
ऐसे समय में जब बड़े बड़े संस्थान अपनी पत्रिकाओं को बन्द होने से नहीं बचा पाए, उस समय भी तथ्य भारती न सिर्फ निकल रही है बल्कि नियमित रूप से निकल रही ( शाया) हो रही है। दीनानाथ जी ने कई-कई मिथक तोड़े हैं, पहला मिथक तो यह कि पत्रिकाएं खासतौर से आर्थिक पत्रिकाएं मुम्बई- नई दिल्ली जैसे महानगरों से ही निकलने पर ही बरकत होती है। दूसरा यह कि उम्र हो गई, क्या करें, अब काम नहीं होता।
-धीरेन्द्र राहुल-

(वरिष्ठ पत्रकार)
पिछले दिनों हमने आपको जाने मानेअर्थशास्त्री डाॅ लक्ष्मीनारायण नाथूरामका से परिचित करवाया था जो 95 साल की उम्र में भी प्रतियोगी छात्रों के लिए अर्थशास्त्र की किताबों को अपडेट कर छपवा रहे थे। आज हम आपको कोटा के ऐसे ही कर्मयोगी पत्रकार दीनानाथ दुबे से परिचित करवाते हैं जो 85 साल की उम्र में भी निरन्तर सक्रिय हैं और हर माह ”तथ्य भारती’ पत्रिका निकालकर पाठकों के हाथों में सौंप रहे हैं।
उन्होंने जीवन का महत्वपूर्ण समय डीसीएम ग्रुप की श्रीराम पत्रिका का संपादन और जनसंपर्क करने में बिताया।
58 साल की उम्र में रिटायर होने के बाद जब लोग आराम करने के बारे में सोचते हैं, तब वे कोटा जैसे छोटे शहर से आर्थिक पत्रिका निकालने के बारे में सोच रहे थे। डीसीएम प्रबंधन ने उन्हें सेवा विस्तार का प्रस्ताव भी दिया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। पिछले तीस वर्षों से वे ‘तथ्य भारती’ निकाल रहे हैं। कल 10 जुलाई को हम चार पत्रकार मित्र शैलेष पाण्डेय, पुरूषोत्तम पंचौली और दिनेश गौतम मामा और धीरेन्द्र राहुल उन्हें जन्म दिन की बधाई देने उनके तिलक नगर ( कोटा) स्थित निवास पर पहुंचे तो वे तथ्य भारती के अगले अंक को अंतिम रूप देने में व्यस्त थे।
तथ्य भारती चिकने ग्लेज पेपर पर छपती हैं। उसका अंक आपके हाथों में आए तो लगेगा कि एक बड़ी टीम मिलकर उसे निकालती होगी लेकिन यह कमाल सिर्फ दो लोगों का है। दीनानाथ दुबे और उनके कम्प्यूटर ऑपरेटर का।
यूं तथ्य भारती के संपादक मण्डल में बड़े अर्थशास्त्री, जिनमें प्रोफेसर अरूण कुमार ( गुरुग्राम ), डाॅ श्रीधर द्विवेदी ( नोएडा), सुभाष अरोड़ा ( नई दिल्ली), डाॅ एस विजयानाथन ( चैन्नई), डाॅ शुभ्रता मिश्रा ( वास्को द गामा ) शामिल हैं।
आर्थिक और वाणिज्य को लेकर पत्र तो खूब निकलते हैं- नफा-नुकसान, बिजनैस स्टैंडर्ड आदि लेकिन हिन्दी में निकलने वाली पत्रिका यह इकलौती है। पहले देश के प्रमुख स्टेशनों के बुक स्टालों पर दो तरह की ‘तथ्य भारती’ दिखाई देती थी। दूसरी ‘तथ्य भारती’ राजस्थान बेस्ड फीचर/ लेख के साथ छपती थी। उसे दीनानाथ जी के बड़े सुपुत्र श्यामधर दुबे जयपुर से प्रकाशित करते थे। कुछ साल पहले श्यामधर दुबे का जयपुर में हृदयाघात से निधन हो गया। उसके बाद जयपुर से प्रकाशित ‘तथ्य भारती’ बन्द हो गई।
दीनानाथ जी कर्मयोगी के साथ स्थितप्रज्ञ भी है। कोई साधारण व्यक्ति होता तो शायद पुत्र शोक में बिखर जाता लेकिन ध्येयनिष्ठ मनीषि अपने कर्मोद्योग में लगे रहे। उनके तीनों पुत्रों के परिवार कोटा से बाहर रहते हैं। सबसे छोटे बेटे हेमन्त का बेटा दीनानाथ जी और उनकी पत्नी के साथ रहता है।
वे बताते हैं कि आईआईएम, आईआईटी, सिविल सेवा अकादमी मसूरी और राष्ट्रीय पुलिस अकादमी हैदराबाद जैसे सौ से भी अधिक संस्थानों में तथ्य भारती नियमित रूप से जाती है। सिर्फ 2100 रूपए में आजीवन सदस्यता दे देते हैं।
ऐसे समय में जब बड़े बड़े संस्थान अपनी पत्रिकाओं को बन्द होने से नहीं बचा पाए, उस समय भी तथ्य भारती न सिर्फ निकल रही है बल्कि नियमित रूप से निकल रही ( शाया) हो रही है। दीनानाथ जी ने कई-कई मिथक तोड़े हैं, पहला मिथक तो यह कि पत्रिकाएं खासतौर से आर्थिक पत्रिकाएं मुम्बई- नई दिल्ली जैसे महानगरों से ही निकलने पर ही बरकत होती है। दूसरा यह कि उम्र हो गई, क्या करें, अब काम नहीं होता।
कई लोगों को यह गलतफहमी हो सकती है कि दीनानाथ जी को तथ्य भारती निकालने में डीसीएम प्रबंधन शायद मदद देता होगा? इस पर दीनानाथ का कहना था कि तीन हजार रूपए का विज्ञापन दे रहे थे जो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया।
दीनानाथजी वाराणसी और प्रयागराज के बीच जौनपुर- भदोही के रहने वाले हैं। उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। देश आजाद होने पर वे टेलीफोन इंस्पेक्टर बन गए थे। पिता चाहते थे कि बेटा पत्रकारिता में आए तो दीनानाथ जी आ गए और आज 85 साल की उम्र में भी दमठोंक कर पत्रकारिता की मशाल थामे हुए हैं।