संघर्ष के ‘ताप’ से निखरे राहुल गांधी!

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-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

इमारत को खड़ा करने में समय लगता है और समय इसलिए लगता है क्योंकि इमारत मजबूत बनती है। देश की मौजूदा राजनीति में, कांग्रेस और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के संदर्भ में, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि उन्हें देश की राजनीति में मजबूती के साथ स्थापित होने में समय लगा। अब राहुल गांधी देश की राजनीति में मजबूती के साथ स्थापित हो चुके हैं। 2004 से लेकर 2014 तक देश में कांग्रेस की सरकार रही। 2009 में जब लगातार दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनी तब राहुल गांधी के पास देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर था। उन्हें प्रस्ताव भी मिला मगर वह प्रधानमंत्री नहीं बने। शायद इसलिए क्योंकि 2004 और 2009 में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार बनी थी। कांग्रेस को पूर्ण बहुमत 2009 में भी नहीं मिला था। कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण ही शायद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया था। शायद राहुल गांधी समझ रहे थे कि गठजोड़ सरकारों की उम्र अधिक नहीं होती है, और कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे ने बड़ा आंदोलन किया। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई और सत्ता से बाहर हो गई। पहली बार भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में अपनी सरकार बनाई। 2014 से भाजपा लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर केंद्र की सत्ता पर काबिज है। 2014 में कांग्रेस की हार के बाद एक बार राहुल गांधी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते हुए, कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होते रहे। कांग्रेस एक के बाद एक अपने शासित राज्यों को खोती रही। भारतीय जनता पार्टी केंद्र की तरह राज्यों के भी चुनाव जीतती रही। एक समय ऐसा लगा जैसे राहुल गांधी अकेले नेता हैं जो भाजपा के खिलाफ संसद से लेकर सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं। राहुल गांधी के संघर्ष में कोई भी कांग्रेस का बड़ा नेता उनके साथ खड़ा नजर नहीं आता था। राहुल गांधी की नीतियों के खिलाफ कांग्रेस के भीतर से आवाज भी सुनाई देती थी। कांग्रेस के नेताओं ने जी 23 बनाकर राहुल गांधी को और पार्टी को मुसीबत में भी डाला था। राहुल गांधी ने समय से पहले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद त्याग दिया और कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत छोड़ो पदयात्रा पर निकल पड़े। इस पद यात्रा में राहुल गांधी को कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं और देश की जनता का साथ मिला। मगर भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी को, सबसे बड़ा साथ जिस नेता का मिला, उस नेता के साथ ने कांग्रेस और राहुल गांधी की राजनीतिक तकदीर को बदलकर रख दिया। भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी और कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में नया राष्ट्रीय अध्यक्ष दिया। खड़गे ने संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ का नारा देश भर में बुलंद किया। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में एक दशक बाद 99 लोकसभा सीट जीतने का अवसर मिला। यहां से राहुल गांधी की राजनीतिक इमारत मजबूत हुई क्योंकि राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इतनी सीट भी नहीं मिली थी कि वह लोकसभा में प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभा सके। इसके बाद से राहुल गांधी का राजनीतिक ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। राहुल गांधी और विपक्ष के नेता भाजपा पर चुनाव में धांधली का आरोप 2014 के बाद से ही लगा रहे हैं मगर उनका आरोप प्रभावशाली नजर नहीं आता था। इसका प्रभाव तब नजर आया जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने भाजपा सरकार के खिलाफ संविधान बचाओ लोकतंत्र बचाओ का नारा देश भर में बुलंद किया। इस नारे की वजह से भाजपा केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना पाई और भारतीय जनता पार्टी 2019 की 303 सीट से गिर कर 2024 के लोकसभा चुनाव में 240 सीट ही जीत पाई। राहुल गांधी भाजपा सरकार के खिलाफ वोट चोरी को जन आंदोलन बना रहे हैं। उसे खड़ा करने में राहुल गांधी को बहुत समय लगा लेकिन अब यह आंदोलन मजबूती के साथ खड़ा होता नजर आ रहा है। राहुल गांधी मय प्रमाण के मतदाता सूचियो में घोटालों को उजागर कर रहे हैं। राहुल गांधी का यह अंदाज देश की जनता और वह नेता जो चुनाव लड़ते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते हैं उन्हें भी रास आ रहा है। विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव लड़ने वाले नेता भी अंदर खाने राहुल गांधी का साथ देते हुए नजर आ रहे हैं। इंडिया ब्लॉक राहुल गांधी के नेतृत्व में वोट चोरी के मुद्दे पर एकजुट दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस और राहुल गांधी की राजनीतिक इमारत अब इतनी मजबूत स्थिति में है कि उसे अब कोई भी आंधी या तूफान हिला नहीं पाएगा। देश की जनता के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प अब राहुल गांधी बन चुके हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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