
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

जब सफ़र का इरादा करो।
पहले ख़ुद पर भरोसा करो।।
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अब क़नाअत* पे तकिया* करो।
मुफ़लिसी* में गुज़ारा करो।।
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ज़िंदगी फूल बूटे नहीं।
दार* की भी तमन्ना करो।।
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इश्क़ बस का नहीं आपके।
और कोई तमाशा करो।।
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ज़िंदगी को नई सम्त* दो।
शायरी से उजाला करो।।
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देख लो जान हाथों में है।
तुम फ़क़त इक इशारा करो।।
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डूबने का मज़ा आयेगा।।
अपने ज़ख्मों को गहरा करो।।
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आरज़ी* हैं ये सब नफ़रतें।
इतना दिल न मैला करो।।
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जिसमें “अनवर” हॅंसी ख़्वाब हों।
ऐसी आबाद दुनिया करो।।
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शब्दार्थ:-
क़नाअत*संतोष
तकिया*निर्भरता
मुफ़लिसी*ग़रीबी
दार*सूली
सम्त*दिशा
आरज़ी* अस्थाई
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शकूर अनवर
9460851271