छात्रों की मांग और सत्ता की हठधर्मी

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फोटो यूपीपीएससी की वेबसाइट से साभार

#सर्वमित्रा_सुरजन

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चार दिनों के आंदोलन के बाद आखिरकार छात्रों की जीत हुई है। उत्तरप्रदेश लोकसेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने एक ही पाली में परीक्षाएं करवाने की छात्रों की मांग अब मान ली है। गौरतलब है कि इस समय योगी सरकार का पूरा ध्यान, संसाधन और ऊर्जा प्रयागराज में अगले साल की 13 जनवरी से प्रारम्भ होने जा रहे कुम्भ मेले की तैयारियों पर लगी हुई है लेकिन उसी कुम्भ नगरी की सड़कों पर लाखों अभ्यर्थी उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग (यूपीपीएससी), रिव्यू ऑफिसर (आरओ) एवं असिस्टेंट रिव्यू ऑफिसर (एआरओ) की प्रारम्भिक परीक्षाएं एक ही दिन कराये जाने की मांग को लेकर लाठियां झेल रहे थे। चार दिनों तक प्रयागराज में बवाल रहा लेकिन राज्य सरकार के पास इन छात्रों और अभ्यर्थियों की बात सुनने का समय पहले शायद नहीं था। पुलिस और छात्रों के बीच नोक-झोंक जारी रही तथा पुलिस ने गिरफ्तारियां भी कीं। छात्रों ने उप्र लोकसेवा आयोग के स्टेनली रोड (प्रयागराज-लखनऊ मार्ग) पर स्थित मुख्य कार्यालय का तीन तरफा घेराव किया था। राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार को अनेक विपक्षी दलों के नेता आंदोलनकारियों से बातचीत कर मांग स्वीकार करने की सलाह दे चुके थे परन्तु प्रदेश सरकार आंखें मूंदे बैठी रही।
दो दिन की परीक्षाओं में एक ही पद के लिये अलग-अलग शिफ्टों में शरीक होने वाले परीक्षार्थियों को अलग-अलग प्रश्न पत्र दिये जायेंगे, इस व्यवस्था को छात्र स्वीकार नहीं कर रहे थे। यह व्यवस्था पहली बार की जा रही है। हालांकि एक जैसे मूल्यांकन हेतु आयोग ने मानकीकरण (नॉर्मलाइजेशन) करने की बात कही है परन्तु यह स्पष्ट नहीं था कि प्रणाली कैसे काम करेगी। अभ्यर्थियों को अंदेशा था कि यह व्यवस्था असुविधापूर्ण होगी जिसमें चयन संयोग पर अधिक निर्भर करेगा। आंदोलन में शामिल छात्र-युवा एक ही दिन में एक जैसे प्रश्न पत्र के माध्यम से परीक्षाएं पूरी कराने की मांग कर रहे थे ताकि निष्पक्ष व पारदर्शी मूल्यांकन हो। छात्रों का कहना था कि यूपीपीएससी तथा आरओ-एआरओ की परीक्षा एक ही दिन और एक शिफ्ट में होने से उन्हें तैयारियों के लिये ज्यादा समय मिलेगा तथा प्रक्रिया भी सरल होगी।
बेहतर यही होता कि छात्रों की मांग सरकार अविलम्ब स्वीकार कर लेती ताकि इस बड़े विवाद से बचा जा सकता था। लेकिन सरकार ने हठधर्मिता दिखाई, जिससे टकराव का रास्ता बना। गुरुवार की सुबह छात्रों की पुलिस से झड़पें हुईं। सादी वर्दी में तैनात पुलिसकर्मी जब आंदोलनकारियों को उठाने पहुंचे तो वे भड़क गये। उनका मानना है कि वे शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं जो उनका संवैधानिक हक है। उन्होंने आरोप लगाया कि छात्राओं तथा महिला अभ्यर्थियों के साथ पुलिस वालों ने बदसलूकी की। ‘वन डे वन शिफ्टÓ की मांग कर रहे छात्रों से पूरे दिन झड़पें बदस्तूर जारी रहीं जैसी कि हफ्ते के पहले दिन से हो रही हैं। दिनों-दिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन आयोग ने उन्हें या उनके प्रतिनिधियों से बात करना तक मुनासिब नहीं समझा है। आंदोलन खत्म न होता हुआ देख पुलिस ने कुछ छात्रों को हिरासत में लिया जिससे तनाव और बढ़ गया। छात्रों ने पुलिस के लगाये कई बैरिकेड्स तोड़ दिये। पुलिस का कहना है कि असामाजिक तत्वों को गिरफ्तार किया गया है, न कि अभ्यर्थियों को। मंगलवार को होर्डिंग तोड़ने के आरोप में पहले 12 और फिर 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इससे भी छात्र बेहद नाराज़ हैं।
प्रशासन का कहना है कि स्थिति न बिगड़े तथा आमजनों की सुरक्षा के लिये बल तैनात किया गया है। प्रशासन के इस बयान के ठीक विपरीत पुलिस का रवैया आक्रामक नज़र आ रहा था। गुरुवार को उसने आंदोलनकारियों को घसीटना शुरू कर दिया। आशुतोष पांडेय नामक युवक को गिरफ्तार कर लिया गया जो उस वक्त आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। कई छात्राएं भी घसीटी गयीं। उनका आरोप है कि महिला पुलिसकर्मियों की बजाये पुरुष सिपाहियों ने ही उन्हें घसीटा। कई छात्राओं का आरोप है कि उनके साथ बदसलूकी की गयी। एक दिव्यांग छात्रा की बैसाखियां तक पुलिस उठाकर ले गयी।
मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इसे लेकर सरकार पर निशाना साधा और कहा है कि छात्रों पर हो रहे अत्याचारों से आगामी चुनाव में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चल रही सरकार के लौटने का रास्ता बन्द हो गया है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा दहाई के अंकों में सिमट जायेगी। उनके अनुसार हर विधानसभा क्षेत्र में इसके कारण भाजपा के 25-25 हजार वोट कटने जा रहे हैं। उन्होंने भाजपा की सरकार को ‘हृदयहीनÓ बतलाया। आम आदमी पार्टी ने भी इस मामले में राज्य सरकार की निंदा की है और आंदोलन के प्रति समर्थन जताया है।
इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी अपनी जगह पर है परन्तु यह तो सच है कि भाजपा सरकार ‘नौकरी विरोधीÓ साबित हुई है। उप्र इस मामले में कुख्यात है जहां कई परीक्षाएं परचे लीक होने के कारण ऐन वक्त पर रद्द कर दी जाती हैं। इन राज्यों में अनेक ऐसे विभाग हैं जिनमें बड़ी संख्या में पद रिक्त पड़े हैं। वर्षों से बैकलॉग बना रहता है। यह भी कहा जाता है कि यह राज्य सरकार का पैसा कमाने का एक ज़रिया बन गया है। छोटी से छोटी पोस्ट के लिये भी बड़ी तादाद में बेरोजगार लोग आवेदन भरते हैं। इसके साथ उनसे परीक्षा शुल्क लिया जाता है। यह राशि करोड़ों रुपयों में होती है।
प्रयागराज में चार दिनों तक चले आंदोलन को देखते हुए कह सकते हैं कि सरकार ने एक अनावश्यक प्रयोग किया। जो व्यवस्था छात्रों के लिये सुविधायुक्त हो उसके अनुसार परीक्षाएं आयोजित होनी चाहिए। गनीमत है कि यह आंदोलन लंबा खिंचता और छात्रों के साथ सरकार का टकराव बढ़ता, इससे पहले गुरुवार शाम को फैसला ले लिया गया कि परीक्षाएं एक साथ ही आयोजित होंगी। संभवत: चुनावी नुकसान का आंकलन कर सरकार ने यह फैसला लिया, लेकिन यह तथ्य विचारणीय है कि लाखों परीक्षार्थियों के भविष्य से जुड़े फैसले लेने में यह अदूरदर्शिता क्यों दिखाई गई और क्या आईंदा सरकारें ऐसे फैसले लेने से पहले भली-भांति विचार करेंगी या केवल सत्ता की हनक दिखाई जाएगी।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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