
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

कभी सराब* कभी जंगलों से गुज़रा है।
ये क़ाफ़िला तो कई मरहलों* से गुज़रा है।।
*
कभी फ़साद कभी ज़लज़लों से गुज़रा है।
वतन अज़ीज़* कई हादसों से गुज़रा है।।
*
चलो गुज़र भी गया है बहार का मौसम।
जो तुम न थे तो बड़ी हसरतों से गुज़रा है।।
*
ये किसका लम्स* मेरे दिल को कर गया घाइल।
ये आज कौन मेरी क़ुर्बतों* से गुज़रा है।।
*
कहीं तो पाॅंव तलक भी भिगो नहीं पाया।
कहीं-कहीं पे ये पानी सरों से गुज़रा है।।
*
उजड़ न जाये कहीं प्यार का महल “अनवर”।
अभी ख़याल यूँ ही मक़बरों* से गुज़रा है।।
*
शब्दार्थ:-
सराब*मरीचिका
मरहलों*पड़ावों
वतन अज़ीज़*प्यारा देश
लम्स*स्पर्श
क़ुर्बतों*बिल्कुल पास,निकटता
मक़बरों*समाधियों
*
शकूर अनवर
9460851271