
#सर्वमित्रा_सुरजन
अभी दो दिन पहले ही केन्द्रीय निर्वाचन आयुक्त ने 26 नवम्बर के पहले महाराष्ट्र में विधानसभा की चुनावी प्रक्रिया पूरी करने का ऐलान कर संकेत दिये हैं कि जल्दी ही इसकी तारीखों की घोषणा होगी, वहीं सोमवार को महाराष्ट्र सरकार ने गाय को राज्य माता का दर्जा देने के आदेश जारी कर दिये हैं जो एक तरह से उनकी सुरक्षा और सम्मान के प्रति कटिबद्धता को दर्शाता है। मामला गौवंश के संरक्षण का कम और उसका राजनैतिक लाभ लेने का इरादा ज्यादा नज़र आता है।
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना का एकनाथ शिंदे धड़ा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अजित पवार घटक नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के नाम से मिलकर सरकार चला रहा है। अब एनडीए किस प्रकार आगामी विधानसभा चुनाव लड़ता है, यह देखने की बात होगी, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी का शरद पवार के नेतृत्व वाला दल महाविकास आघाड़ी (एमवीए) के बैनर तले एकजुट हैं। ये दोनों ही गठबन्धन लोकसभा चुनाव में भी आमने-सामने थे जिसमें एमवीए को बढ़त मिली थी। इसके अलावा अनेक ऐसे तथ्य हैं जो विधानसभा चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहराने का संकेत दे रहे हैं। सत्ता जाने के डर से एनडीए गाय को भी इस उम्मीद में चुनावी मैदान में ले आई है कि उसकी पूंछ पकड़कर वह सियासी वैतरणी को पार कर ले।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने ऑपरेशन लोटस चलाकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चल रही सरकार को पलट दिया था। इसके लिये उसने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के कुछ विधायकों और ऐसे ही एनसीपी के कुछ विधायकों को अजित पवार के नेतृत्व में तोड़ा था। शिंदे मुख्यमंत्री बने तथा अजित पवार और खुद भाजपा के देवेन्द्र फडनवीस को उप मुख्यमंत्री बनाया गया जो कि पहले सीएम थे। इस तरीके से भाजपा को सरकार बनाने में सफलता तो मिल गयी लेकिन जनता का समर्थन उसने खो दिया। लोगों की निगाहों में असली शिवसेना उद्धव गुट वाली है और शरद पवार के पास जो हिस्सा है वही असली एनसीपी है। उद्धव ठाकरे के प्रति लोगों में इस प्रकरण के चलते बहुत सहानुभूति है। सरकार चलाने के बाद भी एनडीए जनता की नज़रों से गिर चुकी है। इसी कारण से उसे लोकसभा में सीटें कम मिल सकीं।
मजबूत इंडिया और उसके बरक्स कमजोर होता एनडीए भाजपा के लिये बहुत बड़ा संकट है। भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाने में नाकामयाब रही है। दूसरी ओर शिंदे फिर से सीएम बनने पर आमादा हैं तो वहीं पवार घात लगाये बैठे हैं कि वे कैसे यह पद पा सकें। अजित पवार को लेकर भाजपा के सामने अधिक दुविधा है। भाजपा की नियामक संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि अजित पवार को साथ लेकर भाजपा ने बड़ी गलती की है। उसके अनुसार भ्रष्टाचार के कारण अजित की छवि जनता में बहुत खराब है। इसके कारण लोग भाजपा से नाराज़ हैं। दूसरी तरफ़, भाजपा इस स्थिति में नहीं है कि वह अजित को चलता कर सके।
शरद पवार के भतीजे अजित भाजपा के लिये परेशानी का सबब हैं। हाल ही में उन्होंने बयान दिया था कि बारामती से उन्होंने शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी को चुनाव में खड़ा कर बड़ी गलती की है। उन्होंने इसे अपने ही परिवार को तोड़ने का कृत्य बतलाया था। इससे जनता में यह संकेत गया है कि वे पार्टी में वापसी कर सकते हैं। हालांकि अब तक उन्होंने ऐसा कोई कदम तो नहीं उठाया है और न ही इसके कोई स्पष्ट संकेत दिये हैं, लेकिन उनके बयान को इसी तरह से लिया गया है।
दूसरी तरफ़ इंडिया गठबन्धन के सहयोगियों के रूप में कांग्रेस, उद्धव एवं पवार मजबूती के साथ खड़े हैं। जब से इंडिया का गठन हुआ है, ये दोनों धड़े कांग्रेस के साथ हैं। इन तीनों दलों (कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना तथा शरद पवार की एनसीपी) की एकजुटता एनडीए की परेशानी का सबसे बड़ा कारण है। एनडीए की तरह यहां सीएम के चेहरे को लेकर कोई द्वंद्व भी नहीं है। यहां तक कि इंडिया की एक बैठक में स्वयं उद्धव ने घोषणा कर दी थी कि उस वक्त मौजूद शरद पवार और कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले चाहें तो अभी किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर सकते हैं। वे हर हाल में इंडिया के साथ हैं। शिंदे सरकार द्वारा महाराष्ट्र के विकास को जिस प्रकार से सरकार द्वारा अवरूद्ध कर दिया गया है, वह भी चर्चा में है। महाराष्ट्र की कुछ परियोजनाओं को या तो गुजरात ले जाया जा रहा है अथवा वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारोबारी मित्रों- गौतम अदानी एवं मुकेश अंबानी को सौंपे जा रहे हैं। इससे भी जनता में भारी नाराजगी है।
महाराष्ट्र में भाजपा इस कदर भयभीत है कि सम्भवत: इसी कारण से भाजपा के इशारे पर चुनाव आयोग ने यहां जम्मू-कश्मीर तथा हरियाणा के साथ चुनाव नहीं कराये। वरना ‘एक देश एक चुनाव’ का नारा देने वाली भाजपा और उसकी सरकार कम से कम चार राज्यों के चुनाव तो एक साथ करा ही सकती थी। झारखंड के चुनाव भी होने हैं। वहां भी भाजपा की हालत पतली बताई जाती है। ऐसे में भाजपा, शिवसेना (शिंदे) तथा एनसीपी (अजित) की सरकार को सत्ता में लौटाने के लिये धु्रवीकरण का सहारा लिया जा रहा है। भाजपा के पास विकास के नाम पर बताने के लिये कुछ न होने के कारण गाय को राज्यमाता घोषित करना राजनीतिक चाल से अधिक कुछ नहीं है। देखना होगा कि गौमाता की एनडीए पर कृपा होती है या नहीं।
(देवेन्द्र सुरजन की वाल से साभार)