-देवेन्द्र कुमार शर्मा-

कोई माने या ना माने लेकिन मेरा तो ये मानना है कि मोबाइल फोन ने बहुत कुछ बदल दिया है। ये बदलाव हमारे जीवन में ऐसे दबे पांव आया है कि किसी को पता भी नही चला। मोबाइल फोन ने पहले चिट्ठियां लिखने की आदत खत्म की तो अब किताबों से पढना लिखना भी बंद करा दिया। यानी जो कुछ पढना लिखना है वह मोबाइल फोन पर ही निर्भर हो गया है।
आज मैं कोटा रेलवे स्टेशन गया तो वहां प्लेटफार्म नंबर 1 पर ए एच व्हीलर का बुकस्टॉल देखा। बुकस्टाल पर किताबें तो गिनती की चार छह ही होंगी लेकिन जनरल स्टोर के आइटम, कोल्ड ड्रिंक ,चिप्स आदि के पैकेट सजे हुए थे। जबकि एक समय था अधिकांश स्टेशनों पर ए एच व्हीलर का स्टॉल यात्रियों के आकर्षण का केन्द्र होता था। किसी की टेन लेट है तो समय बिताने के लिए इस स्टाल पर किताबें और पत्रिकाएं पलटने लगता। पसंद आ जाए तो खरीद लेते। कई ऐसे लोग भी होते जो इन्हीं स्टाल से पुस्तकें, पत्रिकाएं और अखबार खरीदकर सफर तय करते। सफर के दौरान पुस्तकें और पत्रिकाएं यात्रियों के सामान का अभिन्न अंग होती थीं। कई पुस्तकें तो इन्हीं स्टाल पर मिलतीं। फटाफट अंग्रेजी सिखाने और जीवन में सफलता के गुर सिखाने का दावा करने वाली पुस्तकें भी संभवतया इन्हीं स्टाल पर सर्वाधिक बिकी होंगी। इससे कितने लोग अंग्रेजी सीखने या जीवन में सफल हुए यह दीगर बात है।
अब मुझे याद आई वो कहानी जो मैने 25/30 साल पहले किसी मैगजीन में पड़ी थी। ये कहानी थी रेलवे स्टेशन पर ए एच व्हीलर के पहले बुक स्टाल के खुलने की। रेलवे स्टेशन पर पहला बुक स्टाल 1877 में खुला था। इस स्टॉल के खुलने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।
पुरानी बात है, भारत में अंग्रेजों का राज था और इलाहाबाद में एक अंग्रेज रहता था जिसका नाम Emile Edward Moreau था। Moreau को पढ़ने का बहुत शौक था और उस का पूरा घर किताबों से भरा हुआ था।
जब उसकी शादी हुई और दुल्हन घर में आई तो किताबों को देख कर उसका माथा चकरा गया। उसने अपने पति को कह दिया कि वो ऐसे घर में नहीं रह सकती। उसने अल्टीमेटम दे दिया कि या तो इस घर में किताबें रहेंगी या वो खुद।
डवतमंन परेशान हो गया। उस ने उन किताबों को ठिकाने लगाने के लिए अपनी पत्नी से तीन दिन का समय मांगा।
अब वो इलाहाबाद स्टेशन पर स्टेशन मास्टर से जा कर मिला और उससे यह अनुमति मांगी कि वो प्लेटफॉर्म पर अपनी किताबें रख कर उन्हे बेचना चाहता है। स्टेशन मास्टर ने उसे अनुमति दे दी। डवतमंन ने जैसे ही अपनी किताबें प्लेटफार्म पर बिछाई तो ट्रेन का इंतजार कर रहे यात्रियों की वहां भीड़ लग गई और वो किताबें हाथों हाथ बिक गई।
अब Moreau के दिमाग में किताबों की दुकान लगाने का आइडिया आया और उसने रेलवे से इसकी अनुमति मांगी जो उसे मिल भी गई और इस तरह 1877 में इलाहाबाद में ए एच व्हीलर का पहला बुकस्टाल खुला।
जब भी मैं अपनी रेलवे में नौकरी के दौरान ट्रेन से कहीं जाता था तो व्हीलर की दुकान से अखबार या मैगजीन जरूर खरीदता था। लेकिन जब से स्मार्ट फोन हाथ लगा है अखबार या पत्रिका पढ़ने का मन ही नहीं होता क्योंकि समाचार पत्र, टीवी और वीडियो सब मोबाइल पर देखने को मिल जाते हैं। इसलिए लोगों की किताबें और मैगजीन पढ़ने की आदत अब खत्म हो चुकी है। अस्तित्व बचाने के लिए ए एच व्हीलर ने भी अपनी लाइन बदल दी है। दुकान पर व्हीलर का बोर्ड आप को जरूर दिखेगा लेकिन उसमें किताबे नहीं दूसरे आइटम मिलेंगे।
(रेलवे के सेवानिवृत अधिकारी हैं और पर्यावरणए वन्य जीव एवं पक्षियों के अध्ययन के क्षेत्र में कार्यरत हैं)


















मेरे पौत्र वरिष्ठ एडवोकेट हैं इनके पास कानून की पुस्तकों की लाइब्रेरी नहीं होने पर मैंने पूछ लिया वकील साहब ,बिना कानून की पुस्तकों के वकील कैसा, बोले दादा जी आज मोबाइल में कानून की लेटेस्ट जानकारी उपलब्ध है, पन्ने पलटने से पहिले सब कुछ मोबाइल से मालूम हो जाता है.