पात पर प्रसाद
और पानी का गिलास ले गई बैठक में
रखा पति के सामने टेबुल पर और
क़दम भर हटकर खड़ी हुई तनकर

तमक कर खड़ा हो गया पति उसका
पीसने लगा दाँत
बेहया औरत…
कल से आकर बैठे हैं हम
और ये है कि एक बार हुलकने तक न आई…
परनाम न पाती
हाल पूछा न चाल
यही है पत्नी का धरम ?

सब्र का बाँध टूटा दुलारी का अबकी बार-
पत्नी का धरम बताने से पहिले
पति का धरम भी तो बताओ जरा
बैठे निठल्ले रौब खूब झाड़ते हो
मालिकों जैसे हुक्म भी चलाते हो
रोजी-रोटी की भी तुम्हें परवाह नहीं
पशु से बद्तर रहता
मेरे साथ व्यवहार तेरा
और कहते हो खुद को पति मेरा

लेकिन सुन लो अब
मेरा भी यह फैसला
आगे से अब न कुछ ऐसा होगा
निश्चय मेरा है यह अटल
पहिले तुम जिम्मेदार एक आदमी बनो
प्रेम और इज्ज़त तनिक बोली में लाओ
फिर तेरी हर बात होगी स्वीकार मुझे
चलूँगी हर क़दम साथ-साथ तेरे।

©️ रानी सिंह

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