कुम्भ हादसा : ज़िम्मेदार कौन?

-देशबन्धु में संपादकीय 

प्रयागराज महाकुम्भ में जिस बड़ी तादाद में लोग पहुंच रहे हैं, उससे यह अंदेशा तो पहले से था कि कुछ भी गड़बड़ हुई तो कोई बहुत बड़ा हादसा हो सकता है परन्तु उत्तर प्रदेश की सरकार का दावा यह था कि यहां की व्यवस्था चाक-चौबन्द है। कहा गया था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में इतनी पुख़्ता व्यवस्था की गयी है कि कोई भी अप्रिय घटना होने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। इस महाकुम्भ के बारे में देश-विदेश में विभिन्न माध्यमों से भरपूर प्रचार किया गया है और लोगों को बड़ी तादाद में इसमें आने तथा स्नान कर पुण्य कमाने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार का पहले से दावा था कि बुधवार को मौनी अमावस्या पर स्नान करने के लिये श्रद्धालुओं की रिकॉर्ड़ तोड़ भीड़ रहेगी। यह संख्या 9-10 करोड़ तक होने की बात कही जाती है। यहां तक कहा गया कि डेढ़ महीने में इस पूरे आयोजन में लगभग 40 करोड़ लोग आ सकते हैं।

सरकार के सारे दावे ध्वस्त हो गये जब मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात में संगम में डुबकी लगाने उमड़ी भीड़ ने बैरिकेड्स तोड़ दिये और इसके चलते हुई भगदड़ में सैकड़ों कुचले गये। बुधवार तक मरने वालों की शासकीय स्तर पर संख्या तकरीबन 20 बतलाई गई है और लगभग 100 लोगों के ज़ख्मी होने की बात कही गई है। भीड़ को देखते हुए तथा जिस बड़े पैमाने पर भगदड़ मची, उसके चलते कोई भी इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर रहा है। सभी का कहना है कि मृतकों तथा घायलों की वास्तविक संख्या कहीं अधिक हो सकती है। सवाल यह है कि क्या कभी सही आंकड़े सामने आ सकेंगे? सवाल तो यह भी उठता है कि क्या कोई इस घटना की ज़िम्मेदारी लेगा? भारतीय जनता पार्टी की प्रशासन प्रणाली का जो ट्रैक रिकॉर्ड रहा है, उसके अनुसार तो दोनों का जवाब एक ही होगा- ‘नहीं, बिलकुल नहीं।’ न तो लोगों को कभी जानकारी होगी कि कितने लोगों ने जानें गंवाईं और जहां तक इसकी जिम्मेदारी लेने की बात है, तो वह कभी भी नहीं ली जायेगी- न तो मुख्यमंत्री योगी और न ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। ये वे लोग हैं जो इस आयोजन का श्रेय ज़रूर लेते रहे हैं।

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इस आयोजन की तैयारियां लम्बे समय से चल रही थीं। मेला क्षेत्र में अभूतपूर्व विस्तार किया गया था, तथा इसके लिये राज्य सरकार ने करीब 5500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है। आरोप है कि ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व के इस आयोजन को भाजपा ने अपनी धुव्रीकरण की राजनीति का उपकरण बना लिया है। न केवल यही कुम्भ, बल्कि कुछ वर्ष पहले हुए हरिद्वार कुम्भ की ही तरह इसके जरिये हिन्दू मतदाताओं को खुश करने के लिये इसका सियासी इस्तेमाल किया गया। सर्वप्रथम तो कुछ साधु-संतों ने साफ़ किया कि इस कुम्भ में मुस्लिमों को दुकानें नहीं लगाने दी जायेंगी। हुआ भी वही। बताया जाता है कि प्रयागराज में इस बार मुस्लिम दुकानदार मौजूद नहीं हैं जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। वैसे भी हरिद्वार के बाद इस कुम्भ में साधु-संतों ने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग उठाई है।

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आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष व सांसद चन्द्रशेखर आज़ाद ने कुछ अर्सा पहले जब कहा था कि ‘योगी ने थोड़े समय में बहुत अच्छे प्रबन्ध किये हैं जो बतलाता है कि अगर सरकार ठान ले तो वह बड़े से बड़ा काम कर सकती है, लेकिन जब बात रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की आती है तो वह सरकार की वरीयता नहीं रह जाती।’ इसी प्रकार जब हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि ‘संगम में डुबकी लगाने से क्या पाप धुल जायेंगे’, तो तमाम भाजपायी और उसके समर्थक उनके खिलाफ हो गये थे। उन्होंने खरगे पर हिन्दुओं की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया था।

ऐसा नहीं कि इस हादसे के बाद कुम्भ को लेकर भाजपा के समर्थन में उतरने वाली वह ट्रोल आर्मी नदारद हो गयी हो। सोशल मीडिया पर देखें तो वे पूरी निर्लज्जता से श्रद्धालुओं को ही दोषी ठहरा रहे हैं। उनके अनुसार ‘भीड़ अनावश्यक जल्दबाजी कर रही थी’। असलियत तो यह है कि उप्र सरकार, विभिन्न शासकीय विभाग तथा पूरी भाजपा लोगों को इस कुम्भ में ‘अमृत स्नान’ के लिये प्रेरित कर रही थी। बुधवार को देश भर के प्रमुख समाचारपत्रों में इस आशय के पेज भर के विज्ञापन उप्र सरकार की ओर से प्रकाशित कराये गये हैं। वहीं कथित मुख्यधारा का मीडिया सरकार को निर्दोष बतलाने के उपाय कर रहा है। वह यह तो बतला रहा है कि इस हादसे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने सुबह से कितनी बार योगी से बात की और वे कितने व्यथित हैं, परन्तु वह यह नहीं पूछ रहा है कि इस घटना की जवाबदेही सीएम की है या पीएम की। उसकी कोशिश यही है कि न तो लोगों तक सही आंकड़े पहुंचे और न ही इस त्रासदी की व्यथा।

चन्द्रशेखर आज़ाद ने इस हादसे को योगी की विफलता बतलाते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की है।
जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे, तब 1954 में यहीं के कुम्भ में मौनी अमावस्या के ही दिन भगदड़ हुई थी। उसमें 800 से 1000 लोगों के मारे जाने की बात तत्कालीन सरकारों ने (केन्द्र व राज्य) निःसंकोच स्वीकारी थी, खेद जताया था और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों उसके प्रति सचेत रहने का भी आश्वासन दिया था। 2013 में अखिलेख यादव के मुख्यमंत्री रहते मंत्री आज़म ख़ान इसी कुम्भ के प्रभारी थे। उनके प्रबन्धन को लोग अब भी याद करते हैं। तब भी भगदड़ हुई थी, जिस में 36 श्रद्धालु मारे गये थे, जिसके बाद आजम खान ने नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए त्यागपत्र दे दिया था। अब इस त्रासदी का ज़िम्मेदार कौन है, यह तय हो।

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