इजरायल-ईरान के बीच अमेरिका

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फोटो सोशल मीडिया

#सर्वमित्रा_सुरजन

इजरायल और ईरान के बीच पिछले चार दिनों से चल रही जंग और तेज होती जा रही है, और ऊटपटांग बयानों की रफ्तार भी बढ़ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को कहा कि वह इजरायल और ईरान के बीच उसी तरह का समझौता कराने की कोशिश कर रहे हैं जैसा समझौता उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच मई में सैन्य टकराव के दौरान कराया था। हालांकि ट्रंप ये भी कह रहे हैं कि ईरान पर हमले में अमेरिका शामिल नहीं है, इसलिए ईरान किसी अमेरिकी ठिकाने को निशाना बनाने की गलती न करे। अगर ईरान ने ऐसा किया तो अमेरिका उसे ऐसा सबक सिखाएगा, जिसकी उसने कल्पना नहीं की होगी। वहीं इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया है कि ईरान का इस्लामी शासन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपना सबसे बड़ा खतरा मानता है और उसने उनकी हत्या की भी कोशिश की थी। ईरान के साथ टकराव में खुद को ट्रंप का जूनियर पार्टनर बताते हुए नेतन्याहू ने कहा कि दोनों नेता तेहरान के परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिशों के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं।
डोनाल्ड ट्रंप और बेंजामिन नेतन्याहू के बयान असल में मनोवैज्ञानिक तरीके से बढ़त बनाने की कोशिश लग रही है। क्योंकि इजरायल के बड़े हमलों के बावजूद ईरान को झुकाया नहीं जा सका है और न ही उसके परमाणु किले को भेदने में इजरायल को कोई सफलता अब तक मिली है। ईरान के फोर्डो परमाणु संयंत्र तक इजरायल किसी भी तरह न पहुंच पा रहा है, न उसे नष्ट कर पा रहा है। यह संयंत्र मध्य ईरान में एक पहाड़ी के अंदर बना है। इसकी बनावट ने इसे एक किले की तरह अभेद्य बना दिया है। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स के बेस में बने इस संयंत्र को तोड़ने के लिए शक्तिशाली बंकर बस्टर बमों की जरूरत है, जिसे अमेरिकी बी-2 बॉम्बर्स से गिराया जा सकता है, इजरायल के पास यह अभी नहीं है, इसलिए वह चाहता है कि किसी भी तरह अमेरिका इस युद्ध में सीधे तौर पर शामिल हो जाए।
इजरायल ने परमाणु हथियार को बहाना बनाकर ईरान पर हमला बोला है। हालांकि ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशिकयन ने एक बार फिर कहा है कि उनका इरादा परमाणु हथियार बनाने का नहीं है। याद कीजिए अमेरिका ने इराक पर विनाशकारी हथियार होने का आरोप लगाते हुए इसी तरह हमला किया था, सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ा दिया, लेकिन वो हथियार इराक से कभी बरामद ही नहीं हुए, क्योंकि थे ही नहीं। अब ईरान के साथ ऐसा ही करने की कोशिश हो रही है। लेकिन यहां अमेरिका इजरायल का साथ देगा तो फंस जाएगा। क्योंकि इस साल मार्च में अमेरिका की राष्ट्रीय ख़ुफ़िया निदेशक तुलसी गबार्ड ने अमेरिकी कांग्रेस को बताया था कि ईरान का ‘समृद्ध यूरेनियम भंडार’ अपने उच्चतम स्तर पर है लेकिन उन्होंने ये भी कहा था कि अमेरिकी ख़ुफ़िया तंत्र के आकलन के अनुसार ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है क्योंकि ईरान के सर्वोच्च नेता ने परमाणु हथियार कार्यक्रम को अधिकृत नहीं किया है। वहीं अमेरिका में आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन में परमाणु अप्रसार नीति की निदेशक केल्सी डेवनपोर्ट ने कहा, ‘अगर नेतन्याहू के पास परमाणु प्रसार के ख़तरे की जानकारी होती, तो वो उसे अमेरिका के साथ साझा करते। लेकिन अब तक उन्होंने कोई ठोस सबूत नहीं दिए हैं।’
वैसे पिछले हफ़्ते आईएईए की रिपोर्ट में कहा गया था कि ईरान ने 60फीसदी शुद्धता तक समृद्ध यूरेनियम जमा कर लिया है। एजेंसी के अनुसार अगर ये स्तर 90फीसदी तक पहुंचा तो तकनीकी तौर पर इससे नौ परमाणु बम बनाए जा सकते हैं। इसलिए इजरायल को अगर सचमुच ईरान को परास्त करना है तो उसे किसी भी तरह फोर्डो को ध्वस्त करना होगा, अगर वो इस में नाकाम रहता है तो अब तक ईरान को जितना नुकसान हुआ है, उसके बावजूद उसे झुकाना मुश्किल होगा। इजरायल किसी भी तरह अमेरिका को साथ लेना चाहता है, लेकिन ट्रंप राजनेता से पहले व्यापारी हैं तो वह अपना मुनाफा देखकर ही ईरान के साथ युद्ध में उलझेंगे। अभी तो इजरायल का अघोषित पार्टनर बनकर ही काम चल रहा है।
ईरान को रूस और चीन का साथ तो मिल ही चुका है, पाकिस्तान ने सारे इस्लामिक देशों को ईरान के साथ खड़े होने का आह्वान किया है। इधर कतर और ओमान को ईरान ने साफ कर दिया है कि इजरायली हमले का जवाब देने के बाद ही सीज़फायर पर बात हो सकती है। इस संदेश से साफ है कि ईरान पूरी ताकत से दुनिया के शक्तिशाली देशों के सामने खड़ा है। जिस तरह गरीब वियतनाम ने अरबों रूपए युद्ध में लगाने वाले अमेरिका को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था क्या वही इतिहास एक बार फिर दोहराया जाएगा, यह देखना होगा। वैसे तो यूक्रेन भी रूस के साथ जंग जारी रखे हुए है, लेकिन यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी देशों का समर्थन मिल रहा है। मगर ईरान समय अकेला डटा हुआ है और अब यमन के हूती विद्रोही भी इजरायल पर हमला बोलकर ईरान का साथ दे रहे हैं। गज़ा को खत्म करने की सनक में इजरायल पहले ही काफी नरसंहार कर चुका है और इसके खिलाफ इजरायली जनता में भी नाराजगी है। और अभी तो इजरायल की राजधानी समेत हाईफा जैसे व्यापार के लिहाज से प्रमुख शहरों पर ईरान के हमले हो रहे हैं तो इसका असर इजरायल की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ेगा। अडानी जैसे जिन व्यापारियों के अरबों डॉलर इजरायल में लगे हुए हैं, वे आखिर कब तक इस नुकसान को बर्दाश्त कर पाएंगे। जाहिर वे इजरायल और अमेरिका पर दबाव बनाएंगे।
तो कुल मिलाकर इस समय इजरायल और अमेरिका दोनों की हालत ईरान के सामने बिगड़ रही है। हालांकि ईरान को भी इजरायल के हमलों में बड़े नुकसान हो चुके हैं, उसके कई परमाणु वैज्ञानिकों की जान इजरायल ले चुका है। इजरायल ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई को भी निशाने पर लेने जा रहा था, लेकिन अमेरिका की चेतावनी के बाद इजरायल ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। क्योंकि अमेरिका जानता है कि खामेनेई को अगर कुछ हुआ तो इसका व्यापक असर इस्लामिक देशों के साथ उसके संबंध पर पड़ेगा।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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