शासक: एक पल में किसी के नायक, दूसरे में खलनायक

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-नितिन ठाकुर Nitin Thakur

इतिहास पढ़ते हुए मोहम्मद गौरी पर ग़ुस्सा आता था जब वो चौहान वंश को छिन्न भिन्न करता है। गौरी ज़्यादा दिन ज़िंदा रहा नहीं सो इसके बाद उसके गुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक के हाथ दिल्ली सल्तनत पड़ी। ये सिलसिला इब्राहीम लोदी तक चलता रहा। फिर अचानक हरियाणा के पानीपत की तरफ से आगरा की ओर बढ़ता बाबर दिखता है। वो हमें विदेशी जान पड़ता है। दिल ही दिल में उम्मीद होती है कि लोदी इसे मार भगाए, मगर बाबर जीतता है। फिर हुमायूं से सत्ता अकबर के हाथ आती है जो हिंदू रियासतों पर हल्का हाथ रखकर रिश्तेदारी बनाता है पर मेवाड़ की नज़र से वो आक्रमणकारी है। पढ़ते हुए दिल चाहता है कि महाराणा प्रताप दिल्ली से आई हमलावर सेना से बिल्कुल ना हारें मगर ऐसा नहीं होता। इसके बाद कहानी चलती रहती है। हमें मुगलों की आदत पड़ जाती है। दिल आशंकाओं से भरता है जब जहांगीर के दरबार में ब्रिटेन से आया कैप्टन विलियम हॉकिन्स सूरत में एक फैक्ट्री लगाने की इजाज़त चाहता है। हम जानते हैं कि सवा सौ साल बाद ये अंग्रेज़ सेना बनाकर बंगाल में दनदनाते घूमेंगे लेकिन जहांगीर नहीं जानता। हमारा दिल औरंगज़ेब के फरेब से दारा शिकोह को सतर्क करने के लिए भी मचलता है लेकिन सिवाय पढ़कर अफ़सोस करने के किया क्या जा सकता है। शिवाजी का मुगल दरबार में अपमान ऐसा ही पल है जिसे बेबसी से देखना पड़ता है और फिर मराठा शेर को आगरे की कोठी में कैद देखना भी कुछ वैसा ही।

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औरंगज़ेब की मौत के बाद मुगलों पर बस अफ़सोस होता है लेकिन दिल दहलता है 1739 में हमलावर नादिरशाह को करनाल में जीतता देख। इसके बाद एक अफवाह से दिल्ली में दंगा भड़कता है और मन ये जानकर दुखता है कि चांदनी चौक वाली सुनहरी मस्जिद में बैठ नादिरशाह दिल्ली वालों के कत्लेआम का एलान करता है। खून से बहती उस नदी में बताना मुश्किल था कि कितना खून हिंदुओं का बहा और कितना मुसलमानों का। तब मुगल हिंदुस्तानी लगते हैं और नादिर विदेशी। इसके बाद 1757 दिखता है। खून जलता है मीर ज़ाफर की गद्दारी पढ़कर जो हज़ार वजहों से बंगाल के नवाब की हार चाहता है, बजाय इसके कि वो उनका सेनापति था। बंगाल का नवाब जिसके पास मीर जाफ़र जैसे गद्दार थे तो दूसरी तरफ मोहनलाल जैसे वफादार दीवान भी जिसकी शादी नवाब की बेटी से हुई। पचास हज़ार हिंदुस्तानियों की सेना तीन हज़ार की ब्रिटिश सेना से महज़ ग्यारह घंटों में हारती है तो दिल जलता है। काश हमलावरों से उस दिन बंगाल की सेना जीतती।

कुल जमा इतिहास यही है, ऐसा ही। वो बस दर्ज करता चलता है। विचलन हमारे दिलों में होता है। मुझे कभी ज़रूरत नहीं लगी किसी शासक का बचाव करने की क्योंकि इतिहास बताता है कि उसके लिए सब इंसान हैं.. महत्वाकांक्षा, गुणों, अवगुणों, अधूरेपन से भरे हुए.. वो कभी हमलावर होते हैं, कभी अपना सब कुछ बचाने में जुटे हुए। एक पल में किसी के नायक, दूसरे में खलनायक.

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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