
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। तमिलनाडु की राजनीति में भाषा विवाद लंबे अरसे से रहा है। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके केंद्र सरकार पर हमेशा तमिल की उपेक्षा एवं हिंदी की बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही है। लेकिन तमिलनाडु के स्कूली शिक्षा में मंत्री अंबिल महेश पोयामोझी के बेटे कविन द्वारा मातृभाषा तमिल के बदले फ्रेंच भाषा चुनने को लेकर तमिलनाडु के राजनीति फिर से गरमाने लगी है।
डीएमके और उसके राजनेताओं द्वारा हमेशा हिंदी का विरोध एवं तमिल भाषा के प्रति छद्दम प्यार अब लोगों के बीच खटकने लगा है।
बता दे कि शुक्रवार को चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में आयोजित एक समारोह में स्कूली शिक्षा प्रमुख के मंत्री ने अपने पुत्र को पुरस्कार प्रदान किया। विडम्बना यह है कि मईलापुर एसआईटी में एक निजी अंतर्राष्ट्रीय विद्यालय में पढ़ने वाले कविन ने तमिल को मातृभाषा में नहीं लिया बल्कि उसने फ्रेंच भाषा को चुना।
बहरहाल विपक्षी पार्टियों खासकर भारतीय जनता पार्टी, एआईएडीएमके, पीएमके समेत अन्य दल सत्ताधारी डीएमके पर हमलावर है।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि तमिलनाडु की राजनीति में भाषा विवाद सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। खासकर डीएमके द्विभाषीय फार्मूला को ही जगह देना चाहती है अर्थात तमिल मातृभाषा एवं अंग्रेजी दूसरी भाषा रहे। लेकिन डीएमके के स्कूली शिक्षा मंत्री के पुत्र द्वारा अपनी मातृभाषा फ्रेंच में रखने के कारण राजनीतिक उबाल उठाना जरूरी था। अब सवाल उठता है जो डीएमके राजनीति के मंच से केंद्र सरकार और उसकी नीतियों को कटघरे में खड़ी करती रही है, आखिर स्कूली शिक्षा मंत्री के ुपुत्र फ्रेंच भाषा को मातृभाषा की जगह क्यों अपनाना चाह रहा है। सवाल यह भी उठ रहा है कि डीएमके सरकार और उनके मंत्रियों द्वारा जहां हिंदी भाषा का विरोध किया जा रहा है वहीं उनके बच्चे फ्रेंच को क्यों अपना रहे हैं। आखिर तमिलनाडु सरकार राज्य के गरीब बच्चों को हिंदी से दूर क्यों रखना चाहते हैं जबकि मंत्रियों और बड़े-बड़े अधिकारियों के बच्चे निजी स्कूलों में हिंदी और अन्य भाषाएं भी पढ़ रहे हैं फिर आमजन के बच्चों को हिंदी से दूर क्यों रखा जा रहा है।
(लेखक तमिलनाडु के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)