
-देशबन्धु में संपादकीय
हिन्दी सिनेमा और टीवी जगत को कई बेहतरीन रचनाओं की सौगात देने वाले श्याम बेनेगल का 90 बरस की आयु में एक लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अभी 14 दिसंबर को उन्होंने अपना 90वां जन्मदिन मनाया था, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखी जा सकती हैं। बीमारी की तकलीफ को मुस्कुराहट से ढंकते श्याम बेनेगल के साथ शबाना आजमी, नसीरूद्दीन शाह, कुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकार इस तस्वीर में हैं, जो उनकी 50 बरस की सिनेयात्रा के साथी रहे हैं। इन जैसे कई उम्दा कलाकारों को फिल्म दुनिया में मौका देने, तराशने और निखारने का काम श्याम बेनेगल ने किया है। दरअसल किसी भी फिल्म या धारावाहिक में इन कलाकारों का नाम और श्याम बेनेगल का निर्देशन ही इस बात की आश्वस्ति देता था कि उसे देखने के बाद खुद को आप भीतर से थोड़ा और समृद्ध महसूस करेंगे।
सादा लगने वाली बहुत सी कहानियां, रोज़मर्रा के जीवन के कई प्रसंग, मीडिया में दमन और शोषण के रोजाना प्रकाशित होते समाचार, जिन पर हमारा ध्यान नहीं जाता या जो हमें विचलित नहीं करती हैं, ऐसी कहानियों, घटनाओं और प्रसंगों पर श्याम बेनेगल ने एक से बढ़कर एक फिल्में बनाईं। अंकुर, निशांत, मंथन, मंडी, कलयुग, जुनून, सरदारी बेगम, जुबैदा, से लेकर समर, वेल डन अब्बा, और वेलकम टू सज्जनपुर जैसी फ़िल्मों की एक लंबी फेहरिस्त है, जो बताती हैं कि श्याम बेनेगल होने का मतलब क्या है। जिस समय हिन्दी सिनेमा राजेश खन्ना की सुपरस्टार वाली चकाचौंध से लिपटा था और जिसमें अमिताभ बच्चन एंग्री यंग मैन बनकर अपनी अलग जगह बनाने में लगे थे, उसी समय नसीरूद्दीन शाह या ओम पुरी, अमरीश पुरी, कुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकारों के साथ श्याम बेनेगल अदाकारी का नया ककहरा जनता के बीच स्थापित कर रहे थे।
इन कलाकारों के चेहरे पर सुपरस्टार जैसा रौबदाब नहीं था, न ही एक अकेला सब पर भारी होने का कोई दावा था, लेकिन ये सब मिलकर श्याम बेनेगल के निर्देशन में भारतीय सिनेमा का खजाना अपनी अभिनय कला से भर रहे थे। श्याम बेनेगल को समानांतर सिनेमा शब्द स्वीकार्य नहीं था। और यह सही भी है, क्योंकि जो फिल्में सतही निर्देशन और मामूली अभिनय के बावजूद सौ करोड़ क्लब में शामिल होने के लिए बनाई जाएं, वे मुख्यधारा कहलाएं और जो उत्कृष्टता के पैमाने पर खरी उतरें वे समानांतर कहलाएं, यह न्यायोचित नहीं है।
श्याम बेनेगल ने हिन्दी सिनेमा में ही नहीं टीवी जगत में भी एक नयी क्रांति का आगाज़ किया। वर्ना ‘भारत एक खोज’ जैसी कालजयी रचना और नेहरूजी के नजरिए को छोटे पर्दे पर उतारना आसान नहीं था। 53 कड़ियों में भारत के 5 हज़ार साल के इतिहास को इस अद्भुत धारावाहिक में समेटा गया। कमाल यह था कि रामायण, महाभारत समेत कई पौराणिक कहानियों के अलावा मौर्यकाल, मुगलकाल से लेकर टीपू सुल्तान और अंग्रेजी राज, भारत का आजादी का संघर्ष सभी को बेहद रोचक तरीके से फिल्माया गया। सूत्रधार की तरह नेहरूजी बीच-बीच में आते हैं और फिर एक काल से दूसरे काल तक भारत का सफ़र आगे बढ़ता रहता है।
90 के दशक में प्रसारित हुए इस धारावाहिक का शीर्षक गीत ही बेहद रोमांचित करता है। जो ऋग्वेद के 10 वें मण्डल का 129वें सूक्त – नासदीय सूक्त का भावानुवाद है। इस सूक्त में ब्रह्माण्ड को लेकर जिज्ञासा प्रकट की गई है। जिसमें विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर कई सवाल हैं। माना जाता है कि इस सूक्त में भारतीय तर्कशास्त्र के बीज छिपे हैं। ऋषि प्रजापति परमेष्ठी ने नासदीय सूक्त की रचना की थी। भारत एक खोज के लिए इससे बेहतर शुरुआत नहीं हो सकती थी, जिसमें तर्क और वैज्ञानिक नजरिए को प्राथमिकता दी गई है। मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक वसंत देव ने इसका अनुवाद किया और वनराज भाटिया ने इसे स्वरबद्ध किया था –
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहां
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था
इन पंक्तियों से शुरु होकर गीत निम्नलिखित पंक्तियों पर खत्म होता है कि-
ऊँ! सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता पूर्वज रक्षा कर।
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर।
फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी सब में सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर।।
आज जब हिंदू को जगाने की राजनीति में एक धार्मिक, सांस्कृतिक उन्माद खड़ा हो चुका है, तब नेहरूजी जैसे राजनेता और श्याम बेनेगल जैसे किसी निर्देशक की सख्त जरूरत महसूस होती है, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा की महान विरासत से देश को फिर परिचित करा सके।
भारत एक खोज के अलावा श्री बेनेगल ने ‘यात्रा’ जैसा रोचक धारावाहिक बनाया, जो भारतीय रेलवे के सबसे लंबे मार्ग पर चलने वाली हिमसागर एक्सप्रेस पर आधारित था। इसी तरह संविधान धारावाहिक श्याम बेनेगल ने बनाया, जिसमें भारतीय संविधान के बनने की पूरी यात्रा का लेखा-जोखा है। आज जब मोदी सरकार संविधान पर चर्चा के नाम पर कांग्रेस से हिसाब-किताब दुरुस्त करने के मौके तलाशती है, तब इस धारावाहिक को देखा जाना और ज़रूरी लगता है। श्री बेनेगल ने दूरदर्शन पर आने वाले ‘कथा सागर’ की कई कड़ियों को भी निर्देशित किया। ‘कथा सागर’ अपने नाम के अनुरूप ही दुनिया के महान रचनाकारों की कलम से निकले मोतियों को समेटे हुआ था। इसमें चेखव, टॉलस्टॉय, ओ हेनरी, मोपासां, जैसे कई लेखकों की कहानियों को श्याम बेनेगल ने छोटे पर्दे पर उतारा था।
‘मंथन’ फिल्म पर चर्चा के बिना श्याम बेनेगल पर कोई भी चर्चा अधूरी रहेगी। क्योंकि यह फिल्म भी एक अनूठा प्रयोग ही था। गुजरात में वी जे कुरियन की प्रेरणा से शुरु हुई श्वेत क्रांति पर आधारित इस फिल्म को श्याम बेनेगल ने सामुदायिक सहयोग से ही बनाया। इस फिल्म के लिए 5 लाख किसानों ने 2-2 रुपए का योगदान दिया था, यानी क्राउड फंडिंग से एक अद्भुत काम श्याम बेनेगल ने कर दिखाया। इस फिल्म को इसी वर्ष कान फिल्म फ़ेस्टिवल में दिखाया गया और दर्शकों ने खड़े होकर तालियां बजाईं, किसी फ़िल्म को 48 बरस बाद भी इस तरह सराहा जाए, उसी से फ़िल्म की सार्थकता पता चलती है।
अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़े गए श्याम बेनेगल का जाना फ़िल्म जगत के साथ-साथ पूरे समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है।