अमलतास: स्वर्णपुष्पी

whatsapp image 2025 06 04 at 17.13.20

-डॉ. रमेश चन्द मीणा

#dr ramesh chand meena
डॉ. रमेश चन्द मीणा

(1)
लाजवर्द1 नभ तले झुके,
झूमर ज्यों अनुरागी।
गऊ-गोली2 सी दमके शाखा,
त्यों पीत-राग चिरागी।

हल्दी-तबक सी किरणों में घुल,
वसली3-पेवड़ी4 पोत चढ़ाया।
रस-विलसिन मन की क्यारी में,
प्रेम-गंध फिरोज़ी5 लहराया।

(2)
नव हरिताल6 तनों से बहता ,
अमृत फ़ुहारों का साया।
कहता ऋतुराज पीत कलियों से,
फिर वसंत बहार मैं लाया।

झरते पत्ते; ठेठ जेठ में,
ले नव पंख लगाए।
स्वर्णपुष्पी के नव अंकुर अब,
जीवन राग सुनाए।

(3)
दीप-ज्योति त्यों फैली डालियाँ,
मंदिर-पथ सुगंधित।
काँस थाल ज्यों सजे आरती,
चरण-पद्म सम भगवत।

दीप थाल में सँवर फूल,
धूप धुले मन-काया।
लेपिसलाजुली7 नभ में उठता,
नाम-सुमर हरि माया।

(4)
छाँव बिछे यों शांति-सुमन सी,
करे धूप अभयदान।
शाख-सघन स्वर्णमाला कहती,
प्रकृति-मानव सम जान।

नभ-गंधों से बतियातें पात,
नीरव स्वर लहराए।
अमलतास हरिताल लताएँ,
कोमल तान सुनाए।

(5)
रामरज़8 रंग में कुंज सजें,
पुष्प झरें यों चुपचाप।
सोनें सा बिखरे आनंद,
बाँटे पीत पदचाप।

स्वर्णपुष्पी अमलतास कहे —
जीवन-लीला बहुरंगी।
मैं हूँ; धूप में छाँव अनंत,
उत्सव सा अनुरंगी।।

शब्दार्थ-:
1.लाजवर्द- नील वर्ण
2.गऊ-गोली- गौ पाणत प्रविधि से सृजित पीत वर्ण
3.वसली-महीन क़ागज़ को तह दर तह चिपकाकर तैयार चित्रांतराल,
4.पेवड़ी- पीत वर्ण
5.फिरोज़ी- नील-हरित वर्ण के बीच की आभा,
6.हरिताल- पीत खनिज वर्ण
7.लेपिसलाजुली- पत्थर से बना आसमानी वर्ण
8.रामरज़- श्यामल-पीत आभा मिश्रित वर्ण

कवि
डॉ. रमेश चन्द मीणा
सहायक आचार्य-चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा
ई मेल- rmesh8672@gmail.com
मो. न.- 9816083135

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Sahitya
Sahitya
2 days ago

The natural and nice poem👍🙂

मोनिका
मोनिका
2 days ago

Sundr prakriti chitran