
– विवेक कुमार मिश्र-

पुद्दन कथा
(कोरोना काल में गांव गिरांव)
कोरोना काल में गांव की कथा को देवेश ठेठ देशज अंदाज में सुनाते हैं । कथा सुनाना आदमी का प्रिय काम धंधा हो जाता है । कथा सुनाते जिंदगी का हिसाब भी लगता चलता है कि क्या कुछ करना है ? आदमी जब कथा सुनाता है तो वहीं से जीवन का रस लेकर जीवन के लिए व्यवस्था भी बनाता है । इस कथा में जीवन की धड़कन है जहां गांव , कस्बे , शहर और अस्पताल की ध्वनि के बीच मनुष्यता की इबारत को गुना गया है। पुद्दन कथा में सबके लिए जीवन की धड़कन है । यह अकेले उन्हीं की कथा भर नहीं है वल्कि इधर के कोरोना काल में यह कथा सब समाज में घट रही है सभी इससे दो चार हो रहे हैं । जो जिंदगी जी रहा है वह पुद्दन कथा में भी है । गांव का नाम दूसरा हो सकता है , किरदार दूसरे हो सकते हैं पर कथा तो जीवन की सबकी एक ही है जिसे पुद्दन कथा में हम सब सुन रहे हैं । कथा सुनाना और कथा सुनना दोनों आदमी का एक प्रिय काम है जिसके सहारे वह जीवन को जीता है । बड़ी बड़ी मुश्किल भी इसी रास्ते जी लिए जाते हैं । कथा अपने समय चक्र से बड़ी हो जाती है …जीवन का पसारा बहुत गहराई से सामने आता है । आकार प्रकार में बहुत छोटा उपन्यास है पर जीवन जीने की जिजीविषा इस कहानी को एक बड़ी दुनिया से जोड़ देती है । यह एक तरह से सूत्र सा बन जाता है कि अभाव के बीच भी , जीने का उत्सव यदि कहीं है तो वह हमारे ग्रामीण समाज के जीवन में है । सुख – दुःख को कैसे हंसते हुए काटा जा सकता है इसे पुद्दन कथा से बेहतर कोई नहीं समझा सकता । यह जीवन की कथा है और एक समय विशेष की कथा है । इस समय में कोरोना की व्याप्ति है । कोरोना काल में किस तरह से हमारे गांव समाज चल रहे थे , जीवन जीने की क्या दिक्कतें थी और इस जीवन संग्राम में जो लोग हैं उनकी जिजीविषा और उनके जीने की हिम्मत को यदि किसी कथा किसी आख्यान के माध्यम से समझना तो हमारे पास देवेश का हाल ही में प्रकाशित उपन्यास ‘ पुद्दन कथा ‘ है । पुद्दन इस कहानी में एक प्रमुख पात्र हैं जिनके इर्द-गिर्द पूरी कथा बुनी गई है । यह कहानी गांव से शुरू होती है और जैसा कि गांव कब शहर में आ जाता और शहर कब कथा से होते हुए गांव में आता है वह सब इस पुद्दन कथा में देखने को मिलता है । कहानी की शुरुआत होती है जिला आजमगढ़ , गांव नरहरपुर । पुद्दन सीधे आप गांव में आ जाते हैं और इस तरह कहानी और यथार्थ से सीधे टकराते रहिए । इस बीच कहानी आपके लिए , देश के लिए और देश की जिजीविषा को समझने के लिए बेहद साधारण से दिखने वाले वास्तविक और जीवंत चरित्र से बुनकर देवेश ने रख दी है । अब यह आप पर है कि इस कथा से आप जीवन को समझने का जतन करें और जीवन का आनंद लेते हुए कोरोना काल में कोरोना से बचें भी । न बच पाये तो पुद्दन की तरह संघर्ष करें और अस्पताल से लौटकर जिंदगी की कथा को रस लेकर सुनाते चलें। एक चरित्र मुंबई में है और एक चरित्र दूर आजमगढ़ के किसी नरहरपुर गांव में है । नरहरपुर। यहां से थोड़ी ही दूर पर पुद्दन की ससुराल नौशादपुर है । इस कथा में एक मखंचू भी हैं जो बम्बई में काम धंधा कर रहे थे। कोरोना की जब मार परल त सब छोड़ मखंचू भी पत्नी के साथ पैदल ही गांव की ओर चल दिए । ये सोचकर कि कुछ नहीं तो अपनी माटी में मिल जायेंगे । अब यहीं गांव में पुरानी बोलेरो खरीद कर चलाते हैं । गांव गिरांव के शादी व्याह में , हारी बीमारी में मखंचू काम आते हैं । तो जयनाथ की अपनी ही दुनिया है । जयनाथ हैं । मंदिर हैं । नऊनिया ह । इस सबके साथ गांव और कोरोना । बाबा जयनाथ से सवाल है कि ” बाबा करउना भगावे कै कउनो उपाय है का ? बाबा का उत्तर है कि धरती पर एतना अत्याचार बढ़ गया है कि उसका फल है कोरोना । इस तरह सब अपने अपने उपाय कर रहे हैं कोरोना से बचने का । इसी बीच सुमन का व्याह हो रहा है । कोरोना का डर और ब्याह का उत्सव बीच में गांव और गांव की जिंदगी सब कुछ इस पुद्दन कथा में इस तरह आता है कि लगता है आप बाइस्कोप से गांव की पूरी फिल्म देख रहे हैं और फिल्म ही नहीं देख रहे हैं आप भी कहीं न कहीं किरदार के रूप में खड़े हैं ।
कोरोना काल में गांव किस तरह कोरोना से जूझ रहा है ? किस तरह बचाव कर रहा है ? अपने लोगों को कैसे संभाल रहा है ? इस बीच घुन की तरह रिश्वत किस तरह जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है इसे भी पुद्दन कथा में सिद्धत के साथ दिखाया गया है । यहां मनुष्यता भी बेहिसाब पसरी हुई है। जिसके पास कुछ भी नहीं है वह भी उधार लेकर पुद्दन का इलाज करा रहा है । बहनोई पुद्दन को चिंता है कि साली सुमन की शादी है और वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं , यहां अस्पताल में भर्ती हैं । वहीं साला रामचरण कह रहा है कि चिंता मत करिए सब ठीक हो जाएगा । अदम्य साहस और विश्वास से हमारे गांव कोरोना से जंग लड़ रहे हैं । इनका अपना अंदाज है क्वारेंटाइन होने का । जयनाथ को जब दिक्कत होती है तो गाय बैल को बांधने वाली जगह पर रख दिया जाता है । यहां वे क्वारेंटाइन हैं।
कोरोना की भयावहता को दिखाने के लिए गांव के उस पीपल को दिखाया जाता है जिसपर एक ही समय में बीसियों घंट लाल कपड़े से लिपटे बंधे हुए हैं और गांव की स्त्रियां पानी दे रही हैं । गांव में जैसे कि कोई आदमी बचा ही नहीं और जो बचे भी हैं वो अस्पताल में हैं या व्यवस्था संभाल रहे हैं। गांव को देखने कोई नहीं आता । कभी कभार प्रधान और एक डाक्टर यादव जी आ जाते हैं । इन्हीं के भरोसे गांव का इलाज हो रहा है। इस सबके बावजूद जीवन हिलो हुज्जत करते चल ही रहा है । इस पुद्दन कथा के हाहाकार में शादी व्याह है , बच्चे हैं , बड़े बुजुर्ग है । सब हैं और सबके साथ उल्लास से पुद्दन कथा कोरोना काल में जिंदगी की जंग को जीतते हुए नये सिरे से जिंदगी की शुरूआत करेंगी । तभी तो पुद्दन भी दिलवर जानी का गीत गाते आगे बढ़ रहे हैं । हर हाहाकार , पीड़ा और यथार्थ यातना के बाद भी मनुष्यता की जीत की कहानी पुद्दन कथा से फूटती हुई बाहर आती है । यह इस काल की रचनात्मकता वह रचनात्मक यात्रा की सबसे बड़ी देन है जिसे देशज अंदाज में देवेश सामने लाते हैं । इस कहानी के टूल हैं – जीवन का उत्सव बाजा , कोरोना से लड़ने का शस्त्र आक्सीजन सिलेंडर , सेनेटाइजर और मास्क । इन सबके साथ पुद्दन कथा जिंदगी के जीत की कहानी को दर्ज करते हुए आगे बढ़ जाती है कि मर्दे डरे का ना चाहीं जिंदगी आगे जात बा … । कब तक बइठ के काम चलावल जाई । चलिए अब आगे बढ़िए । गांव ने जिंदगी को आगे बढ़ने की घोषणा कर दी है । अब इस आवाज को सुनकर देश चलें । यहीं पुद्दन कह रहे हैं ।
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पुद्दन कथा ( कोरोना काल में गांव गिरांव ) – देवेश
राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा. लिए. दिल्ली
पहला संस्करण -2022
मूल्य – ₹ 150