
-देशबन्धु में संपादकीय
बजट सत्र के दूसरे चरण में सरकार से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष जवाब चाह रहा है। अमेरिका की तरफ़ से लगातार भारत का अपमान, दक्षिण भारत में हिन्दी थोपने की कोशिश का आरोप और त्रिभाषा फार्मूला, परिसीमन में दक्षिण की सीटें घटाने की कोशिश, किसान आंदोलन और एमएसपी का वादा, मतदाता सूची में गड़बड़ी और मतदाता फोटो पहचान पत्र के अंकों में हो रहा दोहराव, वक्फ संशोधन विधेयक में विपक्ष की आपत्तियों को नजरंदाज करना, मणिपुर में शांति बहाली की कोशिश के बीच फिर से हिंसा, ऐसे अनेक मुद्दे हैं दिन पर सरकार को विपक्ष की बात और सवाल सुनकर यथासंभव जवाब देना चाहिए। इन तमाम सवालों के बीच एक और महत्वपूर्ण सवाल एआईएमआईएम के सांसद असद्दुदीन ओवैसी ने किया, जिस पर सरकार का जवाब चिंताजनक है।
ओवैसी साहब ने सवाल किया था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ‘डिटाॅक्सिफाई’ यानी विषमुक्त करने के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी। क्या सरकार सुनिश्चित करेगी कि एएसआई संविधान के धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद के सिद्धांत के साथ काम करे? दरअसल असद्दुदीन ओवैसी ने आरोप लगाया था कि पिछले 50 साल से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) हिन्दुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। और फिर उन्होंने इस संस्था के संविधान के मुताबिक काम करने पर सवाल किया, साथ ही कहा कि यह सरकार पिछले 11 वर्षों से सत्ता में है। संस्कृति मंत्रालय में 6,516 पद रिक्त हैं, संरक्षण शाखा में 67 से अधिक पद रिक्त हैं, पुरातत्व और पुरालेखशास्त्र के प्रमुख प्रभागों में एक महत्वपूर्ण कमी है, मंत्रालय कैसे सुनिश्चित करता है कि केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारकों का रखरखाव और संरक्षण कैसे किया जाता है?
एआईएमआईएम सांसद के इस सवाल पर केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि 50 साल के बारे में तो मैं टिप्पणी नहीं कर सकता, लेकिन पिछले 10 साल आठ महीने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ की विचारधारा के साथ साथ काम कर रही है। वहीं उन्होंने एक अन्य प्रश्न के जवाब में कहा कि देश में मोदी सरकार से पहले चंद लोगों को ‘पूजा पद्धति या वोट बैंक की ताकत के आधार पर’ कुछ विशेषाधिकार मिलते थे जो समानता की श्रेणी में आने के बाद समाप्त हो गए हैं। मंत्री महोदय का इशारा किन लोगों की तरफ़ था, यह समझना कठिन नहीं है। लेकिन दुख होता है यह देखकर कि जिस मंत्रालय पर भारत की संस्कृति और विरासत यानी गंगा-जमुनी तहजीब को संभालने और आगे बढ़ाने के साथ ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा की खास ज़िम्मेदारी है, वहां सही सवाल पर चुनावी नारेनुमा जवाब दिये जा रहे हैं। बता दें कि गजेन्द्र सिंह शेखावत ने असद्दुदीन ओवैसी के सवाल के जवाब में यह स्वीकार किया है कि जहां तक ताजमहल के रखरखाव का विषय है तो यह बात सही है कि पानी के रिसाव की एक घटना सामने आई थी। लगातार बारिश के कारण जो स्थिति बनी, उसमें तुरंत सुधार किया गया है। केंद्र सरकार पूरी तरह संवेदनशील है और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए काम कर रही है।
पाठक जानते हैं कि ताजमहल दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक है और विदेशों से बड़ी संख्या में सैलानी इस अद्भुत कलाकृति को देखने आते हैं। उत्तरप्रदेश और केंद्र दोनों सरकारों को ताजमहल के कारण अच्छा-खासा राजस्व प्राप्त होता है। फिर भी इस ऐतिहासिक इमारत में बारिश का पानी चूने लगे, तो समझा जा सकता है कि इसके रखरखाव में कैसी लापरवाही बरती जा रही है। वैसे भी तेल शोधन संयंत्रों के कारण ताजमहल की मौलिक सुंदरता काफ़ी हद तक नष्ट हो गई है। उधर हिन्दुत्व के उन्मादी लोगों के कारण भी ताजमहल को काफ़ी खतरा हो गया है। दक्षिणपंथी इसे तेजोमहालय कहते हैं और पिछले साल कांवड़ यात्रा के दौरान हिंदू महासभा से जुड़े दो युवकों ने ताजमहल के भीतर कब्र पर गंगाजल भी डाल दिया था, जिसके बाद उन्हें गिरफ़्तार किया गया। लेकिन भारी सुरक्षा व्यवस्था को धता बता कर दोनों युवक गंगाजल लेकर भीतर तक चले गए, इसी से पता चलता है कि सरकार इसके संरक्षण के लिए कितनी संवेदनशील है।
अकेले ताजमहल ही नहीं, मुगलकाल में बनी कई शानदार इमारतों पर इस समय नफ़रती हमले का खतरा बढ़ गया है। छावा फिल्म आने के बाद से औरंगजेब को लेकर घृणा का माहौल इतना बढ़ गया है कि अब लोकतांत्रिक सरकार भी हिंदुत्व के माइक पर अपनी आवाज बुलंद कर रही है। संस्कृति मंत्री ने मोदी सरकार की विचारधारा संसद में दोहरा दी, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि संरक्षित स्मारकों के रखरखाव के साथ उन्हें ख़त्म करने की मिल रही धमकियों पर सरकार क्या कोई एहतियाती कदम उठाएगी। क्योंकि अब औरंगजेब से नफरत का इजहार उसकी कब्र को तहस-नहस करने की मंशा से हो रही है। किसी ने कब्र को अरब सागर में फेंकने की बात कही, तो कोई इसे तोड़ने की बात कर रहा है।
मनोज मुंतशिर ने तो इस पर बाकायदा सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने वाला वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर डाला, जिसमें कहा गया है कि जब हम हिंदू श्रीराम जन्मभूमि की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे थे, तब शांतिप्रिय समाज के कुछ लोग हमें ज्ञान देते थे कि भगवान तो कण-कण में हैं, फिर श्रीराम मंदिर बनाने की जरूरत क्या? इस जमीन पर कोई स्कूल, कोई अस्पताल, कोई अनाथालय बनवा दो। मैं भी सरकार से अपील करता हूं कि औरंगजेब की कब्र हटाने की जरूरत क्या है उस पर शौचालय बनवा दो। आखिर उस बदजात हिन्दुओं के हत्यारे की हड्डियां गलाने के लिए यूरिया और नमक तो हम सनातनी दान कर ही सकते हैं। ये वीडियो देखने के बाद जो सेक्युलर कमेंट करने वाले हैं कि किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है, तो उन्हें मैं कहना चाहता हूं शिवाजी और राणा को पिता कहते हैं, हमारे बाप का हिंदुस्तान था और है।
इसी तरह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने भी कब्र को हटाने की इच्छा तो जताई, लेकिन एएसआई के कानूनों का हवाला देकर मजबूरी भी बता दी। औरंगजेब पर तार्किक बहस हो, इस पर किसी को आपत्ति नहीं, लेकिन 1707 में मर चुके एक बादशाह के लिए इस समय नफरत का इज़हार कर समाज का माहौल बिगाड़ने की कोशिश हो रही है। इस पर एएसआई और सरकार दोनों को आपत्ति करनी चाहिए। पानी ताजमहल में ही नहीं, देश की दीवारों में भी रिस रहा है।