रोशनी अपनी मुलाक़ात में हाइल* होगी। बत्तियाॅं सारी बुझा डालो ॲंधेरा तो करो।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

जान तो यूॅं भी निकल जायेगी इतना तो करो।
क़त्ल से पहले तड़पने का तमाशा तो करो।।
*
तज़किरा सरमदो-मंसूर* का करने वालो।
तुम कभी दार* पे चढ़ने की तमन्ना तो करो।।
*
ये सराब और समन्दर मुझे क्या रोकेंगे।
तुम मेरे साथ में चलने का इरादा तो करो।।
*
शुहरतें* यूॅं ही ज़माने में कहाँ मिलती हैं।
“ग़म को रुसवा तो करो ज़ख्म का चर्चा तो करो”।।
*
रोशनी अपनी मुलाक़ात में हाइल* होगी।
बत्तियाॅं सारी बुझा डालो ॲंधेरा तो करो।।
*
हम मुहब्बत के उसूलों* से हैं वाक़िफ़ “अनवर”।
जान दे देंगे यहीं एक इशारा तो करो।।
*

तज़किरा” ज़िक्र,वर्णन
सरमदो-मंसूर*दो ऐसे संत जिन्हें शरीयत द्वारा मौत की सज़ा दी गई,
दार*सूली
शुहरतें*प्रसिद्धि नाम होना
हाइल*बाधक
उसूलों*सिद्धांतों
वाक़िफ़ यानी परिचित

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments