फेक नैरेटिव को लेकर मोदी की चिंता

manipur

#सर्वमित्रा_सुरजन

मणिपुर एक बार फिर हिंसा की चपेट में है। राज्य के कई हिस्सों में कर्फ्यू लगा है, जरूरी सामान खरीदने के लिए लोगों को कुछ घंटों की राहत दी जा रही है, लेकिन सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त ही है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। जब कोई राज्य लगभग डेढ़ साल से हिंसाग्रस्त रहे, जब राज्य के मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारियों को पूरा न कर पाएं, जब देश के प्रधानमंत्री को आम जनता की सुध लेने की फिक्र न हो, तब जनता किस तरह से आराम से रह सकती है। सिर पर हमेशा हिंसा की तलवार लटके रहने पर कितना मानसिक तनाव होता होगा इसकी तो कल्पना हम कर भी नहीं सकते। आश्चर्य होता है यह देखकर कि प्रधानमंत्री मोदी ने कितने आराम से खुद को मणिपुर से दूर कर लिया है। अभी जब इस पूर्वोत्तर राज्य में हालात फिर बिगड़े तो अमित शाह ने अपने चुनावी दौरे का थोड़ा हिस्सा रद्द किया, हालांकि पिछले महीने मणिपुर पर गृहमंत्रालय द्वारा बुलाई गई बैठक में वे खुद ही शामिल नहीं हुए थे, खैर अमित शाह अब राज्य की कानून व्यवस्था का जायजा ले रहे हैं, उधर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मणिपुर मुद्दे पर दखल देने की मांग की है। मंगलवार को लिखे दो पेज के पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि 18 महीने में केंद्र और राज्य की सरकार मणिपुर में शांति स्थापित करने में असफल रही है।

आप संविधान की संरक्षक हैं, इसलिए दखल दें। मणिपुर में भाजपा की सहयोगी एनपीपी ने समर्थन वापस ले लिया है और सोमवार को एनडीए की एक बैठक में 18 विधायक ही गायब रहे। कहने का आशय यह कि अपने दायरे में रहकर कमोबेश सभी राजनेता अपने मंतव्य को सामने रख रहे हैं या कार्य कर रहे हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी ऐसा नहीं कर रहे तो सवाल उठता है कि आखिर मोदी चाहते क्या हैं। उनके अपने ही देश में एक राज्य हिंसा में झुलसा हुआ है और उनके मुंह से उफ तक नहीं निकल रही। क्या मोदी की 56 इंची छाती के भीतर पत्थर का दिल है, जिसमें कोई स्पंदन ही नहीं होता।

अभी जब विधानसभा चुनावों के साथ-साथ मणिपुर के हालात पर भी देश का ध्यान जा रहा है, तब ये देखना दिलचस्प है कि मोदी का ध्यान किस तरफ है। 17 नवंबर को श्री मोदी ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से आलोक भट्ट नाम के एक यूजर का एक्स पोस्ट रीपोस्ट किया है। इस पोस्ट में गोधरा कांड पर बनी फिल्म द साबरमती रिपोर्ट का ट्रेलर भी दिखाया गया है। नरेन्द्र मोदी ने लिखा है: ”ये अच्छी बात है कि ये सच सामने आ रहा है और वो भी एक ऐसे तरीके से जिससे आम लोग इसे देख सकें। एक फेक नैरेटिव कुछ समय तक ही चल सकता है। आखिरकार, फैक्ट्स हमेशा सामने आते हैं!” गौरतलब है कि आलोक भट्ट ने फिल्म देखने की 4 वजहें बताई गई हैं। इन वजहों के बारे में बताते हुए उन्होंने लिखा है कि ये फिल्म उन 59 लोगों के लिए सही मायने में श्रद्धांजलि है जिन्होंने गोधरा कांड में अपनी जान गंवाई थी। आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री के इस ट्वीट के बारे में एक विज्ञप्ति बाकायदा प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी हुई है। प्रसंगवश बता दें कि आलोक भट्ट के एक्स हैंडल पर भाजपा के झारखंड चुनाव के लिए बनाए गए उस वीडियो पर एक पोस्ट है, जिसे चुनाव आयोग ने हटाने के निर्देश दिए हैं। इस वीडियो में एक व्यक्ति के घर पर जबरन कई सारे लोगों को घुसते हुए दिखाया गया है जो एक खास समुदाय के हैं।

खैर फिल्म द साबरमती रिपोर्ट और नरेन्द्र मोदी के ट्वीट पर लौटते हैं। पाठकों को ध्यान होगा कि कर्नाटक चुनाव में द केरल स्टोरी का प्रचार प्रधानमंत्री ने किया था। उससे पहले द कश्मीर फाइल्स की मार्केटिंग प्रधानमंत्री ने की थी। श्री मोदी की अभिनय क्षमता के बहुत से लोग कायल हैं। भाषण देते-देते गले का अचानक रुंध जाना, किसी के कंधे पर हाथ रखकर अपनी संवेदना जताना, क्रोध, वात्सल्य, भक्ति आदि रसों का विभिन्न मौकों पर इस्तेमाल करना उन्हें अच्छे से आता है। इसलिए फिल्मों के लिए उनका रुझान चौंकाता नहीं है। लेकिन यहां बात वक्त के तकाजे की है। जैसे परीक्षा सिर पर हो और परीक्षार्थी फिल्में देखने, मनोरंजन या सैर-सपाटे में वक्त बिताए तो फिर परीक्षा को लेकर उसकी गंभीरता पर सवाल उठेंगे, साथ ही परिणाम को लेकर भी चिंता जाहिर होगी। ये भी मुमकिन है कि परीक्षा उतीर्ण करने के लिए भ्रष्ट तरीकों का सहारा लिया जाए। अब यही चिंता प्रधानमंत्री के रवैये से भी हो रही है।

क्या कारण है कि मणिपुर पर प्रधानमंत्री ट्वीट नहीं करते, बयान नहीं देते, वहां के लोगों को हौसला नहीं बंधाते कि हालात सामान्य करने के लिए वे काम कर रहे हैं, मगर देश के मुश्किल वक्त में फिल्म के प्रचार में जुट जाते हैं। क्या चुनाव प्रचार से नरेन्द्र मोदी का मन नहीं भरता, जो वो वक्त निकाल कर फिल्म का प्रचार भी करते हैं। हालांकि आजकल इसके लिए बाकायदा प्रचार एजेंसियां काम करती हैं जिनके कहने पर फिल्म के कलाकार भी एक शहर से दूसरे शहर प्रचार के लिए के हैं। सोचने वाली बात ये है कि श्री मोदी आखिर किस एजेंसी या किन लोगों के कहने पर प्रचार करते हैं। अपने प्रचार ट्वीट में नरेन्द्र मोदी ने फेक नैरेटिव यानी झूठे कथानक गढ़ने का भी मुद्दा उठाया है औऱ इस बात पर संतोष जाहिर किया है कि तथ्य हमेशा सामने आते हैं। तो क्या द साबरमती रिपोर्ट, फिल्म को कानून की कसौटी पर परखा गया है, क्या नरेन्द्र मोदी इसे ही सौ प्रतिशत सच कह रहे हैं, क्या फिल्म में जरा भी कल्पना का पुट नहीं है, जब नरेन्द्र मोदी प्रचार कर ही रहे हैं तो इन्हें सवालों के जवाब भी पता ही होंगे।

वैसे पाठकों को याद दिला दें कि गोधरा कांड पर ही बीबीसी ने भी एक वृत्तचित्र का निर्माण किया था, इंडिया : द मोदी क्वेश्चन। 2023 में दो हिस्सों में बने इस वृत्तचित्र में घटना से जुड़े और प्रभावित हुए कई लोगों की बातचीत दिखाई गई, लेकिन भारत में इस पर प्रतिबंध लगाया गया और अब मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। जाहिर है इस वृतचित्र में जो कुछ दिखाया गया है वह श्री मोदी की निगाह में फेक नैरेटिव रहा होगा और इसलिए उसे प्रतिबंधित किया गया। हालांकि यह देखकर इत्मीनान हुआ कि अब प्रधानमंत्री को भी कथानकों के गढ़ने और दुष्प्रचार के लिए झूठी खबरों पर चिंता हो रही है। जब साबरमती रिपोर्ट पर उन्होंने अपनी राय दी है तो उन्हें बिल्किस बानो के साथ की गई नाइंसाफी पर भी अपने विचार रखने चाहिए। यह भी बताना चाहिए कि बाबरी मस्जिद तोड़ने को जब अदालत ने अपराध बताया है तो उसी जमीन पर राम मंदिर बनाना न्याय है, फेक नैरेटिव है या आधा गिलास पानी और आधा हवा से भरे होने का पॉजिटिव एटीड्यूड है। झूठे कथानक की बात निकली है तो एक दिलचस्प मिसाल गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री और अब उत्तरप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने पेश की है। लखनऊ में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के नौवें दीक्षांत समारोह में आनंदीबेन पटेल ने अपने भाषण में दावा किया कि वैदिक युग के ऋ षि भारद्वाज ने विमान के विचार की कल्पना की थी लेकिन इसके आविष्कार का श्रेय राइट ब्रदर्स को गया। आनंदीबेन ने ये भी कहा कि रावण का छोटा भाई कुंभकर्ण छह महीने सोता नहीं था, बल्कि वो मशीनें बनाता था और इसकी जानकारी बाहर न जाए, इसलिए रावण के आदेश पर छह महीने अपने कक्ष से बाहर नहीं निकलता था।

आनंदीबेन ने कुंभकर्ण को ‘टेक्नोक्रेट’ कहा। अब संघ, भाजपा और सनातन धर्म के तमाम रक्षकों के सामने उलझाने वाला सवाल यह है कि टेक्नोक्रेट कुंभकर्ण को हर साल दशहरे पर रावण के साथ जलाने की व्याख्या कैसे की जाए। क्या यह माना जाए कि इस तरह हम अपनी वैज्ञानिक चेतना और सोच को दहन करते जा रहे हैं। क्या यही वजह है कि प्रधानमंत्री गणेशजी की प्लास्टिक सर्जरी का दावा करें और आनंदीबेन पटेल राइट ब्रदर्स को हवाई जहाज बनाने और उड़ाने का श्रेय दिए जाने पर सवाल उठाएं।

खैर, फेक नैरेटिव अभी देश से इतनी जल्दी खत्म होने वाले, बल्कि अब तो उनका विस्तार हो रहा है। जिहाद शब्द के प्रायोगिक बाजार में नया शब्द रेल जिहाद आया है, जो रेल दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है। तिरुपति में प्रसाद के लड्डुओं की गुणवत्ता वापस लौट जाए, इसके लिए सभी गैर हिंदू कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जा रहा है। ऐसी मिसालें अभी और आएंगी। फिलहाल नरेन्द्र मोदी के अगले ट्वीट की प्रतीक्षा कीजिए।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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