
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

दिल की मंज़िल का जो भी राही है।
उसकी हर हाल में तबाही है।।
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क्या समझते हो दिल की दुनिया को।
इस फ़क़ीरी में बादशाही है।।
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कैसे छोड़ेंगे वो सितम ढाना।
ये तो उनकी जहाँ-पनाही* है।।
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उनको देखूँ तो दिल संभल जाये।
दिल की सोचूँ तो बस तबाही है।।
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नाख़ुदा* भी कहाँ पे छोड़ गया।
इससे आगे तो अब ख़ुदा ही है।।
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कमनसीबी* हमारी क्या कम थी।
जो तुम्हारी भी कम-निगाही* है।।
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लो हवाऍं बुझाने आ भी गईं।
ये दीया तो अभी जला ही है।।
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क्यूँ मिली है तुझे सलीब* “अनवर”।
ये तेरी कैसी बे-गुनाही है।।
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शब्दार्थ:-
जहाँ पनाही*बादशाही
नाख़ुदा*मल्लाह
कमनसीबी*दुर्भाग्य
कम निगाही*कम ध्यान रखना
सलीब*सूली
शकूर अनवर
9460851271