
-मुकेश कुमार सिन्हा-

इन दिनों सपनों में
गांव के घर वाले दरवाजे
बराबर चर्र से खुलते हैं
और तो और
खिड़कियों के पल्ले भी
छमक कर बुलाते हैं
इनदिनों
गांव-ओसरा-डगर-पोखर
सब के सब कह रहे
आया करो न
इनदिनों
सपनों को जीना प्यारा लगता है
इनदिनों शायद, शहर की खिड़की में
हवाएं गांव से ही आ रही होगी
… है न!
मुकेश कुमार सिन्हा
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