
#सर्वमित्रासुरजन
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से 12 सितंबर को पंजाब और अन्य पड़ोसी राज्यों के मुख्य सचिवों को एक परामर्श यानी एडवायज़री जारी की गई है। जिसमें कहा गया है, ‘पाकिस्तान के साथ मौजूदा सुरक्षा परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, नवंबर 2025 में सिख तीर्थयात्रियों के जत्थे को पाकिस्तान भेजना संभव नहीं होगा। लिहाजा, आपसे अनुरोध है कि आप अपने राज्य में सिख संगठनों को उचित सलाह दें और यह सुनिश्चित करें कि जत्थे के आवेदनों पर गौर न किया जाए।
इसका मतलब है कि इस साल भारतीय सिख पाकिस्तान में गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब नहीं जा पाएंगे, जो कि उनके आस्था का एक अहम केंद्र है। भारत और पाकिस्तान आपस में चाहे कितने युद्ध कर लें, एक-दूसरे से दुश्मनी निभा लें, लेकिन दोनों तरफ के हुक्मरान चाह कर भी दोनों मुल्कों के साझा इतिहास को बदल नहीं सकते। पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब इसी साझा संस्कृति की एक मिसाल है। भारत के पंजाब के गुरदासपुर जिले के ऐतिहासिक शहर डेरा बाबा नानक से महज साढ़े चार किमी पर ही यह गुरुद्वारा है। अंग्रेजों ने भारत को बांटने के लिए कागज के नक्शे पर लकीर खींची, तो दिलों पर भी लकीरें बन गईं, लेकिन यह सच किसी लकीर से नहीं मिट पाया कि बार-बार दोनों देशों को एक-दूसरे का सामना करना ही पड़ेगा। राजनैतिक स्वार्थ और सत्ता के अहंकार की तुष्टि के लिए दोनों देशों की शांति और लोगों के अमन-चैन को भंग करने का सिलसिला थमना चाहिए। और यह तभी होगा जब सीमा के आर-पार सामान्य आवाजाही रहे, व्यापार, खेल, धार्मिक, सांस्कृतिक यात्राएं चलती रहीं।
अभी 14 सितंबर को पाकिस्तान के साथ एशिया कप का मैच खेला गया तो इसके पीछे भाजपा नेताओं ने यही कारण बताए कि खेल, कला आदि चलते रहना चाहिए। लेकिन अब धार्मिक यात्रा की बारी आई है तो सुरक्षा कारणों का हवाला देकर इसे रोका जा रहा है। करतारपुर मामूली धार्मिक स्थल नहीं है। यह गुरु नानक देव जी का अंतिम विश्राम स्थल है। यहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए थे। ऐसा माना जाता है कि गुरु नानकदेव ने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब के कई शबद की रचना करतारपुर में की थी। गुरु का लंगर नामक सामुदायिक भोजन भी करतारपुर में ही शुरू किया गया था, जो सिख परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गुरु नानक देव ने सबसे पहले यहां सिख धर्म के तीन नियमों का पालन किया था: किरत करो (ईमानदारी से मेहनत करके आजीविका कमाना), वंड छको (धन, संपत्ति और प्रतिभा को जरूरतमंदों के साथ बांटो) और नाम जपो (पाठ, जप और कीर्तन के माध्यम से ध्यान) को मुक्ति का मार्ग माना जाता है।
आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने इस बात को समझा था कि बंटवारे में भले लाखों लोग एक जगह से दूसरी जगह चले गए, लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अपनी जमीन को छोड़ना मंजूर नहीं किया। इसलिए हिंदुस्तान में कई मुस्लिम बने रहे और पाकिस्तान में कई हिंदू बने रहे। यह जानते हुए भी अब वे अपनी ही जन्मभूमि पर अल्पसंख्यक कहलाएंगे, इन लोगों ने जमीन को मां मानकर उसे नहीं छोड़ा। ऐसे अल्पसंख्यकों पर भविष्य में अत्याचार न हो, इसके लिए 1950 में तत्कालीन प्रधानमंत्रियों प.जवाहर लाल नेहरू और लियाकत अली के बीच छह दिन की लंबी चर्चा के बाद 8 अप्रैल को एक समझौता हुआ, जिसे नेहरू-लियाकत समझौता कहा जाता है। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना और बंटवारे के बाद की स्थिति को टालना था। समझौते में यह तय हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों के साथ हुए व्यवहार के लिए जिम्मेदार होंगे। जबरन कराए गए धर्म-परिवर्तन मान्य नहीं होंगे। दोनों देश अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। हालांकि, यह समझौता पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया, लेकिन इसने दोनों देशों के बीच बातचीत और सहयोग के लिए एक मंच तैयार हुआ। 1950 में भारत के सिख तीर्थयात्रियों ने पाकिस्तान के सिख धार्मिक स्थलों की यात्रा की थी। लेकिन अब इसी यात्रा को रोका जा रहा है।
जबकि 2019 में मोदी सरकार ने वीज़ा मुक्त करतारपुर कॉरीडोर बनाया, जो डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे को करतारपुर साहिब गुरुद्वारे से जोड़ता है। इसका उद्देश्य भारतीय सिखों को बिना वीज़ा के पाकिस्तान में गुरुद्वारा दरबार साहिब के दर्शन करने की अनुमति देना था। इस कॉरिडोर का उद्घाटन 9 नवंबर, 2019 को हुआ था और भारत और पाकिस्तान के बीच इसके संचालन के समझौते को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाया जा चुका है। अब ऑपरेशन सिंदूर का हवाला देकर सिख तीर्थयात्रियों को प्रकाश पर्व पर करतारपुर न जाने की सलाह दी जा रही है। पंजाब में भाजपा को छोड़ बाकी सब दल सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा है कि ‘जब पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच हो सकते हैं तो फिर श्रद्धालुओं को करतारपुर साहिब और ननकाना साहिब जाने से क्यों रोका जा रहा है?’ मुख्यमंत्री मान ने कहा कि ये दोनों स्थल आस्था के केंद्र हैं, न कि राजनीति या कारोबार की जगह। राजनीति और क्रिकेट इंतजार कर सकते हैं, लेकिन भक्ति नहीं।
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने अमित शाह से आग्रह किया कि वह गृह मंत्रालय की ओर से विभिन्न राज्य सरकारों को जारी परामर्श की समीक्षा करें। बादल ने कहा कि सिख तीर्थयात्री गुरु पर्व के पावन अवसर पर श्री ननकाना साहिब में मत्था टेकने के इच्छुक हैं और उन्हें ऐसा करने की अनुमति न देने से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। उन्होंने परामर्श की समीक्षा करने का आह्वान करते हुए कहा कि तीर्थयात्रियों को अपने जोखिम पर यात्रा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
पूर्व ओलंपियन और कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने कहा कि इस मामले में केंद्र दोहरी नीति अपनाना छोड़े। केंद्र सरकार को सिख श्रद्धालुओं की भावनाओं का ध्यान रखते हुए कोई रास्ता निकलना चाहिए जिससे वह लोग दर्शन करने से वंचित न रह सकें और उनकी सुरक्षा भी यकीनी बनाई जा सके। उन्होंने कहा कि इसी साल पहले केंद्र सरकार ने महाराजा रणजीत सिंह के शहीदी पर्व मौके पर भी पाकिस्तान जत्था भेजने से मना कर दिया गया था और अब श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर जत्थे को जाने की मंजूरी नहीं दी जा रही है।
हालांकि इन दलीलों पर भाजपा प्रवक्ता आरपी सिंह ने कहा कि, ‘इस मामले में राजनीति करना ठीक नहीं है. क्या पंजाब की सरकार लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगी? जो लोग क्रिकेट मैच को धार्मिक यात्रा से जोड़ रहे हैं उन्हें ये मालूम होना चाहिए कि मैच दुबई में था पाकिस्तान में नहीं।’ सरकार के ऐसे तर्क बता रहे हैं वह अपने फैसले में बदलाव नहीं करेगी। लेकिन ये गलत होगा।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)