
– विवेक कुमार मिश्र-

चाय के रंग में ही स्वाद होता है। रंग से स्वाद का जो सिरा पकड़ में आ जाता है वह कहीं नहीं जाता। चाय अपने रंग में जीवन का अर्थ भरते चलती है। अर्थ और चाय की दुनिया जीवन को रंगती रहती है। चाय का रंग गाढ़ा और चेतना को झंकृत करने वाला होता है। जाग जाने के लिए सीमित संसाधनों में यदि कुछ है तो चाय ही है। चाय जब जगाती है तो इतना लेकर चलती है कि एक दूरी आप तय कर सकें । जीवन पथ पर कुछ दूर तक चल सकें। यह कोई और नहीं , चाय की ही देन होती है। चाय पीते हुए हम सब जिंदगी का पाठ भी पढ़ने लगते हैं। कित्ती सी जिंदगी है और इस ज़िंदगी में कितना कुछ होता रहता है । जिंदगी की बातों के लिए आकाश भर का विस्तार चाहिए। बातें हैं कि कभी समाप्त नहीं होती। एक सिरे से शुरू होकर नये सिरे पर पहुंचते ही एक नया सिरा बना लेती हैं। बातें होती रहती हैं। जिंदगी को समझने के लिए। बातों के बीच से बातों का एक सिरा में पकड़ चल देते हैं । इस संसार में चलने के लिए सड़क होती है और नहीं भी होती तो आदमी का साहस ही चल पड़ता है । सड़क पर इस छोर से उस छोर तक आदमी जो दिखता है वह साहस का ही नाम होता है और टिकता भी वही है जिसके पास साहस होता है। साहस का किनारा भी चाय की थड़ियां होती हैं। हर थड़ी अपने रंग, अपने ज़ायके और अपने होने की पहचान को कायम रखते हुए चलती है। कोई चाय ऐसे नहीं को आती कि यूं ही आप चाय को गिने ही नहीं या कुछ समझे ही नहीं। चाय को समझने के लिए जीवन की गप्प और वे सारी जरूरी बातें आ जाती हैं कि चाय है तो मन है और मन की बातें हैं। चाय बातों के रथ पर बैठकर आती है। बहुत सारी बातें यूं होने लगती है कि कुछ भी न हो तो चाय पर बैठकर जीवन का सुकून ढ़ूढ़ते हैं। यह भी सच है कि चाय कुछ और करें या न करें एक सुकून नाम की चिड़िया को लेकर चलती रहती है। यहां से वहां तक चाय और सुकून का जाल बिछा रहता। यह आप निर्भर करता है आप कैसे इस जीवन संसार को लेते हैं और कितना कुछ संसार को अपने साथ चाय के साथ संभाल कर रखते हैं। यह जीवन जीने की एक कला भी है। आप चाय पीने के क्रम में संसार की व्याख्या और दुनियादारी भी करते चलें। एक दूसरी दुनिया भी रचते चलें जो चाय पर मित्रों की होती है जिसमें और कुछ नहीं बस स्वाभाविकता की गंध और हर स्थिति में एक दूसरे का साथ देने का विश्वास टिका रहता है । इस तरह की चाय जरूरत होती है एकदम से जिंदगी की तरह । एक तरह से यहां जो चाय प्रयोग में ली जाती है वह बहुत दूर तक जिदंगी का जादू ही होता है जिसे सभ्यता की दुकान से चलाया जाता है। चाय के साथ अनंत बातों का खजाना चलता रहता है । बातों के साथ दुनिया भर की कहानियां सुनी और जी जाती हैं। कहानी चाय और दुनिया भर के लोग अपनी दुनियादारी लिए हुए चाय पर आते हैं। चाय पर इस तरह नहीं हो सकता कि आप गुमसुम बैठे हों और चाय हलक के नीचे उतर जाये । नहीं नहीं चाय तो तभी पी जाती है और पीने का आनंद भी तभी होता जब चाय पर मित्रों की दुनिया जुड़ी हो और किसी को भी हड़बड़ी न हो सब चाय पर अपना समय और सुकून लेकर आये हों फिर चाय का हर घूंट रच लेता है स्वाद और जिंदगी का रंग । एक चाय ही है जिसके होने में ही न जाने कितना कुछ हो जाता कि एक मन की इबारत होती है कि इस समय पर चाय चाहिए तो चाहिए ही। एक समय के बाद चाहिए ही चाहिए । समय पर चाय का मिल जाना एक तरह से जिंदगी के जादू को जीना होता है। चाय किसी भी समय पी जा सकती है । चाय के लिए अलग से कोई खास समय नहीं होता। जब आप चाय पीने के लिए चलते हैं तो चाय खास हो जाती है । आम और खास की जगह चाय में यूं नहीं होती कि आप खास हैं तो आपको खास चाय मिलेगी हो सकता है कि आम चाय भी खास हो जाये । ये आपके चाय पीने के अंदाज पर निर्भर करता है कि आप खास चाय पी रहे हैं या आम चाय पी रहे हैं । आप बस चाय पी रहे हैं और चाय के साथ दुनियादारी को देख रहे हैं।
(सह आचार्य हिंदी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
यह पोस्ट चाय के स्वाद से भरपूर। चाय एक सुकून का नाम है।ताजगी का नाम है।