
-कृतिका शर्मा-

(अध्यापिका एवं एंकर)
समाज लोगों का वह समूह है,जो लोगों द्वारा ही चुना गया है। क्योंकि जीवन जीने, उसकी व्यवस्था बनाए रखने, अपनी संस्कृतियों को समझने तथा कुछ नियमों का पालन करने के लिए आवश्यक है। लोगों का मानना है कि व्यक्ति के चहुंमुखी विकास और सुरक्षा के लिए समाज का होना जरूरी है। परंतु सोचने वाली बात यह है कि क्या वास्तव में आज जो समाज की स्थिति चल रही है वह व्यक्ति के विकास में मददगार हैं?
समाज से दूरी
जहां समाज हमारे धर्म, हमारी संस्कृति की पहचान हुआ करता था वहीं आज वर्तमान युग में समाज की परिभाषा ही बदल गई हैं। कभी कल्पना भी नहीं की गई होगी कि समाज का यह रूप देखना पड़ेगा। आज समाज में संस्कृति, परंपरा की बातें, विचारों की बजाय स्टैंडर्ड, दिखावा का चलन आ गया है। लोग समाज के कार्यक्रम में, मीटिंग्स में अपने स्टैंडर्ड को दिखाने से बाज नहीं आते। समाज के कार्यकर्ताओं द्वारा विचारों पर जो बातें की जाती है वह खोखली नजर आती है। नौजवान समाज में रहना नहीं बल्कि समाज से दूर रहना पसंद कर रहे हैं शायद कहीं ना कहीं इसका जिम्मेवार समाज है।
आज का समाज स्टैंडर्ड का समाज
इंसान आज के समय में समाज के लिए नहीं, समाज में दिखावे के लिए जीता हैं। इंसान को किसी भी हद तक जाना पड़े लेकिन उसका स्टैण्डर्ड़ कम नहीं होना चाहिए। क्यों ? अरे भाई! समाज में क्या मुंह दिखाएंगे अगर स्टैंडर्ड कम हो गया तो। इसी स्टैंडर्ड के चक्कर में ना जाने कितने लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं क्योंकि स्टैंडर्ड के अनुसार नौकरी चाहिए जबकि क्यों समाज में यह नहीं बताया जाता स्टैंडर्ड धारियों को ,कि नौकरी से स्टैंडर्ड बनता है ना कि स्टैंडर्ड से नौकरी। इसी स्टैंडर्ड की वजह से ना जाने कितनी बेटियों के बाप उनकी शादी के खर्चे, शादी के बाद के त्यौहार के खर्चे, बच्चा पैदा होने पर खर्चे, इनकी वजह से कर्जदार हो जाते हैं। क्यों समाज में इन स्टैंडर्ड धारियों को यह नहीं बताया जाता कि एक बाप ने अपनी कोमल सी बेटी तुम्हें दे तो, अब तक का सबसे कीमती खजाना तुम्हें दे तो दिया।
क्यों तुम्हारा मुंह इतना खुलता है हर बार लेन देन में
सिर्फ दिखावे के लिए, कि समाज को दिखावा करना है क्यों तुम लोगों को सिर्फ एक सुंदर बहू चाहिए या तो वह खूबसूरत होनी चाहिए या फिर नौकरी वाली जो कि जिंदगी भर धन कमा कर आपको दे सकें या फिर पैसे वाले बाप की होनी चाहिए। आखिर क्यों? क्यों लोग यह नहीं समझते और समाज उन्हें यह नहीं समझाता कि इन्हीं करतूतो की वजह से नौजवान पीढ़ियां समाज को गलत समझ रही हैं, उनके मन में समाज के लिए यह धारणा बन गई है कि किस बात का समाज,आज के नौजवानों को सिर्फ यही लगता है कि यह समाज लोगों तब दिखाई देता है सामने जब किसी बेटी के मायके से कोई लेन-देन करना हो। या फिर किसी नौकरी या पढ़ाई में उसका स्टैंडर्ड जज किया जाना हो तभी वह समाज सामने आता है क्या यही समाज का नियम हैं? किसी के पहनावे उसके रंग रूप से उसकी जान-पहचान बड़े-बड़े लोगों मे होने पर ही उन लोगो को भाव दिया जाता हैं ,मित्रता की जाती है क्या यही समाज है?
समाज में है बदलाव की जरूरत
जरूरत है समाज में बदलाव की, आवश्यक है यह बात को समझना स्टैंडर्डधारियों का, कि समाज हमसे है हम समाज से नहीं ।समाज हमारे द्वारा बनाया गया है ।अगर यही समाज का रूप रहा तो वह दिन दूर नहीं जब समाज रूपी इस समूह का पतन हो जाएगा। सब एक दूसरे से दूर अपने ही जिंदगी में मस्त रहेंगे ।तब किसी को किसी से मतलब नहीं रहेगा सही मायनों में समाज का अर्थ हैं कि लोगों को आपस मे जोड़े रखना, अपनी संस्कृति को बनाए रखना। लोगों को स्टैंडर्ड अपनी बातों , अपने विचारों और अपनी सोच में बनाए रखना चाहिए ना कि दुनिया को दिखाने के लिए ।समाज का मतलब होता है हर व्यक्ति का बराबर होना। अगर बड़ा छोटा करना ही है तो समाज की जरूरत नहीं। यह छोटा बड़ा ऊंच-नीच की लड़ाई तो हमारे हिंदुस्तान में जातियों को लेकर शुरू से ही है। अगर यही करना है तो इसके लिए किसी समाज का होना आवश्यक नहीं हैं।

















