
-रामस्वरुप दीक्षित-

तुम मुझे
याद करती हो
वैसे ही
जैसे पेड़ करता है
उस पर रहने वाली चिड़ियों को
खेत करता है
किसान के घर पहुंची फसल को
फूल करता है
भँवरे को
गरमी के दिनों में
नदी करती है धार को
हवा करती है
खुशबू को
कूची करती है
रंगों को
व्याकरण करती है
शब्दों को
एक घर करता है
उसमें रहने वालों को
कान करते हैं
प्रिय की मधुर आवाज को
पपड़ाईं हुई धरती
बादलों को
तुम्हारा याद करना
मुझ तक पहुंचता है
ठीक वैसे ही
जैसे पहुंचती है
एक बेनाम चिट्ठी
सही पते पर
रामस्वरुप दीक्षित
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