
ज़रा एक बार शबाना आज़मी का जीवन पढ़ डाले। झुग्गी झोपड़ियों के संघर्ष लिए उपवास पर बैठी शबाना के सामने झुकती उस वक़्त की हुक़ूमत को देखें। मजदूरों के लिए सैकड़ो किलोमीटर पदयात्रा करती शबाना को देखें। आजमगढ़ के छोटे से गाँव मिजवा की औरतों का हुनर लंदन तक ले जाने वाली शबाना को देखें,तब समझ आएगा असली समाज सेवा क्या होती है। असली राष्ट्रप्रेम क्या होता है, असली फेमिनिज़्म क्या है।
-Hafeez Kidwai

शबाना भी बचपन में फटकारी जाती थीं,यह कहकर कि उनका पैर इतनी जल्दी बड़ा क्यों हो जाता है कि जूते छोटे हो जाएं । यह फटकार जानकर लगा यह तो कुछ हमारे भी इर्द गिर्द देखा हुआ सच है । उनका पैर बढ़ता और अंगूठे के पास से जूता आँख खोल देता और मुस्कुराने लगता । साल में मुश्किल से एक ही जोड़ी जूते खरीद पाने वाले परिवार के लिए जूते का यूँ मुँह बा देना,तकलीफ़देह होता है । जूते के हिस्से की गलती बढ़ते पाँव को सुनने को मिलती ख़ैर।
यह तो संस्मरण रहा,शबाना आज़मी से एक अलग ही अपनापन रहा,मिलना हुआ भी हो या नही मगर यह लगता था कि वह हमारी ही आवाज़ हैं । हर उस बात पर बोलती थी,जिसपर लोग खामोश निकल जाना पसंद करते । गाँव से लेकर मुम्बई तक अपनी मेहनत और मिट्टी से बेपनाह मोहब्बत ने उनको अपने समकालीन लोगों में बहुत ऊँचा स्थान दिया ।
आज शबाना आज़मी दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम हैं। मगर यह कोई उन्हें गिफ्ट में नही मिला, बड़ी चप्पल घिसी हैं । बड़ी मेहनत करी है । दोस्तों के किये मुफ्त में काम किये हैं । समाज के लिए वक़्त बेवक़्त खड़ी हुई हैं। ज़िन्दगी के 75वें साल में हैं । अब भी सक्रिय ही हैं । मगर एक फिल्मी और एक समाजी सफ़र की वह ऊंचाई को छूकर, अब इत्मीनान की ज़िंदगी जी रही हैं । वह आज भी मिजवां,आजमगढ़ की लड़कियों के बनाए कपड़े के फैशन शो लंदन में उतनी ही एनर्जी,उतनी खूबसूरती से करती हैं। शबाना आज़मी ने अपने काम से यह हासिल हुआ कि वह ख़ुद की पहचान बन गई।
ज़रा एक बार शबाना आज़मी का जीवन पढ़ डाले। झुग्गी झोपड़ियों के संघर्ष लिए उपवास पर बैठी शबाना के सामने झुकती उस वक़्त की हुक़ूमत को देखें। मजदूरों के लिए सैकड़ो किलोमीटर पदयात्रा करती शबाना को देखें। आजमगढ़ के छोटे से गाँव मिजवा की औरतों का हुनर लंदन तक ले जाने वाली शबाना को देखें,तब समझ आएगा असली समाज सेवा क्या होती है। असली राष्ट्रप्रेम क्या होता है, असली फेमिनिज़्म क्या है, मगर यह नही दिखेगा,क्योंकि आंखों पर नफरत का चश्मा चढ़ा हो तो गुलाब भी कांटा नज़र आता है । नफरत से भरे दिमाग महकती चम्पा की खुशबू भी महसूस कर पाने से महरूम रहते है।
शबाना आज़मी में कुछ कमियां होंगी,इंसान में कमियां होना उसके इंसान होने की पहचान है मगर जो अच्छाइयाँ हैं, उसके इर्द गिर्द कोई उनके कार्यक्षेत्र का नही ठहरता । हमने बहुत मेहनत से बहुत सी बुनियाद रखते उन्हें देख है, जिसका फायदा आने वाली नस्लें उठाएंगी ।
शबाना आज़मी को आज जन्मदिन की खूब बधाई । बस यही दुआ की उनकी उम्र इतनी ज़रूर रहे,जिसमें उनके देखे ख्वाब पूरे हो जाएं,क्योंकि उनके ख्वाब में मुल्क की तरक्की और लोगों का जीवन स्तर सुधारना ही शामिल हैं, जो उनके रहते अंजाम तक पहुँचेगा । शबाना आज़मी की सेहत की दुआ और खूब मुबारकबाद ।
शबाना आज़मी के जन्म दिन पर 18 सितंबर को मास्को में कही गई कैफ़ी साहब की नज़्म के साथ मुबारकबाद….
अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे
बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे
वो टाँक दे तिरे आँचल में चाँद और तारे
तू अपने वास्ते जिस को भी इंतिख़ाब करे
(फोटो एवं आलेख हफीज किदवई की फेसबुक वॉल से साभार)