जब लक्ष्य पूरे करने को भर दिए जाते हैं थाने

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यह फोटो कोटा में जवाहर नगर थाना क्षेत्र के हैं जहां पुलिस ने अपने लक्ष्य प्राप्त करने के नाम पर बड़ी संख्या में लोगों को पकड़ कर घंटों सड़क किनारे फुटपाथ पर बिठाएं रखा। बाद में उन्हे लोडिंग वाहनों में भरकर सिटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जहां बेकसूर होते हुए भी इन लोगों को वकीलों को फीस देकर अपनी जमानत करवानी पड़ी।

-कृष्ण बलदेव हाडा –

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कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। जब शांति भंग की आशंका में गिरफ्तारी का एक लक्ष्य तय कर उसे पूरा करने का जिम्मा थानाधिकारियों को थमा दिया जाता है तो पुलिस थानों की हवालातें आदमियों से और परिसर वाहनों से भर जाते हैं। तय लक्ष्य पूरा करने के लिए पुलिस वाले सारी लोकतांत्रिक सीमाएं तोड़कर निरंकुश हो जाते हैं और गाहे-बगाहे ऐसे नजारे कोटा में अकसर देखने को मिलते रहते हैं जब पुलिसवाले अपने अफसरों के दिए टारगेट को पूरा करने के लिए लोगों की अंधाधुंध धरपकड़ करती है, हेलमेट के नाम पर वाहनों की चेकिंग कर ज़ब्त किए गए थाना परिसर को दुपहिया वाहनों से भर दिया जाता है।
ऐसे नजारे खासतौर से उस समय देखने को मिलते हैं जब शहर में नए पुलिस कप्तान कमान संभाले या तब जब कोई संवेदनशील वार-त्यौहार नजदीक हो। इस बार मौका कोटा के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले अनंत चतुर्दशी महोत्सव का था जब पुलिस के उच्चाधिकारियों के अलिखित आदेश पर न केवल थानों की हवालातें नामी-गिरामी अपराधियों,हिस्ट्रीशीटरों और आदतन अपराधियों से भर दी गई बल्कि पुलिस की इस कार्यवाही की चपेट में बड़ी संख्या में निर्दाेष लोग भी आ गए जिन्हें शांति भंग की आशंका में गिरफ्तार करके प्रशासनिक मजिस्ट्रेट की न्यायालय में पेश किया गया जहां से उन्हें कोई अपराध नही करने के बावजूद अपनी जमानत करवानी पड़ी।
कोटा में अपराधों और सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील माने जाने वाले रामपुरा कोतवाली, मकबरा, कैथूनीपोल, गुमानपुरा रेलवे कॉलोनी, भीमगंजमंडी जैसे थानों के जाने-माने अपराधियों-हिस्ट्रीशीटरों या आमतौर पर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहने वाले लोगों की धरपकड़ तो समझ में आता है लेकिन आमतौर पर ऐसी आपराधिक घटनाओं से परे कोचिंग छात्रों के मुख्य केंद्र जवाहर नगर जैसे थाना इलाकों में अपराधियों को पकड़ने के लक्ष्य के चलते बड़ी संख्या में ऎसे निर्दाेष लोग पुलिस के हत्थे चढ़ गए जिनका अपराध या आपराधिक गतिविधियों से दूर-दूर तक कोई साबका नहीं था और न ही किसी पुलिस थाने में उनके खिलाफ कोई नामजद रिपोर्ट दर्ज थी। फ़िर भी पुलिस को उनसे शांति भंग की आशंका हुई और वे हिरासत में ले लिये गए।
नमूना के तौर पर जवाहर नगर थाना क्षेत्र में एक युवक को महज इसलिए पकड़ लिया गया, क्योंकि वह एक निजी कोचिंग संस्थान में आयोजित होने वाले धार्मिक प्रवचन में छात्रों को आमंत्रित करने के पंपलेट बांट रहा था। पुलिस ने उसे दबोच लिया और उससे यह सवाल किया कि क्या उसने यह पंपलेट बांटने के लिए पूर्व में प्रशासनिक अनुमति ली है या कोचिंग संस्थान ने ऐसा कोई आयोजन करने की लिखित में दरखास्त पेश की है, अगर नहीं तो यह शांति भंग की आशंका की आपराधिक गतिविधि की श्रेणी में आता है इसलिए उसे शांति भंग में पकड़ कर हवालात में पहुंचा दिया गया। बाद में उस पंपलेट बांटने वाले युवक को सिटी मजिस्ट्रेट की अदालत ले जाया गया जहां कोई कसूर नहीं होने के बावजूद उसे एक वकील की 500 रुपए की फ़ीस देकर देकर अपने निजी मुचलके पर जमानत लेनी पड़ी।
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जैसा कि कहा गया है,यह तो एक नमूना मात्र है। ऎसे दर्जनों लोग खास तौर से नौजवान पुलिस की टारगेट पूर्ति की कार्यवाही के शिकार हुए हैं। सिटी मजिस्ट्रेट की न्यायालय से जमानत पर छूटे तीन युवकों ने तो यह बताया कि वह तो जवाहर नगर में खड़े हुए आपस में बातचीत कर रहे थे कि तभी पुलिस की गश्ती जीप आई। उनसे पूछा कि क्या वे कोचिंग छात्र हैं तो उन्होंने बताया कि वे तो मजदूरी के लिए आए हैं। यह जवाब सुनते ही पुलिस वालों ने उन्हें थाने की गाड़ी में बिठा लिया गया और थाने ले जाकर उनके खिलाफ शांति भंग का मामला दर्ज कर लिया तो उन्हें कोई वाजिब वजह नही होते हुए भी मजिस्ट्रेट से जमानत करवाने को मजबूर होना पड़ा।
ऐसी घटनाओं के बारे में पुलिस अधिकारी बड़ी ही सहजता से यह कह देते हैं कि त्योहार के समय इस तरह की कार्रवाई तो आम है। पुलिस शांति भंग की आशंका में धरपकड़ करती ही है। हालांकि पुलिस के इस नजरिए से दीगर स्थिति यह थी कि नए कोटा से बड़ी संख्या में लोगों को पकड़-पकड़ कर मिनी ट्रक, लोडिंग वाहनों से भरकर न्यायालय परिसर में लाया गया जहां पहले से ही तैयार वकीलों ने आमतौर पर प्रति व्यक्ति पर 500-500 रुपए की फीस लेकर उन्हे छुड़वाया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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