
ग़ज़ल
– शकूर अनवर-
बुझी बुझी सी निगाहों में रोशनी क्यूॅं है।
शऊर ए दीद* में अहसासे कमतरी* क्यूॅं है।।
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रविश रविश* में गुलों की हज़ार हंगामे।
डरी डरी सी चमन में कली कली क्यूॅं है।।
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वो जिसको छीन के लाये थे हम ज़माने से।
मसर्रतों* का वो लम्हा* भी आरज़ी* क्यूॅं है।।
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कहाॅं गया वो बहारों का ख़ुशनुमा मौसम।
ये दिल फ़रेब मनाज़िर* में ख़ामुशी क्यूॅं है।।
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मुझे भी कब से तमन्ना है सुबह नो* की मगर।
मेरे नसीब में “अनवर” ये रात ही क्यूॅं है।।
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शऊर ए दीद*दृष्टि की परिपक्वता
अहसास ए कमतरी*हीन भावना
रविश रविश* क्यारियों की पंक्तियाँ
मसर्रतों* खुशियों
लम्हा* क्षण पल
आरज़ी*यानी अस्थाई
दिल फ़रेब मनाज़िर* नयनाभिराम दृश्य
सुबह नो* नई सुबह सु प्रभात
शकूर अनवर
9460851271