बिहार में यह कैसा सुशासन है जहां कमजोर की सुनवाई नहीं!

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राज्यपाल कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन करते पूर्णिया जिले के महीखंड गांव के लोग एवं अखिल भारतीय धानुक के सदस्य।

-विष्णुदेव मंडल-

vishnu dev mandal
विष्णु देव मंडल

पटना। लालू राबड़ी के जंगल राज को खत्म करने वाले नीतीश कुमार का 2005 से 2013 तक के शासनकाल को सुशासन का भी काल कह सकते हैं।
मुझे याद है 2007 में 24 नवंबर को लगभग 4:00 बजे सवेरे दरभंगा रेलवे स्टेशन पर उतरा था तो स्टेशन परिसर में चमकती लाइटों की जगमगाहट से रेलवे स्टेशन गुलज़ार था। जो प्रायः 90 के दशक में नदारद रहता था।
रेलवे स्टेशनों पर रेलवे सुरक्षा बल हो या बिहार पुलिस जो अक्सर स्टेशनों पर नजर नहीं आते वह भी भारी संख्या में चौकसी करते नजर आ रहे थे।
यू कहें कि लालू राबड़ी राज से ठीक उलट बिहार के शासन व्यवस्था में भारी तब्दीली नजर आ रही थी। बात सड़कों की करें या बिजली की या फिर कानून व्यवस्था। यह लिखने में कोई गुरेज नहीं कि नीतीश कुमार बिहार को सुशासन के पटरी पर जरूर लाए थे लेकिन अब कमोबेश बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद शासन व्यवस्था बिल्कुल लचर हो गई है।
खासकर 2020 से लेकर 2025 में आते-आते बिहार फिर पुराने ढर्रे पर चल चुका है। बिहार सका कोई भी जिला प्रखंड एवं ग्रामीण क्षेत्र अब सुरक्षित नजर नहीं रहा है। बताते चलें कि लालू राबड़ी राज में या फिर कांग्रेस के शासन के दरमियाँ अपराध चरम पर थे। उस वक्त भी बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी आदि जिले में अपराध की घटनाएं बहुत कम नजर आती थी। लेकिन अब यह इलाका भी सुरक्षित नहीं रहा है। लूटपाट, छीनती, डकैती और महिलाओं एवं लड़कियों के साथ बलात्कार की संख्या में अब अप्रत्याशित वृद्धि हो चुकी है। लेकिन मुख्यमंत्री हर सभा में यह कहते नजर आए हैं कि अभी भी सब कुछ ठीक ठाक है। 20 सालों तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद भी वह बिहार की बदहाली का जिम्मेदार लालू प्रसाद यादव को ही ठहरा रहे हैं।
बहरहाल पूर्णिया जिले एक अल्पसंख्यक धानुक परिवार की 14 वर्षीय नाबालिक किशोरी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई।
थाने में प्राथमिकि तो दर्ज कर ली गई लेकिन दबंग बलात्कारियों की राजनीतिक पकड़ के कारण अपराधियों को पकड़ने में अब तक सरकार और पुलिस सिर्फ हाथ पैर मार रही है। पीड़ित परिवार के सदस्यों की मानें तो पुलिस प्रशासन गवाहों को भी धमका रहा है। जब पीड़ित परिवार को यह महसूस हुआ कि उन्हें प्रशासन से न्याय नहीं मिलेगा तो उसने ग्रामीणों की मदद से पूर्णिया से पैदल मार्च करते हुए बीते 11 अप्रैल को पटना में राज्यपाल से मदद की गुहार लगाते हुए ज्ञापन सौंपा।
अखिल भारतीय धानुक एकता महासंघ के कई सदस्यों ने अपने बिरादरी के बच्ची के साथ घटित बर्बरता पूर्ण दुष्कर्म से आहत अपने स्वजातीय राजनीतिज्ञों से मदद की गुहार की लेकिन सब जगह सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है। पक्ष हो या विपक्ष दोनों सामूहिक दुष्कर्म के कारण मर चुकी नाबालिक बच्ची के साथ खड़े होने के लिए भी तैयार नहीं है क्योंकि उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं दुष्कर्मियों की जमात उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में वोट ना दें।
अब सवाल उठता है महिलाओं के प्रति अति संवेदनशील मोदी सरकार और आधी आबादी को हक दिलाने वाले नीतीश कुमार पूर्णिया में अल्पसंख्यक धानुक समाज की बेटी के साथ क्यों नहीं खड़े हो रहे हैं। उनकी किस तरह की मजबूरी है जो वह असामाजिक तत्वों को पकड़ने में अब तक नाकाम है?
यहां उल्लेखनीय है कि बिहार में बच्चियों के साथ दुष्कर्म एवं उन्हें मौत के घाट उतारा जाने की खबरें विचलित करने वाली हैं। शासन प्रशासन सिर्फ पोस्टमार्टम करने में लगे हुए हैं मीडिया कुछ चुनिंदा लोगों का खबर चलाते हैं। ऐसे में हमेशा गरीबों मजलूमों एवं पीड़ितों के लिए न्याय की बात करने वाली राजनीतिक पार्टियों के नेता पूर्णिया में सामूहिक बलात्कार की शिकार 14 वर्षीय निर्भया के साथ क्यों नहीं खड़े हो रहे हैं?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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